संस्कृत केवल भाषा नहीं भारत की आत्मा
संस्कृत दिवस पर डॉ वीरेंद्र कुमार मौर्य ने कही
चौपारण. श्रावण की पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के रूप में जाना जाता है. यह केवल एक भाषा की स्मृति का उत्सव नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, दर्शन, विज्ञान और ज्ञान के उस विराट भंडार की पुनःप्राप्ति का अवसर है, जिसने युगों तक समस्त मानवता का मार्गदर्शन किया है. संस्कृत न केवल विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, बल्कि यह अत्यंत वैज्ञानिक, सुव्यवस्थित और उच्चतम व्याकरणिक ढांचे वाली भाषा है. पाणिनि की अष्टाध्ययी, पतंजलि का योगसूत्र, वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, इन सभी रचनाओं ने न केवल भारतीय सभ्यता को दिशा दी, बल्कि विश्व को भी नैतिकता, आध्यात्मिकता और विवेक का पाठ पढ़ाया है. ये बातें डॉ वीरेंद्र कुमार मौर्य ने संस्कृत दिवस पर शनिवार को कही. वे संस्कृत शिक्षक राजकीय उउवि बरहमौरिया में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि हम डिजिटल और वैश्वीकरण के युग में प्रवेश कर चुके हैं. संस्कृत का महत्व और भी अधिक हो गया है. कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने भी यह स्वीकार किया है. संस्कृत भाषा कंप्यूटर अनुवाद और कृत्रिम बुद्धिमत्ता एआइ के लिए अत्यंत उपयुक्त है. आज हमारी अपनी यह मातृभाषा धीरे-धीरे उपेक्षा की शिकार हो रही है. विद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वालों की संख्या घट रही है. संस्कृत दिवस हमें याद दिलाता है कि हमें इस भाषा को केवल श्लोकों और मंत्रों तक सीमित नहीं रखना है, बल्कि इसे व्यावहारिक जीवन, शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में पुनः स्थापित करना है. संस्कृत को जीवंत बनाना केवल भाषा को बचाना नहीं है. यह भारत की आत्मा को पुनः पहचानना है. आवश्यकता है कि संस्कृत को आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाते हुए नयी पीढ़ी को इसकी सुंदरता, शक्ति और उपयोगिता से परिचित कराया जाये. तभी हम गर्व से कह सकेंगे संस्कृतं जीवतु, भारतं दीप्तिं यायात्.
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