Ranchi News : देसी मिट्टी में विदेशी मिठास
झारखंड में कृषि क्षेत्र में नवाचार के तहत गैर-पारंपरिक फलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
नवाचार…. झारखंड गैर-पारंपरिक फलों की खेती की प्रयोगशाला
रांची. झारखंड में कृषि क्षेत्र में नवाचार के तहत गैर-पारंपरिक फलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस पहल के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. राज्य के कई जिलों में किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ विदेशी और उच्च मूल्य वाले फलों की किस्में उगा रहे हैं. इनमें मियाजाकी आम, पीला तरबूज, ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी, अनानास, एवोकाडो और सेब शामिल हैं. प्रयोग के तौर पर कुछ किसान सेब की खेती कर रहे हैं. आम की सबसे महंगी वेराइटी मियाजाकी लगाने का प्रयास भी किया जा रहा है. पीला तरबूज की खेती भी हो रही है. स्ट्रॉबेरी अपनी पहचान बना रहा है. हाल के वर्षों में ड्रैगन फ्रूट भी तैयार हो रहा है. कहीं निजी तो कहीं व्यावसायिक खेती हो रही है. अनानास की भी अच्छी खेती हो रही है. खूंटी में तैयार अनानास बाजार में आ रहा है. एवोकाडो भी लगाया जा रहा है. झारखंड को गैर पारंपरिक फलों की खेती का प्रयोगशाला बनाया जा रहा है.वर्ष 2018-19 में पीला तरबूज की खेती, डिमांड बढ़ी
रांची और खूंटी जिले के किसानों ने वर्ष 2018-19 में पीले तरबूज की खेती शुरू की थी. देखने में यह तरबूज सामान्य हरे रंग का होता है, लेकिन इसका गूदा लाल के बजाय पीला होता है. कांके के किसान सुखदेव उरांव बताते हैं कि कोलकाता और आसपास के राज्यों में इसकी अच्छी मांग है. राजधानी के मॉल में भी यह बिकने लगा है. इसकी खेती सबसे पहले अफ्रीका में शुरू हुई थी, जबकि वर्तमान में यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका में भी इसकी लोकप्रियता है. पीला तरबूज, स्वाद में लाल तरबूज की तुलना में थोड़ा कम मीठा होता है. लेकिन, यह लाल तरबूज की तरह पोषक तत्वों से भरपूर एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक फल है. पीले रंग का हिस्सा बीटा-कैरोटीन की मौजूदगी की वजह से पीला होता है. बीटा-कैरोटीन आंखों की सेहत, त्वचा के स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.ड्रैगन फ्रूट की व्यावसायिक खेती ने पकड़ी रफ्तार
पिछले पांच-छह वर्षों में झारखंड में ड्रैगन फ्रूट की खेती तेजी से बढ़ी है. शुरुआती दौर में इसे केवल प्रयोगात्मक रूप से लगाया गया था. लेकिन, अब कई जिलों में इसकी व्यावसायिक खेती हो रही है. लोहरदगा के भंडरा के किसान एपी सिंह बताते हैं कि उनकी ऑर्गेनिक खेती को ओडिशा की एक एजेंसी ने प्रमाणित किया है. बाजार में इस फल की मांग लगातार बढ़ रही है. झारखंड में रेड श्याम सी वेराइटी बेहतर प्रदर्शन कर रही है. यह फल मूल रूप से मध्य अमेरिका और मैक्सिको का है और विटामिन और फाइबर का समृद्ध स्रोत है.तोरपा में अनानास और एवोकाडो की खेती
तोरपा स्थित नंदी एग्रो फॉर्म में आधुनिक तकनीक से विभिन्न फलों की खेती की जा रही है. यहां पहली बार अनानास की अच्छी पैदावार हुई है, जिसकी मिठास अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर बतायी जा रही है. इसके लिए पौधे बाहर से लाये गये हैं. इसी फॉर्म में एवोकाडो के पौधे भी लगाये गये हैं. नंदी एग्रो के संचालक निलेश रासकार के अनुसार, नयी विधियों से की जा रही इस खेती को बाजार से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. कई प्रकार के विदेशी फल लगाये गये हैं.राजधानी में हो रही है आम की कई वेराइटी की खेती
रांची में आम की कई विदेशी वेराइटी की खेती हो रही है. बरियातू निवासी उज्ज्वल मुखर्जी के बागान में 20 से 22 किस्मों के आम हैं. इनमें जापानी मियाजाकी वेराइटी भी शामिल है, जिसकी बाजार में कीमत 2.70 लाख रुपये प्रति किलो तक बतायी जाती है. इसके अलावा फ्लोरिडा का हेडन मैंगो, ऑस्ट्रेलिया का किम्सस्टोन प्राइड और थाइलैंड का किंग ऑफ चकापट भी लगाया जा रहा है. इसमें कई पेड़ों में तो फल भी आ रहे हैं.सेब की खेती में दिखी उम्मीद
झारखंड में सेब की खेती का भी प्रयास हो रहा है. गुमला के रेमेज सिंह ने बाघमुंडा फॉल्स के पास स्थित अपने फाॅर्म हाउस में 100 सेब के पौधे लगाये हैं. पिछले वर्ष इनमें फूल और फल आये थे. खूंटी के मार्शल चंपिया ने अक्तूबर 2022 में अपने आवास में सेब का पौधा लगाया. वर्ष 2024 में उनके पेड़ पर फूल आये जो मार्च होते-होते आकर्षक फलों में बदल गये. अब तो इनके सेब के फलों में बहुत ही सुंदर लाल रंग भी आने लगा है. हटिया निवासी सेवानिवृत्त मंजू मड़की व उनके पति पीबी डांगवार ने अपने आवास में दो सेब के पौधे लगाये हैं. अगस्त में तीन साल पूरा हो जायेगा. इस वर्ष जून में इन दोनों पेड़ों ने 300 से ज्यादा फल दिये हैं.विशेषज्ञों की राय
आम और सेब की नयी किस्मों पर शोध जारी
अनानास, ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी जैसे फलों पर अनुसंधान के बाद इन्हें झारखंड की जलवायु के अनुकूल पाया गया है. आम और सेब की नयी किस्मों पर शोध अभी जारी है. जब तक रिसर्च सफल नहीं होती, तब तक इनकी व्यावसायिक खेती संभव नहीं है. बीएयू ने भी सेब के कई पौधे लगाये हैं. यह घरों के किचेन गार्डेन में सजावट पौधे के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं.
राजेंद्र किशोर, पूर्व उप निदेशक, उद्यान, झारखंड सरकारव्यावसायिक खेती में समय लगेगा
सेब की कुछ वेराइटी ठंडे मौसम की जरूरत नहीं रखतीं, इसलिए झारखंड में निजी स्तर पर इसकी खेती संभव हो पा रही है. गर्म इलाके जैसे झारखंड प्रदेश के भौगोलिक दशा के अनुसार यहां हो पा रहा है. लोग अपने घर में उत्साह से सेब के पौधे लगा पा रहे हैं. इसके फल खा रहे हैं. हालांकि, इसे बड़े पैमाने पर व्यावसायिक बनाने में समय लगेगा.विकास दास, उद्यान विशेषज्ञ
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