Giridih News :108 एंबुलेंस सेवा बदहाल, मरीजों की जान पर आफत
Giridih News :गिरिडीह जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से शुरू की गयी 108 एंबुलेंस सेवा समय के साथ बदहाल होती जा रही है. स्थिति यह है कि यह सेवा मरीजों तक राहत पहुंचाने के बजाय उनकी परेशानी और बढ़ाने लगी है. कई गंभीर मामलों में भी एंबुलेंस घंटों देर से पहुंच रही है, जिसके चलते परिजनों और मरीजों को भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है.
लोगों का कहना है कि जिले में 108 एंबुलेंस सेवा नाम भर की सेवा बनकर रह गयी है. फोन करने के बाद न तो समय पर एंबुलेंस मिलती है और न ही किसी प्रकार की साफ जानकारी. कई बार तो कॉल रिसीव ही नहीं होता और अगर रिसीव हो भी गया तो एंबुलेंस के आने में एक से दो घंटे लग जाते हैं. ऐसी स्थिति में गंभीर मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही है. गिरिडीह सदर अस्पताल सहित ग्रामीण क्षेत्रों से आ रही शिकायतें के अनुसार एंबुलेंस सेवा की उपलब्धता पर कोई ठोस मॉनीटरिंग नहीं हो रही है. कई वाहनों के खराब होने और चालकों के समय पर उपस्थित नहीं रहने से भी स्थिति और बिगड़ गयी है. ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या और भयावह है, जहां सड़कें खराब होने और एंबुलेंस की कमी के चलते मरीजों को चारपाई या निजी वाहनों पर ढोना पड़ रहा है.
लापरवाही में बीत जाता है गोल्डन ऑवर
बता दें कि जिले में 108 एंबुलेंस सेवा की लचर व्यवस्था का असर सीधे तौर पर आम लोगों की जान पर पड़ रहा है. कई बार सड़क दुर्घटना, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में मरीज और उनके परिजन तुरंत 108 नंबर पर कॉल करते हैं, ताकि समय से एंबुलेंस उपलब्ध हो सके. कॉल सेंटर द्वारा पूरा पता पूछ लेने और लोकेशन की पुष्टि कर लेने के बाद भी एंबुलेंस मौके पर नहीं पहुंचती. सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस देरी का खामियाजा कई गंभीर मरीजों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है. सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायलों का गोल्डन ऑवर में प्राथमिक उपचार नहीं होने से उनकी मौत हो जाती है. कई मामलों में ऐसा होते देखा गया है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि हादसों और गंभीर बीमारियों में गोल्डन ऑवर की बहुत अहम भूमिका होती है. यदि इस एक घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाये, तो मरीज की जान बचायी जा सकती है. लेकिन गिरिडीह में एंबुलेंस सेवा की बदहाली इस गोल्डन ऑवर को बर्बाद कर रही है.
निजी एंबुलेंस की मनमानी से दोहरा असर झेल रहे लोग
सरकारी एंबुलेंस सेवा की अव्यवस्था का सीधा असर आम जनता की जेब और जिंदगी दोनों पर पड़ रहा है. जब 108 एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचती, तब लोगों के सामने मजबूरी में निजी एंबुलेंस ही आखिरी विकल्प बचता है. लेकिन, यह विकल्प हर किसी की पहुंच में नहीं होता. गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के लिए निजी एंबुलेंस का किराया बड़ा बोझ साबित होता है, फिर भी जब मामला जिंदगी और मौत के बीच अटक जाए, तो लोग भारी-भरकम रकम चुकाकर भी निजी एंबुलेंस बुलाने को मजबूर हो जाते हैं. लोगों का कहना है कि इस स्थिति का फायदा निजी एंबुलेंस संचालकों जमकर उठा रहे हैं. कई चालक 1-2 किमी के लिए हजारों रुपये की मांग करते हैं. कई परिजनों ने बताया कि रात के वक्त या किसी गंभीर आपात स्थिति में निजी एंबुलेंस की कीमतें और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि मरीज के परिजन किसी भी हालत में मना नहीं कर सकते. सरकारी 108 सेवा की विफलता और निजी एंबुलेंस की मनमानी व्यवस्था मिलकर आम लोगों को दोहरी मार दे रही है. एक तरफ जिंदगी का खतरा, दूसरी तरफ भारी आर्थिक बोझ. लोगों का कहना है कि यदि 108 एंबुलेंस सेवा सही समय पर उपलब्ध हो जाये, तो ना केवल कई जिंदगियां बच सकती हैं, बल्कि निजी एंबुलेंस की लूटखसोट पर भी लगाम लगायी जा सकती है.
