वाघा बॉर्डर पर रांची के अभिषेक 10 सालों से कर रहे हैं परेड को होस्ट, भरते हैं लोगों में जोश, जानें उनका सफर

देश के विभिन्न प्रांत से हजारों की संख्या में लोग परेड का गवाह बनते हैं. रिट्रीट सेरेमनी के भव्य आयोजन में बीएसएफ का एक जवान लोगों में लगातार उत्साह जगाने का काम करता है

By Prabhat Khabar | February 3, 2023 9:38 AM

रांची, अभिषेक रॉय: बॉर्डर शब्द सुनते ही जोश उबाल मारने लगता है. बात भारत-पाकिस्तान की हो तो जोश का पैमाना भारतीयों के लिए दोगुना हो जाता है. अटारी-वाघा बॉर्डर, अमृतसर का जियो लाइन दोनों देश की ऐतिहासिक घटना का प्रतीक है. देश की आन-बान और शान को दर्शाते हुए यहां रोजाना रिट्रीट सेरेमनी होती है. यहां जियो लाइन पर आक्रामक परेड प्रदर्शन के बाद देश के तिरंगे को शाम ढलते ही उतारने की प्रक्रिया पूरी की जाती है.

देश के विभिन्न प्रांत से हजारों की संख्या में लोग परेड का गवाह बनते हैं. रिट्रीट सेरेमनी के भव्य आयोजन में बीएसएफ का एक जवान लोगों में लगातार उत्साह जगाने का काम करता है. यह शख्स कोई और नहीं केतारीबगान चुटिया, रांची के अभिषेक दीक्षित हैं. बैंड की धुन शुरू होते ही अभिषेक जियो लाइन के समक्ष पहुंच भारत माता की जय…, जय हिंद… के नारे लगाते हैं. इनके जोश और जज्बे की गूंज लोगों को रोमांचित करती है.

10 वर्षों से परेड को होस्ट कर रहे अभिषेक :

बीएसएफ में अभिषेक दीक्षित बतौर कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं. वहीं, बीते 10 वर्षों से अटारी-वाघा बॉर्डर पर अपनी सेवा दे रहे हैं. अभिषेक ने बताया कि 2013 में पहली बार रिट्रीट सेरेमनी को संबोधित करने की जिम्मेदारी मिली. रिहर्सल के बाद भी मन में बेहतर प्रदर्शन को लेकर कई सवाल थे, जबकि जियो लाइन पर पहुंचते ही देशवासियों के उत्साह देख सशक्त हो गया.

इसके बाद से सिलसिला जारी है. 25 मिनट का परेड देखने प्रत्येक दिन नये लोग पहुंचते हैं, उनका उत्साह लगातार प्रेरित करता हैं. ऐसे में भारत माता की रक्षा का विचार स्वत: आक्रामक भाव-भंगिमा और जोश जगाने का काम कर देती है.

पहले ही प्रयास में बीएसएफ में हुआ चयन :

अभिषेक मूल रूप से चैनपुर पलामू के गरदा गांव के निवासी हैं. प्रारंभिक शिक्षा सत गुरु स्कूल चैनपुर और इंटर की पढ़ाई जीएलए कॉलेज से पूरी की. 2011 में इंटर की पढ़ाई के दौरान बीएसएफ में वेकेंसी निकली थी, पहले ही प्रयास में सफल हुए. अभिषेक ने बताया कि युवाओं को देशभक्ति के लिए प्रेरित नहीं करना पड़ता.

यह ऐसी भावना है जो खुद-ब-खुद तैयार होती है. इसके बाद देश सेवा कैसे कर सकते हैं, इसका रास्ता तय करने की जरूरत है. ईमानदारी से किया गया प्रयास लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करता है. पिता अरविंद दीक्षित समेत पूरा परिवार अभिषेक के जोश को वीडियो के माध्यम से अन्य लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

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