बाबा शिबू सोरेन संथाली समाज को जागरूक करने वालों का हौसला बढ़ाते, नौकरी देने वाला बनने की नसीहत देते
बाबा शिबू सोरेन संथाली समाज को जागरूक करने वालों का हौसला बढ़ाते, नौकरी देने वाला बनने की नसीहत देते
शिबू सोरेन के बचपन के दोस्त काशीनाथ बेदिया मंगलवार सुबह नौ बजे ही नेमरा गांव पहुंच गये थे. ठेकानाला दाह संस्कार स्थल पर सुबह से ही जाकर बैठे हुए थे, आंखे नम थी. कभी खड़ा तो घंटों जमीन पर बैठ जाते. दोपहर 12 बजे के बरीब बातचीत में बताया कि बरलंगा स्कूल में शिबू सोरेन के साथ पढ़ाई करते थे. इसके बाद बरलंगा से गोला स्कूल में पढ़ाई के लिए शिबू सोरेन चले गये. उनके बड़े भाई राजाराम मैट्रीक टेस्ट परीक्षा में बेहतर अंक लाये थे. पिता सोबरन मांझी इस खुशी में उनके लिए नास्ता लेकर जा रहे थे. उस समय टाटा-बरकाकाना ट्रेन चला करता था. जिससे शिबू सोरेन के पिता गोला स्कूल आ रहे थे. जब उनकी हत्या हो गयी तो कुछ दिनों के लिए छात्रावास में रहना छोड़ दिये. एक ही कमरा में वर्षो साथ रहने की पुरानी बाते अभी खुब याद आ रही है. यह बाेलकर रोने लगे.
वहीं ताराचंद्र मंडल 80 वर्ष उपर बरगा गांव ने बताया कि शिबू सोरेन जब भी नेमरा में रहते. हमारे घर के बाहर आकर बैठते थे. मुखिया के चुनाव में हम दोनों गांव में घुमकर वोट मांगे थे. लेकिन शुरू से दारू, हड़िया का सख्त विरोधी थे. महाजनी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए झारखंड में घुमने लगे. तब से कम मुलाकात होती थी. लेकिन हमेशा गांव के पुराने लोगों से हाल-चाल लेते थे.रंगकर्मी मुन्ना लोहरा भी थे मर्माहत
हेमंत सोरेन के हमशक्ल रंगकर्मी मुन्ना लोहरा रांची से नेमरा गांव पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि एक फिल्म में काम करने के दौरान दाढ़ी व बाल बढ़ाया था. वेशभूषा में बदलाव के बाद पहली बार गुमला किसी कार्यक्रम में शामिल हुआ. मेरा गेटप देखकर गांव के लोग आकर्षित व प्रभावित हुए. इसके बाद से मैं दाढ़ी व बाल को और सजा-संवारकर रखने लगा. गांव-गांव में लोग हेमंत सोरेन के हमशक्ल के रूप में जानने लगे. मुन्ना लोहरा ने बताया कि शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन से इतना प्रभावित हैं कि हर दिन दोनों के संदेशो व आदर्शो का पालन करते हैं. आज काफी दु:खी हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
