East Singhbhum News : दिव्यांगता को नहीं बनने दी कमजोरी, तकनीक बनी ताकत
घाटशिला : विपरीत परिस्थितियों में मेहनत और प्रतिभा से परचम लहराया
घाटशिला. दिव्यांगता को अक्सर कमजोरी और बाधा के रूप में देखा जाता है. हालांकि, दुनिया में ऐसे भी दिव्यांग हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में मेहनत और प्रतिभा से सफलता परचम लहराया. उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी कमजोरी नहीं माना. उन्होंने तकनीक से अपनी दिव्यांगता की कमी दूर की. ऐसे लोग समाज को प्रेरणा देते हैं. ज्ञात हो कि विश्व दिव्यांग दिवस हर साल तीन दिसंबर को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दिव्यांगों के अधिकार, सशक्तीकरण और समाज में उनके समावेशन के महत्व को जागरूक करना है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति, चाहे वह शारीरिक या मानसिक रूप से सक्षम हो या नहीं, समाज का अभिन्न हिस्सा है.
संगीत में बसता है नेत्रहीन कान्हू का संसार
घाटशिला प्रखंड की घाटशिला पंचायत स्थित चालकडीह के कालिंदी पाड़ा निवासी कान्हू कालिंदी (48) नेत्रहीन हैं. उनका संसार संगीत की धुनों में बसता है. उन्होंने आठ वर्ष की उम्र में घाटशिला स्टेशन पर गाना गाते हुए शुरुआत की. 10 वर्ष से ट्रेन में गाना गाकर कमाने लगे. आज भी सप्ताह में 3-4 दिन घाटशिला से खड़गपुर तक ट्रेन में ढोलक बजाकर व गाना सुनाकर घर चलाते हैं. कान्हू कहते हैं कि मोहम्मद रफी, कुमार सानू से लेकर पुराने नगमों तक-हर धुन उनकी आवाज से निकलते ही ट्रेन के लोग ताली बजाते हैं. हम उनसे मोहब्बत करते हैं, दिन भर सनम रोते हैं, यह दुनिया यह महफिल काम की नहीं, चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज मैं न दूंगा..आवाज़ मैं न दूंगा, ये गीत यात्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.ब्लाइंड स्मार्ट स्टिक से मिली जीवन को दिशा
दो वर्ष पहले बहरागोड़ा पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी से कान्हू को ब्लाइंड स्मार्ट स्टिक (वाइब्रेशन स्टिक) मिली. यह स्टिक रास्ते में आने वाली दीवार, पत्थर, गड्ढा या किसी व्यक्ति को वाइब्रेशन के माध्यम से संकेत देती है. कान्हू बताते हैं पहले अकेले निकलना मुश्किल था. अब स्टिक वाइब्रेट करती है, तो समझ में आ जाता है कि आगे पत्थर है या कोई आदमी. डर काफी कम हो गया है. सरकार से 1000 रुपये पेंशन, अनाज और 1995 में इंदिरा आवास मिला था. संगीत ही सहारा है, जिसने उन्हें फिर जीने का हौसला दिया. इसी से परिवार का भरण पोषण होता है.शिक्षा की राह में बाधक थी दिव्यांगता व्हीलचेयर ने सुगम बनाया रास्ता
घाटशिला कालिंदी बस्ती निवासी स्वीटी कालिंदी बचपन से दिव्यांग है. दोनों पैरों में गंभीर कमजोरी के कारण चलना मुश्किल है. मां की मदद और घाटशिला के जिला पार्षद कर्ण सिंह के दिये व्हीलचेयर के सहारे पढ़ाई जारी रखी. स्वीटी महिला महाविद्यालय से इंटर तक शिक्षित है. व्हीलचेयर से मां स्कूल ले जाती थीं. वह कहती है मेरी मां मेरी ताकत है. उन्होंने ही मुझे पढ़ाया, सहारा दिया. उनकी पुरानी मैनुअल व्हीलचेयर चुनौतियों से भरी है. खराब रास्ते, कच्ची गलियां और ग्रामीण इलाकों की दूरी के कारण अक्सर वह घर में रह जाती हैं.ट्राई साइकिल ने शंभू महतो की जिंदगी को बनाया आसान
गालूडीह के पुतड़ू गांव निवासी शंभू महतो दिव्यांग है. ट्राई साइकिल ने उनकी जिंदगी आसान बनायी है. अनिल महतो के पुत्र शंभू महतो (23) ने बताया कि ट्राई साइकिल मिलने के बाद अब दिक्कत नहीं होती है. अब आसानी से कहीं भी आना-जाना करते हैं. शंभू को पहले चलने-फिरने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. दैनिक क्रियाकलापों, बाजार आने-जाने और सामाजिक जीवन में भागीदारी जैसे सामान्य कार्य उनके लिए कठिन थे. शंभू महतो ने बताया कि यह मेरे लिए केवल एक साइकिल नहीं, बल्कि मेरे जीवन को गति देने वाला साधन है. उनको बीआरसी से ट्राई साइकिल मिली है. वे कहते हैं कि दिव्यांगों की जिंदगी टेक्नोलॉजी से आसान हुआ है. जितना इंसानों से सहयोग नहीं मिला, उससे कहीं ज्यादा टेक्नोलॉजी से तैयार मशीनों से मिल रही है. इससे हम जैसे दिव्यांगों को स्वतंत्रता मिली. अब किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
