राज्य में सर्वाधिक वन पट्टा बांट गुमला ने बनाया नया कीर्तिमान
आइटीडीए ने एक साल में जिले में 65 लोगों का दिया वनपट्टा
गुमला. जिला प्रशासन ने अनुसूचित जनजाति समेत अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 व नियम 2008 के अंतर्गत वन पट्टा वितरण में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. एक वर्ष (वित्तीय वर्ष 2025-26) में गुमला जिले में 65 वन पट्टा का वितरण किया गया है. झारखंड राज्य स्थापना के रजत जयंती पर 59 सामुदायिक वन पट्टा व छह व्यक्तिगत वन पट्टा का वितरण किया गया है. जिला कल्याण पदाधिकारी आलोक रंजन ने बताया कि राज्य में सर्वाधिक वन पट्टा वितरण कर गुमला जिले ने नया कीर्तिमान बनाया है. उन्होंने बताया कि झारखंड राज्य स्थापना की रजत जयंती के उपलक्ष्य में जिला अंतर्गत सदर प्रखंड में एक वनपट्टा, रायडीह प्रखंड में 20, घाघरा प्रखंड में सात, सिसई प्रखंड में दो, बिशुनपुर प्रखंड में पांच, चैनपुर प्रखंड में 11, बसिया प्रखंड में सात व कामडारा प्रखंड में छह अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों को सामुदायिक वन पट्टा दिया गया है. इन सभी 59 लोगों को कुल 15042.42 एकड़ जमीन का वन पट्टा दिया गया है. चैनपुर प्रखंड के जिरमी गांव में पांच व मनातू गांव में एक व्यक्ति को निजी वन पट्टा दिया गया है. इन लोगों को कुल 1.15 एकड़ जमीन का वन पट्टा दिया गया है. उन्होंने बताया कि वन अधिकार अधिनियम 2006 (वन अधिकारों की मान्यता) के तहत अनुसूचित जनजाति समेत अन्य परंपरागत वन निवासी को समेकित जनजाति विकास अभिकरण (आइटीडीए) से वनपट्टा दिये जाने का प्रावधान है. सरकार की इस योजना से ऐसे वन निवासी जो काफी लंबे समय (पिछले कई पीढ़ियों) से वनक्षेत्र में निवास करते आ रहे हैं और जिनके पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे लोगों को लाभान्वित किया जा रहा है. ऐसे लोगों को सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जा रही निर्धारित भूमि पर स्वामित्व का अधिकार, आजीविका के लिए खेती-बारी समेत अन्य कार्यों का अधिकार व खाद्य सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है. वन भूमि पर अधिकार का दावा एक सदस्य या समुदाय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी कम से कम तीन पीढ़ियों यानी 75 वर्ष की कट ऑफ तिथि 13 दिसंबर 2005 से पहले हो.
घर बनाने, खेती-बारी करने व जीविका का मिला साधन
इस अधिनियम के तहत जिला अंतर्गत पारंपरिक वन निवासियों को दो प्रकार का वन पट्टा व्यक्तिगत व सामुदायिक वन पट्टा मुहैया कराया जा रहा है. वन भूमि पट्टा के माध्यम से पारंपरिक वन निवासियों को घर बना कर रहने, खेती-बारी करने अथवा जीविका से संबंधित अन्य कार्यों का अधिकार दिया जा रहा है. इससे न केवल पारंपरिक वन निवासियों को जमीन पर मालिकाना हक मिल रहा है, बल्कि उनके माध्यम से जंगलों की सुरक्षा, जंगलों में पारिस्थितिक संतुलन, जैव विविधता संरक्षण को भी मजबूती मिलेगी और वन संरक्षण की व्यवस्था मजबूत होगी.
संवेदनशीलता के साथ काम कर रहा है प्रशासन : उपायुक्त
उपायुक्त प्रेरणा दीक्षित ने कहा है कि गुमला जैसे आदिवासी बहुल जिले के लिए यह गौरव की बात है कि काफी कम समय में 65 लोगों को वन पट्टा दिया गया है. उपायुक्त ने कहा कि जिला प्रशासन जिला व जिले को लोगों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है. इसके लिए जिला प्रशासन संवेदनशीलता के साथ कार्य कर रहा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
