विदेशों तक पहुंचा डॉ सपन कुमार का आइडिया, दुमका के शिक्षक का ब्लैकबोर्ड मॉडल खूब कमा रहा नाम

jharkhand news: दुमका के डूमरथर स्कूल के शिक्षक डॉ सपन कुमार के आइडिया की चर्चा इनदिनों विदेशों में भी हो रही है. बच्चों के पढ़ाने की तकनीक को विदेशों की सड़कों पर डिसप्ले बोर्ड में दिखाया जा रहा है. इस मॉडल को टर्न इनटू ब्लैकबोर्ड के नाम से डिसप्ले हो रहा है.

By Prabhat Khabar Print Desk | December 20, 2021 3:42 PM

Jharkhand news: संपूर्ण विश्व में पश्चिम पद्धति वाली शिक्षा के अनुकरण करने के दौर में दुमका जिले के डुमरथर विद्यालय के शिक्षक डाॅ सपन कुमार पत्रलेख के पढ़ाने की अनोखी तकनीक विदेशों में प्रदर्शनी के माध्यम से दिखायी जा रही है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के सपने को भारत के ग्रामीण इलाके के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक डॉ सपन पत्रलेख के इनोवेटिव आइडिया (नवाचार) की प्रदर्शनी विदेश की सड़कों के किनारे लगायी गयी है.

झारखंड के आदिवासी बहुल दुमका जिला के जरमुंडी स्थित डुमरथर विद्यालय के प्रधानाध्यापक डॉ सपन कुमार के आइडिया की चर्चा देश-विदेश में हो रही है. अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क, इंग्लैंड के लंदन और जापान के टोक्यो में सड़क के किनारे एग्जीबिशन बोर्ड लगाया है. जिसमें डुमरथर गांव के बच्चों के दीवारों में पढ़ने की तस्वीर सड़क किनारे लगायी गयी है.

ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत के किसी सरकारी स्कूल के टीचर के पढ़ाने के आइडिया को विदेश में लगाया गया हो. सपन के नवाचार मॉडल वाले टर्न इनटू ब्लैक बोर्ड शीर्षक नाम से विदेश की सड़कों के किनारे डिस्प्ले के रूप में लगाया गया. प्रदर्शनी में डुमरथर गांव के दीवारों पर ब्लैकबोर्ड में बच्चों के पढ़ने की तस्वीर है. इस संबंध में डुमरथर स्कूल के प्रिंसिपल सपन ने कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है.

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दुमका जिले के पिछड़े इलाके का डुमरथर विद्यालय सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है. इस गांव की तस्वीर (बच्चों के पढ़ने के) को सड़कों के किनारे लगाया गया है. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसे कठिन समय में देश-दुनिया में लॉकडाउन के कारण बच्चों की पढ़ाई बंद हुई, लेकिन दुनिया का एकमात्र डुमरथर विद्यालय है जहां कभी भी बच्चों की पढ़ाई बंद नहीं हुई है.

दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से ब्लैक बोर्ड बनाकर पढ़ाई करा रहे हैं

सपन ने अपने नवाचार (आइडिया) से बच्चों को अनोखे तरीके से पढ़ाने का काम किया. जिसमें गांव के सभी दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से ब्लैकबोर्ड बनाकर पढ़ाई करा रहे हैं. मालूम हो कि जब दुनिया में कोरोना के कारण स्कूल कॉलेज बंद हो गया, तो सब कुछ ठप हो गया. इस कठिन परिस्थिति में अपने अनोखे आइडिया से गांव की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से ब्लैक बोर्ड बनाकर कोविड के नियमों का पालन करते हुए बच्चों की पढ़ाई जारी रखी.

वर्ष 2020 से ही लगातार बच्चों की पढ़ाई रुकी नहीं. अनवरत आज भी जब वर्ग एक से पांच तक की क्लास झारखंड प्रदेश में बंद है, लेकिन सपन के इस अनोखे विद्यालय में बच्चे अनवरत पढ़ाई कर रहे हैं. अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं रहने के कारण बच्चों की ऑनलाइन यहां पढ़ाना संभव नहीं था.

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सपन ने बताया कि उनके विद्यालय के बच्चे प्रथम पीढ़ी के पढ़ने वाले बच्चे हैं. बच्चे पढ़ाई नहीं करते, तो बाल मजदूरी एवं बाल विवाह के साथ ड्रॉपआउट की भी समस्या हो सकती थी. इस क्षेत्र में बच्चों को पढ़ाना कठिन कार्य है. आनेवाले समय में शिक्षा के क्षेत्र में और भी बेहतर करने के लिए इससे प्रेरणा मिली है.

इस नये आइडिया को लेकर भारत का नाम विदेश में भी हो रहा है

इस नये आइडिया को लेकर भारत का नाम विदेश में भी हो रहा है. इसके पूर्व चीन, कोलंबिया, कनाडा, अर्जेंटीना, अफ्रीका सहित भारत के कई राज्यों में भी उनके आइडिया की काफी सराहना की गयी है और कई जगहों पर इसका अनुकरण किया गया है. देश के प्रधानमंत्री राज्यसभा के उपसभापति, झारखंड के मुख्यमंत्री, नीति आयोग, शिक्षा विभाग के सभी पदाधिकारियों, दुमका के डीसी का विशेष आभार व्यक्त किया है. जिनके मोरल सपोर्ट से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है.

डुमरथर गांव के मांझी हड़ाम रामविलास मुर्मू ने कहा कि एक आदिवासी गांव की तस्वीर विदेश की सड़कों पर प्रदर्शनी के रूप में लगायी गयी है. इससे उन्हें काफी गौरवान्वित महसूस हो रहा है. वह खुद नहीं पढ़े हैं. लेकिन, गरीबी से मुक्ति के लिए बच्चों को पढ़ाना जरूरी है. ग्रामीण पवन लाल मुर्मू ने कहा कि आज बहुत ही खुशियों भरा पल है. गांव के लोग विदेश में अपने गांव के तस्वीर पढ़ाने के आइडिया को देखकर काफी खुशी है. इस गांव में प्रथम पीढ़ी के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. अधिकांश लोगो ने पढ़ाई नहीं की है. गांव के विकास के लिए शिक्षा का होना बहुत जरूरी है.

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Posted By: Samir Ranjan.

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