झारखंड में ‘ट्रैफिकिंग’ और बाल यौन शोषण रोकने के लिए काम कर रही है Save the Children

-रजनीश आनंद- झारखंड में ‘ट्रैफिकिंग’ एक ऐसी समस्या है जो बच्चों का बचपन उनसे छीन लेती है और उन्हें एक ऐसा जीवन जीने पर मजबूर कर देती है, जिसकी चाहत उन्होंने कभी नहीं की होगी. झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है और यहां के कई जिलों में ‘ट्रैफिकिंग’ की समस्या आम है, जिनमें रांची, गुमला, […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 16, 2019 11:01 AM

-रजनीश आनंद-

झारखंड में ‘ट्रैफिकिंग’ एक ऐसी समस्या है जो बच्चों का बचपन उनसे छीन लेती है और उन्हें एक ऐसा जीवन जीने पर मजबूर कर देती है, जिसकी चाहत उन्होंने कभी नहीं की होगी. झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है और यहां के कई जिलों में ‘ट्रैफिकिंग’ की समस्या आम है, जिनमें रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, सिमडेगा, चाईबासा, दुमका और पलामू प्रमुख हैं.

स्थिति इतनी भयावह है कि सीआईडी की टीम बच्चों की तस्करी करने वालों पर नजर रखे हुए है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 से 2017 तक में 247 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया गया. इनमें 103 महिलाएं थीं. इसी दौरान ट्रैफिकिंग के 394 मामले दर्ज किये गये और 381 बच्चों को छुड़ाया गया. 2013-17 के बीच 2,489 बच्चे लापता थे, जिनमें से 1,114 का कोई पता नहीं चला.

क्या है कारण

झारखंड में ‘ट्रैफिकिंग’ का प्रमुख कारण गरीबी है. गरीबी के कारण इन जिलों में जैसे ही बच्चे खासकर लड़कियां 12-13 साल की होती है, वह ‘ट्रैफिंकिंग’ की शिकार हो जाती हैं. मानव तस्करी में जुटे एजेंट इन बच्चों को दिल्ली, हरियाणा लेकर जाते हैं, जहां इनसे घरेलू नौकर के रूप में काम कराया जाता है. लेकिन अकसरहां ऐसा होता है कि इनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. कई बच्चे होटलों में बालश्रम करते हैं, जिनमें लड़के ज्यादा होते हैं.

बच्चों का होता है यौन शोषण

ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चे अकसर यौन शोषण का शिकार हो जाते हैं. सबसे चौंकाने वाले आंकड़े यह हैं कि यौन शोषण का शिकार लड़के बहुत ज्यादा हो रहे हैं. आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बाल यौन शोषण के मामले भारत में मिलते हैं. 53.2 प्रतिशत बच्चे देश में ऐसे हैं जिन्होंने यौन शोषण का दर्द सहा है. इनमें से 52.9 प्रतिशत बच्चे लड़के हैं. चूंकि ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चे अकसर यौन शोषण का शिकार होते हैं इसलिए सरकार इस प्रयास में जुटी है कि बच्चों के ‘ट्रैफिकिंग’ पर रोक लगे.

क्या कर रही है संस्था सेव दि चिल्ड्रेन

बाल अधिकारों के लिए काम कर रही संस्था ‘सेव दि चिल्ड्रेन’ सरकार की योजना के अनुसार ही ‘ट्रैफिकिंग’ और बाल यौन शोषण रोकने के काम में जुटी है. वर्ष 2012 में सरकार ने बाल यौन शोषण के मामले को गंभीरता से लेते हुए पोस्को एक्ट पास किया. साथ ही Integrated Child Protection Scheme (ICPS) के तहत सरकार बच्चों को सुरक्षा देने का काम कर रही है. Save the children की प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, चाइल्ड प्रोटेक्शन दिव्या ने बताया कि हमारी संस्था इसी स्कीम के तहत गठित होने वाली विलेज लेबल चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी को मजबूती देने और उसके सुचारू रूप से संचालन के लिए काम कर रही है. वर्तमान में संस्था गुमला और चाईबासा जिले में कार्यरत है और जागरूकता का कार्य कर रही है. संस्था विलेज लेबल चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी के सदस्यों को ट्रेनिंग देती है. इस ट्रेनिंग में यह बताया जाता है कि किस तरह बच्चों को ‘ट्रैफिक’ होने से रोका जाये या फिर जो बच्चे ‘ट्रैफिकिंग’ और बाल यौन शोषण के शिकार होते हैं उनसे किस तरह व्यवहार किया जाये, ताकि वे उस सदमे से उबर सकें और एक सामान्य जीवन जी सकें.

जागरूकता या अवयरनेस के प्रोग्राम में इस बात का ध्यान भी रखा जाता है कि जिन बच्चों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और इस बात की आशंका है कि वे कभी भी ‘ट्रैफिकिंग’ का शिकार हो सकते हैं, उन्हें समय-समय पर आर्थिक सहायता दी जाती है और उनकी काउंसिलिंग भी की जाती है ताकि वे एजेंट के जाल में ना फंसें. कुछ समय पहले तक ऐसे बच्चों को चिह्नित करने का काम भी सेव दि चिल्ड्रेन की तरफ से किया जाता था, लेकिन अब सरकार इस काम को खुद करवा रही है. संस्था कम्युनिटी कैडर पर काम कर रही है. वह सरकार का ध्यान इस बात की ओर दिलाने का प्रयास कर रही है कि जब प्रदेश में ‘ट्रैफिकिंग’ इतनी बड़ी समस्या है तो जिला की तरह ही पंचायत स्तर पर सरकार अधिकारी नियुक्त करे, जो इसे रोकने के लिए प्रयासरत हो.

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