Ranchi News : चार शुभ योगों के साथ तीज का व्रत 26 अगस्त को

हरितालिका तीज भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन का प्रतीक पर्व है. 26 अगस्त को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जायेगा.

By MUNNA KUMAR SINGH | August 20, 2025 9:40 PM

भगवान शिव और पार्वती की पूजा के साथ शृंगार, कथा और पकवानों से महकेगा पर्व

पति भी निभा रहे तीज का व्रत, बदली परंपराओं ने बढ़ाया रौनक

रांची(लता रानी). हरितालिका तीज भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन का प्रतीक पर्व है. 26 अगस्त को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जायेगा. भाद्रपद शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दिन वे निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. कुछ जगहों पर कुंवारी कन्याएं भी अच्छा वर पाने के लिए ये व्रत रखती हैं. अब पत्नी के साथ पति भी निर्जला व्रत रखने लगे हैं. मान्यता है कि इसी दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को अपने वर के रूप में प्राप्त किया था. परंपरागत शृंगार, पूजा-अर्चना, तीज कथा और ठेकुआ-गुजिया जैसे व्यंजन इस त्योहार की शोभा बढ़ाते हैं. आधुनिक दौर में यह उत्सव सोशल मीडिया पर भी खूब छा रहा है.

26 अगस्त को व्रत और 27 को सूर्योदय के बाद पारण

वाराणसी पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि 25 अगस्त की दोपहर 12:39 बजे से शुरू होकर 26 अगस्त की दोपहर 12:39 बजे तक रहेगी. दूसरे पंचांगों में इसका समापन समय 26 अगस्त की दोपहर 1:54 बजे बताया गया है. तीन दिवसीय पर्व की शुरुआत 25 अगस्त को ‘नहाय-खाय’ से होगी. 27 अगस्त को सूर्योदय के बाद पारण होगा. पारण से पहले सुहाग सामग्री, अन्न, ऋतुफल, मिष्ठान्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करना श्रेष्ठ माना गया है. उदया तिथि के अनुसार व्रत 26 अगस्त को रखा जायेगा.

सर्वार्थ सिद्धि, शोभन, गजकेसरी, पंचमहापुरुष योग का संयोग

इस बार हरितालिका तीज पर सर्वार्थ सिद्धि, शोभन, गजकेसरी और पंचमहापुरुष जैसे चार शुभ योग बन रहे हैं, जो व्रत की महत्ता को और अधिक मंगलकारी बना रहे हैं. परंपरा के अनुसार यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और अविवाहित कन्याओं के लिए मनचाहा वर प्रदान करने वाला माना जाता है.

तीज के व्रत में रंगों का विशेष महत्व

व्रत में लाल, गुलाबी, नारंगी, पीला और हरा रंग शुभ माना गया है. लाल रंग देवी पार्वती का प्रिय है, जो प्रेम और शक्ति का प्रतीक है, जबकि हरा रंग हरियाली और नवीकरण का द्योतक है. जिन दंपतियों के बीच मनमुटाव है, वे गुलाबी वस्त्र धारण करें. काला, नीला, सफेद और क्रीम रंग का परिधान वर्जित है.

हरतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब कैलाश पर्वत पर माता पार्वती और भगवान शिव मौजूद थे. माता पार्वती ने प्रश्न किया कि हे! महेश्वर मैंने ऐसे कौन-से पुण्य किये थे, जिसके चलते आप मुझे पति के रूप में मिले? आप तो अंतर्यामी हैं. जरूर जानते होंगे. इस पर भगवान शिव जवाब देते हैं कि आप के उत्तम पुण्यों की वजह से मैं प्राप्त हुआ हूं. भगवान शिव ने माता पार्वती को उनकी कठिन तपस्या की कथा सुनाई. भगवान शिव ने बताया कि माता पार्वती ने 12 वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था. जंगल में अन्न न खाकर, पेड़ों के पत्ते खाएं, सर्दी, गर्मी और बरसात भी झेली, जो उनके कठोर तप को नहीं रोक पायी. बेटी को ऐसे देखकर हिमालय राज चिंतित थे. एक दिन नारद ऋषि ने माता पार्वती को देखा और हिमालय राज के पास भगवान विष्णु का रिश्ता लेकर चले गये. हिमालय राज ने भी नारद का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और अपनी पुत्री को बताया हे पुत्री, मैंने तुम्हें भगवान विष्णु को अर्पण कर दिया है. माता पार्वती दुखी हुई और सखियों के पास जाकर घोर विलाप करने लगी. सखियों के पूछने पर माता पार्वती ने बताया ‘मैं अपने मन में भगवान शिव को ही अपना पति मान चुकी हूं. लेकिन, पिता जी ने विष्णु जी से मेरा विवाह तय किया है. मैं यह विवाह नहीं करूंगी और नि:संदेह इस देह का त्याग कर दूंगी. पार्वती जी की ये बातें सुनकर सखियां अपहरण कर उन्हें जंगल में ले गयी. सखियों की सलाह पर पार्वती जी ने एक गुफा में भगवान शिव की आराधना की. भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर शिव जी की विधिवत पूजा की और रात भर जागरण किया. इससे प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसके बाद से कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए और सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए ये व्रत रखने लगी.

