ईटी मैक्लुस्की ने रातू महाराजा से लीज पर ली थी दस हजार एकड़ भूमि
एंग्लो-इंडियन गांव मैक्लुस्कीगंज की स्थापना का आज 95 वर्ष पूरा
सुनील कुमार/रोहित कुमार
मैक्लुस्कीगंज/डकरा. रांची के खलारी प्रखंड में बसा एशिया का एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैक्लुस्कीगंज की स्थापना का आज 95 वर्ष पूरा हो चुका है, लेकिन आज तक यहां कुछ नहीं बदला है. तीन नवंबर 1930 को इस गांव की स्थापना हुई थी. तत्कालीन बंगाल विधानसभा के सदस्य मिस्टर ईटी मैक्लुस्की (अर्नेस्ट टिमोथी) ने रातू महाराजा से दस हजार एकड़ भूमि लीज पर ली थी. लीज से सड़क, नदी, पहाड़ को मुक्त रखा गया था. 1933 में द कोलोनाईजेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया लिमिटेड सोसायटी का गठन कर 350 एंग्लो इंडियन परिवार को बसाया गया था. उस समय गंज ऐसा समृद्ध हुआ कि लंदन जैसी सुविधाएं उपलब्ध हुई. यूरोपीय शैली में घर, चर्च, स्कूल, क्लब, माॅल, चौड़ी सड़कें उस पर चलनेवाली बग्घी के घोड़े के टाप और घुंघरू की आवाज लोगों को अपनी ओर चकाचौंध नजरों से खिंचती थी. मौसम, आबोहवा, एंग्लो परिवार की सभ्यता-संस्कृति, रहन-सहन आदि मैक्लुस्कीगंज को लंदन बना दिया था. इसलिए यह गांव पूरी दुनिया में छोटा लंदन के नाम से मशहूर भी हुआ. तत्कालीन राज्य बिहार के राजधानी पटना से दूरी, स्थानीय निवासियों से जुड़ाव नहीं रहने के कारण दो दशक बाद ही स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में एंग्लो इंडियन परिवार पलायन करने लगे और यहीं से गंज की जो दुर्दशा शुरू हुई, वह वर्तमान समय में लगभग समाप्ति के कगार पर है. कुछ एंग्लो परिवार आज भी मैक्लुस्कीगंज में नजर आ जाते हैं, लेकिन सभी अपने सुनहरे अतीत की याद में खस्ताहाल जिंदगी जी रहे हैं. 1934 में बने वाटर फाउंटेन आज भी सूखी अवस्था में सुरक्षित है, जो उस दौर की याद दिलाती हैं और लोग इसे देखने आते हैं.डॉन बॉस्को एकेडमी ने उम्मीद जगायी थी
1997 में डॉन बॉस्को एकेडमी पटना की एक ब्रांच गंज खुली. इस विद्यालय ने गंज को बदलने की एक उम्मीद जगायी. एंग्लो परिवार को एकेडमी से जुड़कर रोजगार मिला. बंगले हाॅस्टल और गेस्ट हाउस का रूप ले लिया. बाद में यहां का माहौल ऐसा बदला कि गंज एजुकेशन हब के नाम से प्रचलित होने लगा और डॉन बॉस्को एकेडमी की तर्ज पर जैनेट एकेडमी, सीजीएम सेवन स्टार्स एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान मैक्लुस्कीगंज में खुले, लेकिन उसी तेजी से गंज अवैध धंधों का केंद्र भी बनता चला गया, जिससे ये सभी शिक्षण संस्थाएं अब बस किसी तरह से चल रहे हैं. भारत सरकार द्वारा मैक्लुस्कीगंज को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्राम 2023 कांस्य श्रेणी का अवार्ड से जब नवाजा गया, तो यह सम्मान लेने के लिए यहां से ऐशली जॉन गोम्स दिल्ली गये थे, तब से वे मैक्लुस्कीगंज को खोयी प्रतिष्ठा वापस दिलाने का अभियान चला रहे हैं. ऐशली जॉन गोम्स ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन एसोसिएशन मैक्लुस्कीगंज शाखा के पूर्व प्रेसिडेंट स्वर्गीय जुडी गोम्स के पुत्र हैं.कई फिल्मों की शूटिंग हुई है
