बालिका शिक्षा स्तर को बढ़ाकर बाल विवाह पर रोक संभव
बाल विवाह के खिलाफ उठे सशक्त कदम, कार्यशाला में बोले पीडीजे
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के आशा अभियान के तहत शुक्रवार को सिविल कोर्ट परिसर स्थित लाइब्रेरी सभागार में बाल विवाह उन्मूलन को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) के अध्यक्ष एवं प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार, उपायुक्त सह डालसा उपाध्यक्ष अंजली यादव, परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अनिल कुमार पांडेय, डीएसपी जेपीएन चौधरी, सीजेएम शशिभूषण शर्मा, डालसा सचिव दीपक कुमार एवं रजिस्ट्रार लीलेश सिंह मुंडा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. कार्यशाला में बाल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ ठोस पहल पर चर्चा की गयी. डालसा अध्यक्ष पीडीजे रमेश कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार बाल विवाह की रोकथाम हेतु ‘आशा टीम’ का गठन किया गया है. उन्होंने कहा कि महिला शिक्षा को बढ़ावा देकर ही इस कुप्रथा को जड़ से समाप्त किया जा सकता है. उन्होंने कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों में अल्पसंख्यक छात्राओं की खाली सीटों को लेकर चिंता जताते हुए जनजागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया. साथ ही पीएलवी को वंचित बच्चियों को स्कूल से जोड़ने की जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया. उपायुक्त अंजली यादव ने चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि गोड्डा जिले में बाल विवाह की दर 63 प्रतिशत है, जो झारखंड में सर्वाधिक है. उन्होंने बताया कि विशेषकर जनजातीय और सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में आठवीं कक्षा के बाद बच्चियों के स्कूल छोड़ने की दर काफी अधिक है. हालांकि कस्तूरबा विद्यालयों में नामांकन को लेकर जागरूकता में वृद्धि हुई है. उन्होंने स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बाल विवाह की रोकथाम पर बल दिया. परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अनिल कुमार पांडेय ने कहा कि बाल विवाह एक गहरी सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जिसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है. उन्होंने विवाह की न्यूनतम उम्र को लेकर हुए बदलावों की चर्चा करते हुए बालिका शिक्षा को इस दिशा में सबसे प्रभावशाली उपाय बताया. कार्यशाला में डालसा सचिव, बाल संरक्षण पदाधिकारी, एलएडीसी, सभी बीडीओ, पैनल अधिवक्ता, विधि सह परिवीक्षा पदाधिकारी राजेश कुमार और दर्जनों अधिकार मित्रों ने भी भाग लिया. इस अवसर पर बाल विवाह पर विस्तृत परिचर्चा की गयी और इसे जड़ से समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया गया.
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