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शृंगार, पूजा सामग्री और परिधानों की खरीदारी तेज

पर्व को लेकर राजधानी के बाजारों में जबरदस्त रौनक है. महिलाएं शृंगार सामग्री, पूजा सामग्रियों और परिधानों की खरीदारी में जुटी हुई हैं. एक मॉल की संचालिका पायल किंगर के अनुसार इस बार नवविवाहिताएं लाल रानी की जगह पेस्टल शेड्स को प्राथमिकता दे रही हैं. पारंपरिक साड़ियों के साथ इंडो-वेस्टर्न आउटफिट्स का ट्रेंड भी बढ़ा है. वहीं, एक प्रतिष्ठान के संचालक सुनील बजाज बताते हैं कि लहरिया और बंधेज की साड़ियां अब भी लोकप्रिय हैं. लेकिन, ड्रेप साड़ी और हैवी सूट का क्रेज खासतौर पर नयी दुल्हनों में देखा जा रहा है.

सोशल मीडिया ने बढ़ाई तैयारियों की चमक

सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग रील्स और फोटो शेयरिंग ने भी तीज के उत्सव को नया रूप दिया है. महिलाएं इसे अब सिर्फ पारंपरिक पूजा नहीं, बल्कि एक ‘इवेंट’ के रूप में मना रही हैं. तैयारी से लेकर सामूहिक कार्यक्रम तक की तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड करने की होड़ लगी है.

पारंपरिक पकवानों का स्वाद और महत्व

तीज के अवसर पर पारंपरिक व्यंजन जैसे ठेकुआ, गुजिया और खीर विशेष रूप से बनाये जाते हैं. गेंहू, गुड़, सूजी और मेवे से तैयार ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सेहतमंद भी हैं. समय के साथ आधुनिक पकवानों की भी मांग बढ़ी है. लेकिन, पारंपरिक स्वाद का महत्व आज भी बरकरार है.

बदलते समय में नयी परंपरा का चलन, पति भी रखते हैं व्रत

बदलते दौर में तीज अब केवल महिलाओं और कुंवारी कन्याओं का पर्व नहीं रहा. कई पति भी अपनी पत्नियों के साथ निर्जला उपवास रखते हैं. दीपाटोली निवासी खुशबू प्रसाद और उनके पति कुमार अविनाश पिछले 15 वर्षों से तीज का व्रत एक साथ कर रहे हैं. इसी तरह, प्रीति सिन्हा और इंजीनियर अभिषेक लाला भी बीते तीन सालों से यह व्रत निभा रहे हैं.

मेहंदी लगाने और गुजिया बनाने के लिए बुकिंग शुरू

तीज ने कई स्थानीय महिला उद्यमियों को रोजगार का अवसर भी दिया है. पिस्कामोड़ की मेहंदी आर्टिस्ट शिवानी चौधरी बताती हैं कि तीज सीजन में उनकी कमाई 15 से 18 हजार रुपये तक हो जाती है. अबतक लगभग 10 बुकिंग कर चुके हैं. अपने सहयोगी के साथ 12 से 15 महिलाओं के हाथों में मेहंदी लगाने का काम करते हैं. वहीं, ठेकुआ और गुजिया बनाने में विशेषज्ञ निशा झा बताती हैं कि ऑर्डरों की इतनी मांग होती है कि पूरा करना मुश्किल हो जाता है. इस सीजन में उनका व्यापार लाख रुपये से अधिक का हो जाता है. इसके लिए वह लगभग एक महीने पहले से पूरे परिवार के साथ तैयारी करती हैं. ऑर्डर इतना होता है कि पूरा नहीं कर पाती हूं. लोग हाइजेनिक चीजों की डिमांड करते हैं.

पर्व को लेकर नवविवाहिताओं में खास उत्साह और उमंग

डॉ मेघा रानी, जिनका विवाह इसी वर्ष हुआ है, कहती हैं पहला तीज हमारे लिए बेहद खास है. यह न केवल पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की कामना का अवसर है, बल्कि परंपरा से जुड़ने और सांस्कृतिक मूल्यों को समझने का भी माध्यम है. नयी पीढ़ी के लिए नयी चीजों को सिखते हैं. इस त्योहार के पारंपरिक गीत और पकवान न केवल महिलाओं के बीच एकता और सौहार्द्र को बढ़ावा देते हैं, बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ने का अवसर भी प्रदान करते हैं.

शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर करें पूजन

व्रत का पूजन सूर्यास्त से पूर्व करना उत्तम माना गया है. इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है. यदि अनजाने में दर्शन हो जाये तो स्यमंतक मणि की कथा का श्रवण करना चाहिए. व्रत के दिन चांदी, पीतल या मिट्टी से निर्मित शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर सबसे पहले गणेश पूजन किया जाये. इसके बाद पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार से पूजन कर मिष्ठान्न, सूखे मेवे और ऋतुफल का नैवेद्य अर्पित करें. पूजा के बाद हरितालिका व्रत कथा का श्रवण और रात्रि जागरण का विशेष महत्व है.

डॉ विनीत अवस्थी, ज्योतिषाचार्य

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