मरम्मत और निगरानी का अभाव
108 एंबुलेंसों की हालत जर्जर हो गयी है. जानकारी के अनुसार गिरिडीह जिले में कुल 37 एंबुलेंस हैं, लेकिन इनमें से कई एंबुलेंस नाम मात्र की सेवा दे रही हैं या बिल्कुल भी उपयोग लायक नहीं हैं. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक 108 एंबुलेंस चालक ने बताया कि जिले में करीब पांच-छह एंबुलेंस पूरी तरह खराब होकर महीनों से एक ही स्थान पर खड़ी सड़ रही हैं. इन वाहनों की मरम्मत ना तो समय पर होती है और ना ही इनके बदले नये वाहन उपलब्ध कराये जा रहे हैं. चालक ने यह भी बताया कि जो एंबुलेंस अभी चल रही हैं, उनकी स्थिति भी बेहद दयनीय है. कई गाड़ियों के ब्रेक, टायर, इंजन और आवश्यक मेडिकल उपकरण खराब अवस्था में हैं, जिससे यात्रियों ही नहीं बल्कि चालक और पैरामेडिकल स्टाफ की सुरक्षा भी खतरे में रहती है. एंबुलेंस चालक का कहना है कि वे रोजाना जान जोखिम में डालकर इन खराब वाहनों को किसी तरह चलाते हैं, लेकिन यह स्थिति कभी भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है. कई बार एंबुलेंस रास्ते में ही खराब हो जाती है और गंभीर मरीजों को दूसरे वाहन की तलाश में भटकना पड़ता है. इससे ना सिर्फ महत्वपूर्ण समय नष्ट होता है, बल्कि कई बार मरीज को अस्पताल तक पहुंचने में देरी हो जाती है.
2017 से लगातार चल रही एंबुलेंसों के कारण बढ़ी दिक्कत : जिला कंट्रोलर
108 एंबुलेंस सेवा के जिला कंट्रोलर धीरज कुशवाहा ने कहा कि जिले में चल रही सभी एंबुलेंस वर्ष 2017 से लगातार संचालित हो रही हैं. लंबे समय से निरंतर उपयोग के कारण इनका जर्जर होना स्वाभाविक है. उन्होंने बताया कि जिस भी एंबुलेंस की स्थिति खराब होती है, उसकी मरम्मत करवाई जाती है. लेकिन, कुछ वाहन ऐसे हैं, जो बड़े तकनीकी खराबी के कारण फिलहाल खड़े हैं. उन्होंने आश्वस्त किया कि इन वाहनों को भी जल्द ही ठीक कर सेवा में लगाया जायेगा. देरी से एंबुलेंस पहुंचने के मामले में धीरज ने कहा कि कई क्षेत्रों की सड़कें बेहद जर्जर हैं, जिससे एंबुलेंस की गति प्रभावित होती है. इसके अलावा एक साथ अधिक मरीजों को रेफर कर दिए जाने पर एंबुलेंस खाली नहीं रहती. इससे नये कॉल पर पहुंचने में देर हो जाती है. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि झारखंड को जल्द ही 300 नयी एंबुलेंस मिलने वाली हैं. इशमें 10 नयी गाड़ियां मिलने की उम्मीद है.(विष्णु स्वर्णकार, गिरिडीह)B
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
