नक्सली बनने की कहानी : चोरी के आरोप में लोगों ने पिलाया पेशाब, बदले की आग में लजीम अंसारी ने उठा लिया हथियार

पुलिस मुठभेड़ में मारा गया इनामी नक्सली लजीम अंसारी की पशु व्यवसायी से नक्सली बनने तक की अजीब कहानी है. परिजनों की माने तो वह कभी नक्सली बनना चाहता भी नहीं था. वह तो नक्सली के नाम से डरता था. लेकिन उसके साथ कुछ ऐसी घटना घटी कि उसने हथियार उठा लिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 3, 2023 7:12 PM

गुमला, दुर्जय पासवान. पुलिस मुठभेड़ में मारा गया इनामी नक्सली लजीम अंसारी की पशु व्यवसायी से नक्सली बनने तक की अजीब कहानी है. परिजनों की माने तो वह कभी नक्सली बनना चाहता भी नहीं था. वह तो नक्सली के नाम से डरता था. परंतु, उसके साथ जिस प्रकार की क्रूरता पूर्वक घटना घटी. वह पशु व्यवसायी से सीधे नक्सली बन गया और हथियार उठा लिया. मवेशी चोरी का आरोप लगाकर उसे खरका गांव में कुछ लोगों ने पीटा था. इतना ही नहीं, उसे पेशाब भी पिला दिया था. यह मामला, माओवादी के शीर्ष नेता बुद्धेश्वर उरांव (अब स्वर्गीय) तक पहुंचा था. इस मामले को लेकर बुद्धेश्वर ने जन-अदालत भी लगाया था. जहां बुद्धेश्वर ने फैसला सुनाते हुए गायब हुए पशुओं को लजीम से खोजकर ग्रामीणों को सौंपने के लिए कहा था.

भाकपा माओवादी में शामिल हो गया लजीम

लजीम ने एक सप्ताह की कड़ी मेहनत के बाद पशुओं को खोज निकला और पशु मालिक को उनका पशु सौंप दिया था. परंतु, जिस प्रकार उसे पीटा गया, पेशाब पिलाया गया. उसे बेइज्जत किया गया. उसे यह सहन नहीं आया. वह नक्सली बुद्धेश्वर से संपर्क कर भाकपा माओवादी में शामिल हो गया. हालांकि, बुद्धेश्वर ने लजीम की परीक्षा लेने के लिए एक बड़ा जिम्मा सौंपा. खरका गांव के शैलेस तिवारी की हत्या की जिम्मेवारी लजीम अंसारी को दी गयी. लजीम ने बेखौफ होकर सात साल पहले शैलेस तिवारी की उस समय हत्या कर दिया. जब शैलेस गुमला से अपने घर टेंपो में बैठकर जा रहा था. सरेआम शैलेस की हत्या करने के कारण लजीम सुर्खियों में आ गया और बुद्धेश्वर ने उसे अपने दस्ते में शामिल कर एरिया कमांडर की जिम्मेवारी सौंप दी. इसके बाद लजीम ने आतंक मचाना शुरू कर दिया. लजीम ने एक दर्जन से अधिक पुलिस व लोगों की हत्या में शामिल रहा है. यहां तक कि वह आइइडी बम तैयार करने का प्रशिक्षण बूढ़ा पहाड़ में जाकर लिया था. इसलिए उसके बनाये आइइडी बम का उपयोग कई जगह हुआ था.

पिता ने कहा : कुछ लोगों से परेशान था मेरा बेटा

पिता बक्सुद्दीन अंसारी ने बताया कि लजीम अंसारी आठ साल पूर्व भाकपा माओवादी में शामिल हुआ था. चूंकि वह मवेशी खरीद-बिक्री का काम करता था तो इसी बीच खरका के एक समुदाय का 14 काड़ा की चोरी का आरोप लजीम में लगाकर उसके साथ मारपीट व पेशाब पिलाकर उसका वाहन छीन लिया गया था. इस बात को लेकर माओवादियों द्वारा लगने वाले जन अदालत में भी फैसला सुनाया गया था. इसके बाद लजीम ने सभी काड़ा को बरामद कर उसके मालिकों को सौंप दिया. उसके बाद भी खरका गांव के कुछ लोग उसे परेशान करते थे. माओवादियों के जनअदालत में बुद्धेश्वर से उसका संपर्क होने पर वह धीरे धीरे उनके नजदीक चला गया. उसके बाद से वह संगठन से जुड़ने के बाद घर नहीं लौटा. संगठन से जुड़ने के बाद वह ड़ेढ़ माह बाद घर आया था. उसके बाद कभी घर नहीं आया.

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आइइडी बम बनाने में हाथ झुलस गया था

लजीम अंसारी का हाथ व शरीर का कुछ हिस्सा एक माह पहले झुलस गया था. बताया जा रहा है कि कुरूमगढ़ इलाके में प्रशासन द्वारा मोबाइल टावर लगाया गया है. नक्सली नहीं चाहते हैं कि मोबाइल टावर लगे. इसके लिए लजीम अंसारी को जिम्मेवारी मिली थी कि कुरूमगढ़ में लगे सभी मोबाइल टावर को आइइडी ब्लास्ट कर उड़ा दें. लजीम एक माह पहले आइइडी बना रहा था. इसी दौरान हाथ में बम फट गया. जिससे उसका हाथ व शरीर का कुछ हिस्सा झुलस गया था. जिस कारण वह मोबाइल टावर उड़ा नहीं सका और शुक्रवार की देर शाम को पुलिस मुठभेड़ में मारा गया.

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