पिपरवार में ईसा पूर्व 2000 वर्ष पुराने मेगालिथ का पता चला
पिपरवार कोयलांचल के जंगलों में ईसा पूर्व 2000 पुराने मेगालिथ का पता चला है.
प्रतिनिधि, पिपरवार.
पिपरवार कोयलांचल के जंगलों में ईसा पूर्व 2000 पुराने मेगालिथ का पता चला है. बचरा के प्रसिद्ध चित्रकार अनिरूद्ध कुमार शर्मा ने इस मेगालिथ की खोज की है. जानकारी के अनुसार मेगालिथ कोले स्टेशन के दक्षिण-पूर्व दिशा में पतरातू-मैक्लुस्कीगंज के सड़क किनारे डमारू पहाड़ की उत्तरी तलहटी में अवस्थित है. मेगालिथ परिसर के कब्रों के ऊपर लगे पत्थर अब भी सही-सलामत हैं. मेगालिथ के चारो ओर घना जंगल होने की वजह से यह अब तक आम लोगों की नजर से दूर था. आसपास पताल, नगडुआ व फूलझर गांवों में रहनेवाले मुंडा समाज के लोगों को भी इसकी जानकारी नहीं है. शायद यही वजह है कि मेगालिथ के कब्र में दफन सामग्री अब तक सुरक्षित हैं.क्या है मेगालिथ?
मेगालिथ ग्रीक भाषा के शब्दों से बना है, जिसका अर्थ होता है विशाल पत्थर. स्थानीय भाषा में इसे हरगड़वा, हरगड़ी व पत्थलगड़ा के नाम से जाना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार मेगालिथ प्रागैतिहासिक काल की ऐसी संरचना है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों के शवों को दफन कर रखते थे. उसके ऊपर कई बड़े-बड़े पत्थरों को बिना सीमेंट गारे के एक-दूसरे से फंसा कर स्मारक का रूप दिया जाता था. इतिहासकारों के अनुसार मेगालिथ झारखंड में ईसा पूर्व 2200 से 5000 वर्ष पुराने हैं. इतिहासकार इसे मुंडा समाज का धरोहर बताते हैं. पिपरवार में बेंती का हरगड़ी, नगडुआ का हरगड़वा, पकरी-बरवाडी का मेगालिथ मुख्य रूप से प्रसिद्ध है. मेगालिथ का संबंध लोहा गलाने व उससे धारदार हथियार बनाने से भी जुड़ा है. जहां-जहां मेगालिथ पाये जाते हैं, उसके आसपास परिष्कृत लोहा पत्थर अवश्य पाया जाता है. इन पत्थर में लोहे का गुण विद्यमान होता है. बताया जाता है कि उस काल के लोग धार्मिक व कृषि कार्य के लिए मेगालिथ के पत्थरों से खगोलीय जानकारी प्राप्त करते थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
