अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और त्याग की प्रतिमूर्ति थे सरबंसदानी : प्रधानाचार्य
अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और त्याग की प्रतिमूर्ति थे सरबंसदानी : प्रधानाचार्य
कैरो़ प्रखंड मुख्यालय स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनायी गयी. कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानाचार्य प्रमोद कुमार ने दीप प्रज्वलन और गुरु गोविंद सिंह जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया. विद्यालय के जयंती प्रमुख शांति नाग ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए विषय प्रवेश कराया. समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानाचार्य प्रमोद कुमार ने गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि गुरु जी एक महान योद्धा, चिंतक, कवि और आध्यात्मिक नेता थे. सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उन्होंने धर्म की रक्षा और अन्याय को मिटाने के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े. उन्होंने देश और धर्म के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया, जिसके कारण उन्हें सरबंसदानी (पूरे परिवार का दानी) कहा जाता है. प्रधानाचार्य ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन प्रेम, सदाचार और भाईचारे का संदेश देता है. उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को न किसी को डराना चाहिए और न ही किसी से डरना चाहिए. उन्होंने अपने उपदेश में कहा था— भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन. उनके जीवन का मूल दर्शन था कि धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है. इस अवसर पर शिक्षिका अंजली सोनी, देवती साहू, आराध्या कुमारी और प्रभा कुमारी ने भी अपने विचार साझा किये. कार्यक्रम में शांति नाग, रीता यादव, विनोद गोप, देवंती कुमारी, गणेश साहू, संदीप कुमार, अमृता कुमारी, सरोज कुमारी और सुभाषिनी वंदना कुजूर सहित समस्त शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
