Jamshedpur News : 121 साल पहले पीएन बोस के एक पत्र से बसी स्टील सिटी, पढ़ें वह लेटर

Jamshedpur News : भू-वैज्ञानिक पीएन बोस ने जेएन टाटा को 24 फरवरी 1904 को एक पत्र भेजा था. 24 फरवरी को उस भेजे गये पत्र के आज 121 वर्ष पूरे हो गये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | February 24, 2025 1:04 AM

आज ही के दिन 1904 को पीएन बोस ने जेएन टाटा को लिखा था पत्र

1908 में शुरू हुआ टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी का निर्माण

16 फरवरी, 1912 को उत्पादन हुआ शुरू

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भू-वैज्ञानिक पीएन बोस ने जेएन टाटा को 24 फरवरी 1904 को एक पत्र भेजा था. 24 फरवरी को उस भेजे गये पत्र के आज 121 वर्ष पूरे हो गये हैं. स्व. पीएन बोस ने जेएन टाटा को जो पत्र लिखा था, उसकी वजह से देश के पहले इस्पात कारखाना टाटा आयरन एंड कंपनी लिमिटेड, वर्तमान में टाटा स्टील की स्थापना 26 अगस्त 1907 को हुई. उस समय साकची में सिर्फ जंगल-झाड़ था. 1,500 एकड़ जमीन की आवश्यकता वाले उद्योग को चलाने के लिए टाटा ने 15,000 एकड़ के शहर का प्रबंधन किया. मात्र 2.31 करोड़ (2,31,75,000) रुपये की मूल पूंजी के साथ भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) के रूप में टाटा स्टील को पंजीकृत किया गया. 1908 में निर्माण शुरू हुआ और 16 फरवरी, 1912 को स्टील से उत्पादन शुरू हुआ.

भारतीय इस्पात उद्योग की नींव रखी

1904 में पीएन बोस ने जेएन टाटा को लिखे पत्र में मयूरभंज में उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क और झरिया में प्रचुर मात्रा में कोयले की उपलब्धता पर प्रकाश डाला. उनकी इस जानकारी ने टाटा समूह की औद्योगिक योजनाओं को नया आयाम दिया और आगे चलकर साकची में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया. पीएन बोस का पत्र न केवल इतिहास की दिशा बदलने वाला साबित हुआ. बल्कि इसने भारतीय इस्पात उद्योग की नींव रखी और देश के औद्योगिक भविष्य को आकार दिया. इस तरह से, पूर्वी भारत के आदिवासी क्षेत्र में टाटा अभियान दल का प्रवेश हुआ, जो अब तक भारत के पहले स्टील प्लांट की स्थापना के लिए संभावित स्थान की खोज कर रहा था. भू-वैज्ञानिक पीएन बोस द्वारा जेएन टाटा को लिखा गया पत्र ऐतिहासिक बन गया. जिसने भारतीय इस्पात उद्योग की नींव रखी और देश के औद्योगिक भविष्य को आकार दिया.

स्टील उत्पादन के लिए कच्चे माल की खोज मध्य प्रांत के चंदा जिले से शुरू

टाटा परिवार की स्टील उत्पादन के लिए कच्चे माल की खोज मध्य प्रांत के चंदा जिले से शुरू हुई, जहां उन्हें लोहारा में लौह अयस्क और वरौरा में कोयले के भंडार मिले. हालांकि, दोनों संसाधन स्टील निर्माण के लिए अनुपयुक्त साबित हुए. इसी दौरान, नागपुर सचिवालय की एक यात्रा के दौरान, दोराबजी टाटा का एक अप्रत्याशित अनुभव उनकी खोज को नया मोड़ देने वाला साबित हुआ. जब वे कमिश्नर से मिलने का इंतजार कर रहे थे, तो उन्होंने पास के एक संग्रहालय का दौरा करने का फैसला किया. वहीं उनकी नजर एक रंगीन भूवैज्ञानिक मानचित्र पर पड़ी, जिसमें धल्ली-राजहरा के समृद्ध लौह अयस्क भंडार दर्शाये गये थे. हालांकि, इस क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता का लौह अयस्क मौजूद था, लेकिन कोक बनाने योग्य कोयले और जल संसाधनों की अनुपस्थिति के कारण इसे भी स्टील निर्माण के लिए अनुपयुक्त माना गया.

कौन थे पीएन बोस

पीएन बोस का पूरा नाम प्रमथनाथ बोस है. 12 मई 1855 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गायपुर के गांव में जन्मे भूविज्ञानी पीएन बोस ने लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उनके पिता तारा प्रसन्न आबकारी विभाग में कार्यरत थे. उन्होंने एमए की पढ़ाई के बाद वर्ष 1874 में गिल क्राइस्ट स्कॉलरशिप की परीक्षा दी और प्रथम स्थान प्राप्त किया. उन्हें लंदन विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला. 1879 में उन्होंने रॉयल स्कूल ऑफ माइंस की परीक्षा पास की और भू-गर्भ विज्ञान में प्रथम आये. शिक्षा विभाग व जियोलॉजिकल विभाग में उन्हें नियुक्त किया गया. मगर नौकरी छोड़ दी. ब्रिटिश रूल के अनुसार किसी भारतीय को उच्च पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता था. 1880 में तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया ने उन्हें जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया. 23 वर्ष तक उन्होंने इस पद पर सेवा दी. फिर इस्तीफा दे दिया. मयूरभंज के राजा रामचंद्र भंजदेव ने उन्हें अपने राज्य में नौकरी का न्योता दिया, जिसे बोस ने स्वीकार कर लिया. 79 वर्ष की आयु में 27 अप्रैल 1934 में उनका निधन हो गया. बोस ने ही पहली बार ओडिशा के मयूरभंज जिला में लौह अयस्क की खोज की थी. बोस ने ही असम में पेट्रोलियम भंडार होने की जानकारी दी थी. उन्होंने मध्य प्रदेश के धुली व राजहरा में लौह अयस्क खान की खोज की.

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