उग्रवाद प्रभावित पलामू और गुमला जिले में विकास के साथ कदमताल कर रही आधी आबादी

सिलाई मशीन पर सपने बुन रहीं महिलाएं पलामू से लौट कर बिपिन सिंह अनिश्चितता से हुनर की ओर, गरीबी से सशक्तीकरण की ओर व बेरोजगारी से उद्यमिता की ओर. यह कहानी है मेदिनीनगर की स्वावलंबी महिलाओं की. कभी पलामू के अधिसंख्य इलाकों में गोलियों की आवाज गूंजा करती थी, पर आज स्थिति बदली-बदली सी है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2019 5:43 AM
सिलाई मशीन पर सपने बुन रहीं महिलाएं

पलामू से लौट कर बिपिन सिंह
अनिश्चितता से हुनर की ओर, गरीबी से सशक्तीकरण की ओर व बेरोजगारी से उद्यमिता की ओर. यह कहानी है मेदिनीनगर की स्वावलंबी महिलाओं की. कभी पलामू के अधिसंख्य इलाकों में गोलियों की आवाज गूंजा करती थी, पर आज स्थिति बदली-बदली सी है. सरकार की विकास योजनाओं के सहारे यहां नयी इबारत लिखी जा रही है. यहां रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ ही महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम बनाया जा रहा है.
सरकार की योजनाओं ने ग्रामीण महिलाओं में आत्मविश्वास और उम्मीदें भर दी हैं. वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना महिलाओं के लिए बेहतरी की उम्मीद बन गयी है. मेदिनीनगर में जिला प्रशासन की मदद से कोयल आजीविका अपैरल पार्क खोला गया है, जहां ऑटोमेटिक सिलाई मशीनों पर 80 महिलाएं इन दिनों अपने सपने बुन रही हैं.
28 पंचायत की महिलाएं ले रहीं प्रशिक्षण : कोयल आजीविका अपैरल पार्क में 28 पंचायत की लगभग 80 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं. पायलट ट्रेनर के तौर पर ये आगे चल कर अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देंगी.
महिलाएं यहां जेनरेटर चलाने, साफ-सफाई से लेकर डिजाइनिंग और प्रोडक्शन का काम खुद करती हैं. इनका एक प्रोड्यूसर ग्रुप बनाया गया है, जो एकाउंट से लेकर इनकम तक का हिसाब रखती हैं. उक्त सेंटर को सरकार की पहल पर 10 लाख का लोन मिला है. हाल ही में जिला प्रशासन ने 25 हजार विद्यार्थियों के लिए स्कूल यूनिफॉर्म सिलने का ऑर्डर दिया है.
यहां काम करनेवाली ज्यादातर महिलाएं कम पढ़ी-लिखी हैं. इस समय अलग-अलग कामों के जरिये अपने परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने में जुटी हैं.
दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रही हूं : निखत
सिलाई का प्रशिक्षण ले रही निखत परवीन ने बताया कि महज पति की कमाई पर घर चलाना मुश्किल था. अब वह खुद ही आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं. खुद सब्जी और अन्य चीजें खरीद लेती है. दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठा रही है. खुद के पैसों से बच्चों को पढ़ाने में गर्व महसूस होता है. हालांकि उसके हर कार्य में पति सहयोग करते हैं. परवीन कहती हैं कि इस काम को करने में उन्हें आनंद आ रहा है. अब उन्हें खुद पर भरोसा करना आ गया है.
वर्जन
कल तक जिनकी जिंदगी में सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था, आज वह आत्मनिर्भर हैं. अपने फैसले खुद ले रही हैं. ऑटोमेटिक मशीनों ने उन्हें बहुत मदद की है. हमें खुशी है कि सरकार इन महिलाओं की जिंदगी बदल रही है.
