विश्व धरोहर दिवस आज : बौद्ध सर्किट की बात, पर बौद्ध मठ हो रहा नजरअंदाज

समय रहते इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की है जरूरत रांची : लोहरदगा के कैरो में छठी शताब्दी पूर्व का एक बौद्ध मठ जीर्ण-शीर्ण हालत में है़ कैरो प्रखंड कार्यालय के ठीक सामने स्थित यह मठ सरकार और प्रशासन की नजर में है, लेकिन पुरातत्व विभाग बेखबर है. झारखंड में बौद्ध सर्किट की बात करने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2019 9:41 AM
समय रहते इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की है जरूरत
रांची : लोहरदगा के कैरो में छठी शताब्दी पूर्व का एक बौद्ध मठ जीर्ण-शीर्ण हालत में है़ कैरो प्रखंड कार्यालय के ठीक सामने स्थित यह मठ सरकार और प्रशासन की नजर में है, लेकिन पुरातत्व विभाग बेखबर है. झारखंड में बौद्ध सर्किट की बात करने वाली सरकार को भी इससे मतलब नहीं लगता. बेड़ो कॉलेज के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ मथुरा राम उस्ताद के अनुसार झारखंड का यह इलाका दुनिया के सबसे प्राचीनतम चट्टानों वाला क्षेत्र है, जहां मानव सभ्यता सबसे पहले पनपी होगी.
असुर कालीन सभ्यता के दौरान इस इलाके में घुमंतू प्रवृत्ति के लोग रहते थे. लोहा गला कर उपकरण और हथियार बनाये जाते थे. कैरो के पास नंदिनी नदी के किनारे करीब दो एकड़ क्षेत्रफल में बड़े पैमाने में लोहे गलाने और इससे हथियार व उपकरण बनाने के प्रमाण भी मिले हैं. इसलिए इस जगह का नाम लोहरदगा हुआ. छठी शताब्दी पूर्व के किसी समय में बौद्ध भिक्षु संभवत: इस इलाके में शांति का पैगाम लेकर आये होंगे. उन्होंने ही कैरो में बौद्ध मठ बनाया, जो अब जर्जर हो गया है.
12 पुरातात्विक स्थलों पर करना है काम, इसमें सात पर विवाद
आर्कियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इंडिया (एएसआइ या भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण) को राज्य के 12 प्राचीन इमारत व पुरातात्विक स्थलों की खुदाई या संरक्षण का काम करना है. इनमें सात, खूंटी जिले के पांच असुर स्थलों खूंटी टोला, कुंजाला, सारिदकेल, कटहर टोली व हंसा सहित सरायकेला-खरसावां व पूर्वी सिंहभूम के अन्य दो अधिसूचित स्थलों पर एएसआइ तथा रैयतों या भू स्वामियों के बीच विवाद है.
ग्रामीणों ने नहीं करने दिया सर्वे, सरकार भी नहीं ले रही रुचि
लोहरदगा के भंडरा के खरमातू गांव में भी असुर काल के महापाषाण और मध्य पाषाण काल के छोटे औजार और अन्य चीजें मौजूद हैं. पर यहां भी ग्रामीणों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सर्वे नहीं करने दिया. हालांकि यह स्थल अभी अधिसूचित नहीं है. विवाद खत्म करने में राज्य सरकार भी रुचि नहीं ले रही. वहीं इसका अपना पुरातात्विक विंग पंगु है. समय रहते इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की जरूरत है.

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