धनबाद के नारायण सिंह को मिला 34वां राधाकृष्ण पुरस्कार

रांची/धनबाद : 34 वें राधाकृष्ण पुरस्कार धनबाद के साहित्यकार नारायण सिंह को दिया जायेगा. यह पुरस्कार उन्हें समग्र साहित्य सेवा के लिए दिया जा रहा है. पुरस्कार के रूप में श्री सिंह को 15 हजार एक रुपये नकद व प्रशस्ति पत्र दिये जायेंगे. राधाकृष्ण पुरस्कार चयन समिति ने वर्ष 2013 के तहत इनका चयन किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2014 4:50 AM

रांची/धनबाद : 34 वें राधाकृष्ण पुरस्कार धनबाद के साहित्यकार नारायण सिंह को दिया जायेगा. यह पुरस्कार उन्हें समग्र साहित्य सेवा के लिए दिया जा रहा है. पुरस्कार के रूप में श्री सिंह को 15 हजार एक रुपये नकद व प्रशस्ति पत्र दिये जायेंगे. राधाकृष्ण पुरस्कार चयन समिति ने वर्ष 2013 के तहत इनका चयन किया है. रांची एक्सप्रेस द्वारा यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष एक व्यक्ति को दिया जाता है. साहित्यकार राधाकृष्ण की स्मृति में उनके जन्म दिन पर इस पुरस्कार की घोषणा की जाती है. इनका जन्म अनंत चतुर्दशी के दिन हुआ है.

इस तरह इस बार अनंत चतुर्दशी सात सितंबर को है. संक्षिप्त परिचय : नारायण सिंह का जन्म 30 जनवरी 1952 को धनबाद में हुआ. हिंदी में स्नातकोत्तर श्री सिंह भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद में लगभग 35 साल तक विभिन्न पदों पर सेवारत रहे. 2012 में वरिष्ठ अनुवादक एवं कंपनी की गृह पत्रिका कोयला भारती के संपादक के पद से सेवानिवृत्त हुए. अब तक इनकी 50 कहानियां, डेढ़ सौ निबंध/समीक्षा, लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.

इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं : कहानी संग्रह : तीसरा आदमी (1992), वह मरा नहीं है (2001), पानी तथा अन्य कहानियां (2007) और माफ करो वसुदेव (2014), उपन्यास : अल्पसंख्यक (1999), फुटपाथ के सवाल (विचार, 2010) प्रकाशित हैं. भोजपुरी में ‘एतवारू के बतकही. एक अन्य उपन्यास प्रकाश्य है. विख्यात गांधीवादी श्रमिक नेता कांति मेहता की आत्मकथा ‘माइ लाइफ, माइ स्टोरी’ का हिंदी अनुवाद गांधी पीस फाउंडेशन से प्रकाशित.

अपनी मिट्टी में पहचाने जाने का सुख : नारायण सिंह

1968 में हिंदी की प्रख्यात पत्रिका ‘सरस्वती’ से कहानी लेखन की शुरुआत करनेवाले कथाकार नारायण सिंह का जीवन उथल-पुथल भरा रहा है. वे कहते हैं इस उथल-पुथल भरे जीवन के बीच जब कहानी लिखनी शुरू की तो किसी प्रकार के पुरस्कार की भावना नहीं थी. 34 वें राधाकृष्ण पुरस्कार पुरस्कार मिलने के बाद अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में नारायण सिंह इस पुरस्कार को अपनी मिट्टी में पहचाने जाने का सुख कहते हैं. कहते हैं इतने दिनों से लिख रहा था. बाहर छोटे-मोटे पुरस्कार तो मिलते ही रहे हैं, पर झारखंड में नोटिस मिलने से लगा कि यहां का प्रबुद्ध साहित्यिक समाज नोटिस ले रहा है. एक कसक सी थी.

अपनी रचना यात्रा की बाबत वह कहते हैं कि मेरी तमाम कहानियां, उपन्यास मेरी आंतरिक पीड़ा की उपज है. कहा : मेरा जीवन संघर्षो से भरा रहा है. जहां नहीं चाह रहा था, वहां जाना पड़ा. इन परेशानियों का दुख ज्यादा है. ऐसे में संघर्षो के दौरान हुए अनुभव ही स्वाभाविक रूप से मेरी रचना के स्नेत बने. जिन संघर्षो ने मुङो रचनाएं दीं, उनके कारण सम्मान मिला. मैं उस संघर्ष को प्रणाम करता हूं.