धान में भूरे माहू का प्रकोप, रोकथाम में जुटे किसान

मोंथा के कारण अंत समय में हुई बारिश से बढ़ी परेशानी, पीले पड़ रहे पौधे

By RAKESH KUMAR | November 2, 2025 12:05 AM

दुमका. जिले में इस बार खरीफ फसल की अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन अंत-अंत में बारिश व भूरा माहू कीट के प्रकोप ने किसानों को परेशान कर दिया है. उनकी चिंता बढ़ा दी है. जिले के कनिष्ठ पौधा संरक्षण पदाधिकारी कार्यालय की ओर से किसानों को बताया गया है कि धान की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में भूरा माहू प्रमुख है. यह कीट पौधों का रस चूसता है, जिससे पौधे पीले पड़ कर सूखने लगते हैं, जिसे हॉपर बर्न कहा जाता है. इसके संक्रमण से धान की फसल में राइस रैग्ड स्टंट वायरस व राइस ग्रासी स्टंट वायरस जैसी बीमारियां भी फैलती हैं, जिससे उत्पादन में भारी कमी आती है. बताया गया है कि यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो यह कीट फसल में 70 से 100 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है. किसान यह जरूर जानें— भविष्य में प्रतिरोधी किस्मों की रोपाई करना. भूरा माहू से प्रतिरोधी धान की किस्मों जैसे चंपा, जलाकांति, पानीडुबी जैसे किस्मों की बुआई करना. लगातार खेतों का निरीक्षण करें. इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 5-10 कीट/ हिल है. कीट प्रभावित प्रक्षेत्रों से अतिरिक्त सिंचाई जल की निकासी कर दें. उचित नाइट्रोजन (यूरिया) एवं पोटाश खाद की मात्रा देना सुनिश्चित करें. कीटनाशकों यथा Thiamethoxam 25 WG @2g/10L या Imidaclroprid 17.8 SL @ 2.5mL/10L का उपयोग करें. यह पौधा संरक्षण केंद्रों पर उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त . Triflumezopyrim 10% SC @ 01mL/लीटर पानी या Dinotefuran 15% Pymetrozine 45% WG @ 6gm/10L का भी छिड़काव किसान कर सकते हैं. प्रति हेक्टेयर 500 लीटर कीटनाशक का करें छिड़काव कीटनाशकों का छिड़काव पौधों के निचले भाग में स्प्रेयर द्वारा करें. प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 500 लीटर घोल तैयार करें. किसानों से अपील की गयी है कि वे अपने खेतों में नियमित निरीक्षण करें. आवश्यकतानुसार पौधा संरक्षण उपाय अपनायें, ताकि धान की फसल को भूरे माहू के प्रकोप से सुरक्षित रखा जा सके. इधर, जिला प्रशासन ने किसानों से यह भी अपील की है कि बिरसा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से आच्छादित किसान, फसल क्षति होने की जानकारी 72 घंटे के अंदर, क्षतिपूर्ति के लिए टॉल फ्री नंबर 14447 में कॉल कर दर्ज करवायें. जिला सहकारिता पदाधिकारी या जिला कृषि पदाधिकारी के कार्यालय से संपर्क कर भी फसल क्षति की जानकारी दर्ज करायी जा सकती है.

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