गंज में कई फिल्मों कि शूटिंग हुई है. गंज में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित अ डेथ इन द गंज नामक फिल्म बनी थी. बॉलीवुड कलाकार तनुजा, कल्की कोचलीन, ओम पुरी, कोंकणा सेन, अनुपम खेर, सुशांत सिंह राजपूत, रूपा गांगुली सहित कई बड़े क्रिकेट खिलाड़ी यहां आते रहे हैं. वन डे, सजना अनाड़ी, बिहार डायरीज़, मोनार दिके, छाया बाट सहित कई बंगला फिल्म की शूटिंग भी यहां हुई है.वाॅच टाॅवर से पूरे गंज को देखा जा सकता है
गंज के बीचो बीच वन विभाग द्वारा हेसालौंग पहाड़ी पर वॉच टॉवर बनवाया गया है. जहां से मैक्लुस्कीगंज एवं आसपास के नावाडीह, हेसालौंग, लपरा, मायापुर, जोभिया सहित अन्य गांव का दृश्य देखते ही बनता है. वॉच टॉवर से सूर्योदय व सूर्यास्त का नजारा देखना खास है.———————————मैक्लुस्कीगंज. 95 वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं बदला है एशिया के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव में
1933 में द कोलोनाईजेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया लिमिटेड सोसायटी का गठन कर 350 एंग्लो इंडियन परिवार को मैक्लुस्कीगंज में बसाया गया था.
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पर्यटक आते रहते हैं पर्यटकों का आना लगा रहता है. अक्टूबर से मार्च तक देश-विदेश से पर्यटक छुटियां बिताने पहुंचते हैं. कुछ रहने खाने की व्यवस्था भी डेवलप हुई है लेकिन सभी किसी तरह से चल रहे हैं.क्या खास है मैक्लुस्कीगंज में गंज में प्रवेश करते ही दुल्ली गांव जहां एक परिसर में सर्वधर्म स्थल मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर, गुरुद्वारा है.पास में सीता कुंड,1940 में बना संत जॉन द बैप्टिस्ट चर्च व रोमन कैथोलिक चर्च है.मायापुर, जोराकाठ पहाड़, चीनाटांड़ पहाड़ी पर शिवलिंग,सोनाडुबी नदी,डुमारो गांव,आजादी के संग्राम की कहानी समेटे निन्द्रा स्थित नौ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक, धारा प्रवाह बहती चटी नदी का पानी,उत्तर दिशा में डेगा-डेगी नदी और नदी पर बना पुल रांची व लातेहार जिला को आपस मे जोड़ती है,पास में झुनझूनियां झरना,डेगाडेगी नदी तट पर 14 जनवरी को मकर सक्रांती के अवसर पर लगने वाला मेला,मकर संक्रातीं के दिन यहां स्नान का विशेष महत्व है. बाला नदी,नकटा पहाड.एंग्लो समुदाय के सबसे वृद्ध व विख्यात नेम फेम् लेडी किटी टैक्सेरा से मिला जा सकता है.बसने के समय खास तरीके से बने बंगले यहां की खास धरोहरों में से एक है.मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पर्यटन मंत्री आए थे
पिछले महीने यहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पत्नी विधायक कल्पना सोरेन के साथ आए थे.उस समय रांची डीसी, एसपी सहित अन्य कई बड़े अधिकारी भी पहुंचे थे.बाद में पर्यटन मंत्री और उसके पहले मुख्य सचिव कई आईएएस अधिकारी के साथ आए थे.संकेत दिया गया कि पर्यटन के क्षेत्र में यहां कुछ बड़ा काम सरकार कराएगी.वर्तमान माहौल में काम बेकार साबित होगा:गोम्सफोटो 02 डकरा 04 ऐशली जाॅन गोम्स गंज वर्तमान समय में कई तरह के अवैध धंधों का केंद्र बना हुआ है.जब तक ये सभी धंधे बंद नहीं कराए जाते तब तक पर्यटन को लेकर यहां कोई भी काम कराना बेकार साबित होगा.यह सरकार को समझना चाहिए इसलिए मैंने मुख्य सचिव, पर्यटन सचिव, निदेशक, रांची उपायुक्त को मिलकर पूरी बात बताई है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