डॉ शांतनु कुमार अग्रहरि, उपायुक्त, पलामू
एक छोटी-सी पहल और योजना कैसे हजारों लोगों को गरीबी से बाहर निकाल रही है. मैं रोज देखता हूं और रोज हैरान होता हूं. यह योजना सिर्फ लोगों को गरीबी से बाहर नहीं निकाल रही, बल्कि कुछ लड़कियों के ख्वाब भी पूरे कर रही है.
बिंदु माधव प्रसाद सिंह, डीडीसी, पलामू
गुमला : अगरबत्ती की खुशबू से संवर रही जिंदगी
जगरनाथ पासवान
गुमला : नक्सली का डर और गरीबी जीने नहीं दे रही थी. लेकिन वक्त बदला और लोगों को इसी बदलाव का इंतजार था. इसी बदलाव की कहानी बयां कर रही हैं पालकोट के कोलेंग गांव की महिलाएं.
अपने हुनर व मेहनत के बूते इस गांव की महिलाओं ने अलग पहचान बना ली है. कोलेंग की 12 महिलाएं अगरबत्ती बना कर स्वावलंबी होने के साथ-साथ दूसरी महिलाओं को भी अगरबत्ती बनाने के व्यवसाय से जोड़ रही हैं. ये महिलाएं अगरबत्ती बनाकर आज उसकी सुगंध पूरे झारखंड में बिखेर रही हैं.
महिला विकास मंडल (जेएसएलपीएस) बघिमा द्वारा संचालित चांदनी महिला मंडल की महिलाओं द्वारा निर्मित पंपा भवानी डायमंड अगरबत्ती की सप्लाई कई जगहों में हो रही है. कोलेंग की महिलाएं स्काई जोन मार्केटिंग प्रशिक्षण केंद्र में अगरबत्ती के अलावा एलइडी बल्ब, फार्मिंग, मशरूम की खेती, मोमबत्ती बनाना आदि सीख रही हैं.
गांव की प्रिसिला केरकेट्टा ने बताया कि ग्राम संगठन, बैंक लोन एवं सीसी लिंकेज का इस्तेमाल कर 12 महिलाओं का समूह अगरबत्ती उत्पादन कर रहा है. इस काम में उनका साथ ग्लोरिया डुंगडुंग, करुणा कांति, ज्योति केरकेट्टा, फ्रिस्का केरकेट्टा एवं प्रियंका कुल्लू भी दे रही हैं.
अब तक 18 से 19 हजार पैकेट अगरबत्ती बनाया है. यहां की अगरबत्ती बालूमाथ, पलामू, लोहरदगा भेजी जाती है. इसके अलावा जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों यथा आंजनधाम, टांगीनाथ मंदिर, हीरादह आदि जगहों में ये अगरबत्तियां भेजी जाती हैं.
कोलकाता से आता है कच्चा माल
अगरबत्ती बनाने में कच्चा माल मंगवाने से लेकर उसकी पैकेजिंग तक का कार्य महिलाएं ही कर रही हैं. कच्चा माल कोलकाता से मंगवाया जाता है. इसमें अगरबत्ती बनाने में सहायक पाउडर, केमिकल और स्टिक शामिल हैं. ऑरगेनिक लेमनग्रास मस्कीटो रिपेलेंट अगरबत्ती इस समूह का नायाब उत्पाद है. इस अगरबत्ती की सुगंध की वजह से मच्छर इसके आसपास भी नहीं फटकते हैं.
एलइडी बल्ब भी हो रहा तैयार
कोलेंग की महिलाएं एलइडी बल्ब का निर्माण कर लोगों के घरों में रोशनी फैला रहीं हैं. एलइडी बल्ब निर्माण कर महिलाएं घर बैठे पैसे भी कमा रही हैं. बल्ब बनाने के लिए उपयोग में आने वाली सारी सामग्रियां कोलकाता से मंगायी जाती है. ब्लब की फिटिंग करने के लिए इनके पास उपकरण भी है. एलइडी बल्बों की पैकेजिंग कर दुकानों में सप्लाई की जाती है.
पलायन रुका, अब गांव में है काम
कोलेंग की महिलाओं ने कहा कि पहले पलायन मजबूरी थी. लेकिन गांव में ही स्वरोजगार के साधन मिलने से पलायन रूक गया है. अब गांव में ही काम है. अगरबत्ती व एलइडी ब्लब से इस गांव की महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं.

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