झारखंड आंदोलन के क्रांतिकारी कवि थे रणविजय नाथ शाहदेव

गिरिधारी राम गोंझू लाल रणविजय नाथ शाहदेव का न होना एक बड़ी क्षति है. इनका जाना झारखंड का इतिहास चले जाने के समान है. लाल साहब झारखंड आंदोलनकारी व क्रांतिकारी कवि के रूप में बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे. उनका जन्म लालगंज (लापुंग) में पांच फरवरी 1940 को हुआ था. बचपन से ही उन्हें नागपुरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2019 8:16 AM
गिरिधारी राम गोंझू
लाल रणविजय नाथ शाहदेव का न होना एक बड़ी क्षति है. इनका जाना झारखंड का इतिहास चले जाने के समान है. लाल साहब झारखंड आंदोलनकारी व क्रांतिकारी कवि के रूप में बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे.
उनका जन्म लालगंज (लापुंग) में पांच फरवरी 1940 को हुआ था. बचपन से ही उन्हें नागपुरी गीतों की राग रागिनी का परिचय और प्रशिक्षण पिता से मिला था. उन्हें झारखंडी नेतृत्व एवं नागपुरी संगीत विरासत में मिला था. आज भी इनके जोड़ का कोई दूसरा क्रांतिकारी वीर रस का रसराज कवि और वक्ता दिखायी नहीं देता.
उन्होंने राजनीति शास्त्र एवं इतिहास में एमए करने के साथ कानून की पढ़ाई भी की. झारखंड आंदोलन में ये यौवन की दहलीज पर प्रवेश करते ही कूद पड़े. पढ़ाई और झारखंड आंदोलन साथ साथ चलता रहा. 1957 से लाल रणविजय पूरी तरह मारंग गोमके जयपाल सिंह के साथ सक्रिय सहयोगी के रूप में अखिल भारतीय झारखंड पार्टी में आ गये. अपने व्यक्तित्व के चलते ये जयपाल सिंह के प्रिय पात्र हो गये.
झारखंड पार्टी की हर गतिविधि में ये खुलकर भाग लेते थे. यह सिलसिला 20 जून 1963 तक मारंग गोमके के कांग्रेस के विलय के पूर्व तक चलता रहा. मारंग गोमके के अप्रत्यक्ष निर्देश पर लाल रणविजय ने इस विलय में साथ नहीं दिया. अखिल भारतीय झारखंड पार्टी को इन्होंने ऊंचा उठाये रखा.
लाल साहब की कविता नरसिंघा बाजी अब नागपुर (झारखंड) ने झारखंड आंदोलन में बिगुल फूंकने का काम किया. सोये हुए झारखंडियों में इस कविता ने प्राण फूंका. इसके अतिरिक्त व्यंग्य रचनाअों में गांधी का नाम धरू आपन पेट भरू ने राजनीतिबाजों पर करारा प्रहार किया.
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं