प्रभात खबर आपके द्वार : असुर जनजाति की जिंदगी, गांव का स्कूल बंद, ग्रामीण खेत का पानी पीते हैं, बिजली भी नहीं

असुर जनजाति की जिंदगी संकट में है.

By VIKASH NATH | October 19, 2025 6:42 PM

हाल : चैनपुर प्रखंड के तिलवरी पाठ की. : तिलवरी पाठ में 100 आदिम जनजाति रहते हैं. परंतु सरकारी सुविधा नहीं. : असुर जनजाति के लोगों ने कहा कि हमारी योजना कागजों तक सिमटा है. 19 गुम 23 में तिलवरी पाठ गांव के ग्रामीण 19 गुम 24 में श्रमदान से सड़क बनाते ग्रामीण 19 गुम 25 में खेत के इसी डाड़ी का पानी पीते हैं 19 गुम 26 में प्रशासन ने बंद कर दिया स्कूल 19 गुम 27 में आंगनबाड़ी केंद्र इसी में चलता है 19 गुम 28 में गांव जाने वाली सड़क का हाल 19 गुम 29 से लेकर 34 तक में ग्रामीण समस्या बताते दुर्जय पासवान, गुमला असुर जनजाति की जिंदगी संकट में है. क्योंकि गांव का स्कूल बंद हो गया. ग्रामीण खेत का गंदा पानी पीते हैं. क्योंकि, चापानल नहीं है. खेत में डाड़ी कुआं है. दुर्भाग्य की बात है. गांव में बिजली भी नहीं. जबकि सरकार व प्रशासन का दावा है. हर गांव का विद्युतिकरण कर दिया गया है. परंतु असुर जनजाति गांव में बिजली नहीं जलती है. यह कहानी, गुमला जिला अंतर्गत चैनपुर प्रखंड के मालम पंचायत स्थित तिलवरी पाठ की. इस गांव में असुर जनजाति निवास करते हैं. आबादी करीब 100 है. ग्रामीणों की माने तो आजादी के 77 साल गुजर गया. परंतु गांव में सरकारी योजना सिर्फ कागजों तक सिमटा हुआ है. ग्रामीण कहते हैं. कभी कभार अधिकारी आते हैं. अधिकारी गांव का विकास का वादा तो करते हैं. परंतु, कभी गांव के विकास के लिए पहल नहीं की गयी. गांव का कितना विकास हुआ है. अगर हकीकत देखनी है तो वरीय अधिकारी गांव आकर देख सकते हैं. तिलवरी पाठ जाने की सड़क कच्ची है. बरसात में सड़क चलने लायक नहीं रहता है. बरसात खत्म होने के बाद ग्रामीण श्रमदान कर सड़क बनाते हैं. ताकि किसी प्रकार पैदल व साइकिल से सफर कर सके. आंगनबाड़ी केंद्र भाड़े के भवन में चलता है गांव में एक आंगनबाड़ी केंद्र है. सेविका भी है. परंतु, इसका अपना भवन नहीं है. जिस कारण फिलहाल में भाड़े के खपड़ानुमा भवन में आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन हो रहा है. वह भी भवन ठीक नहीं है. परंतु, मजबूरी में बच्चे इसी आंगनबाड़ी केंद्र में जाते हैं. ताकि उन्हें पढ़ाई का समझ बुझ हो सके. शिक्षा विभाग ने स्कूल बंद कर दिया असुर जनजाति, जिसे विलुप्त प्राय: जनजाति कहा जाता है. क्योंकि, सरकारी सुविधा नहीं मिलने के कारण यह जनजाति धीरे धीरे विलुप्त होने के कगार पर आ गया है. इसका उदाहरण है. गांव का स्कूल बंद होना. ग्रामीण कहते हैं. शिक्षा विभाग नहीं चाहता कि हमारे बच्चे पढ़े. इसलिए स्कूल बंद कर दिया. गांव के स्कूल को बेसनापाठ स्कूल में मर्ज कर दिया गया है जो तिलवरी पाठ से दो किमी दूर है. दूषित पानी पीने को मजबूर हैं ग्रामीण तिलवरी पाठ में न तो कुआं है. न सरकारी चापानल है. यहां शुद्ध पानी पीने की कोई व्यवस्था नहीं है. जबकि सरकार का दावा है. हर गांव को शुद्ध पानी मिल रहा है. परंतु तिलवरी गांव की हकीकत यह है. यहां पीने के लिए शुद्ध पानी के नाम पर पूर्वजों के समय खेत में खोदा गया डाड़ी कुआं है. यह पानी दूषित रहता है. परंतु इसी का सेवन ग्रामीण करते हैं. हालांकि, गांव में दो जलमीनार बना है जो बेकार है. ग्रामीणों ने कहा : प्रशासन हमारी फरियाद सुने ग्रामीण मबुधना असुर, ख्रीस्टीना असुर, डहरु असुर, माइकल तिग्गा, पंखरासियुस उरांव, ज्योति कुजूर ने कहा कि गांव में रोजगार की साधन नहीं है. इसलिए कई लोग पलायन कर गये हैं. गांव में सरकारी योजना महज दिखावा है. गांव में पानी का संकट है. तीन किमी दूर से जाकर पानी लाना पड़ता है. कपड़ा से छानकर डाड़ी कुआं का पानी पीते हैं. गांव में बिजली नहीं रहने से अंधेरे में रहने को विवश है. आने जाने की सुविधा नहीं है. जयपुर गांव तक पैदल जाना पड़ता है. स्कूल था. परंतु, दूसरे स्कूल बेसनापाठ में मर्ज कर दिया है. तिलवरी पाठ में असुर व कोरवा जनजाति के लोग निवास करते हैं. हर साल बरसात में सड़क खराब हो जाती है. बरसात खत्म होने के बाद सड़क की मरम्मत करते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि हमलोगों ने गांव की समस्या दूर करने के लिए प्रशासन से कई बार कहा. परंतु, प्रशासन हम ग्रामीणों की बातों को नहीं सुन रहा है. ग्रामीणों ने प्रशासन से गांव की फरियाद सुनते हुए समस्या दूर करने की मांग की है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है