विश्लेषण: राज सिन्हा ने धनबाद में खींची बड़ी लकीर, जानें कांग्रेस की हार के तीन कारण
संजीव झा... धनबाद : धनबाद में भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा ने लगातार दूसरी बार सबसे ज्यादा वोट से जीत कर नया रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने यहां एक नयी लकीर खींची. अधिकांश नेताओं ने दूसरी राह पकड़ी : विधानसभा चुनाव के दौरान धनबाद के अधिकांश भाजपा नेताओं ने दूसरे क्षेत्र में समय दिया. यहां पर पार्टी प्रत्याशी […]
संजीव झा
धनबाद : धनबाद में भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा ने लगातार दूसरी बार सबसे ज्यादा वोट से जीत कर नया रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने यहां एक नयी लकीर खींची.
अधिकांश नेताओं ने दूसरी राह पकड़ी : विधानसभा चुनाव के दौरान धनबाद के अधिकांश भाजपा नेताओं ने दूसरे क्षेत्र में समय दिया. यहां पर पार्टी प्रत्याशी राज सिन्हा को अपने भरोसे छोड़ दिया गया. सांसद पशुपति नाथ सिंह यहां पर कुछ घूमे जरूर. लेकिन, उनके खास समर्थक व नजदीकी माने जाने वाले नेता झरिया, निरसा में ज्यादा सक्रिय दिखे. मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल भी पहले कोलहान में बतौर प्रभारी कैंप किये हुए थे. बाद में धनबाद पहुंचे तो धनबाद से ज्यादा दूसरे क्षेत्रों में सक्रिय नजर आये. भाजयुमो के जिलाध्यक्ष अमलेश सिंह, महामंत्री तमाल राय भी ज्यादा समय झरिया में ही रहे. भाजपा के जिला महामंत्री संजय झा बतौर प्रभारी सिंदरी में रहे. जियाडा के स्वतंत्र निदेशक सत्येंद्र कुमार भी झरिया के प्रभारी बने हुए थे. जिला उपाध्यक्ष मानस प्रसून झरिया में सह प्रभारी बन कर रहे.
धनबाद में कोई बड़ी सभा भी नहीं : धनबाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में किसी बड़े नेता की सभा तक नहीं हुई. जो भी बड़े नेता आये, केवल प्रेस कांफ्रेंस तक ही अपने को सीमित रखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर बरवाअड्डा में सभा कर नौ क्षेत्रों के भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांगे थे. पीएम का सभा स्थल धनबाद विधानसभा क्षेत्र से सटा हुआ जरूर था. यहां कोई केंद्रीय मंत्री भी नहीं आये. सीएम रघुवर दास भी प्रचार के अंतिम दिन रोड शो में कुछ देर के लिए ही आये.
भाजपा की राजनीति पर पड़ेगा असर : धनबाद के चुनाव परिणाम का भाजपा के चुनावी राजनीति पर दूरगामी असर पड़ेगा. आने वाले समय में पार्टी के अंदर गुटीय राजनीति तेज होगी. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज होगा. अगले वर्ष यहां पार्टी के संगठनात्मक चुनाव पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.
हार कर भी कांग्रेस ने दिखाया दम : धनबाद विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी मो. मन्नान मल्लिक भले ही चुनाव हार गये. लेकिन, इस चुनाव में उन्होंने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करायी. श्री मल्लिक को वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से इस बार के चुनाव में लगभग 11 हजार वोट ज्यादा मिले. उन्हें लगभग 90 हजार मत मिले. जबकि पिछली बार लगभग 79,094 मत मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में भी यहां कोई बड़े नेता नहीं आये. कांग्रेस प्रत्याशी को भी अपने ही दल के अंदर विरोध का सामना करना पड़ा. पार्टी के कई नेता पूरे चुनाव प्रचार से दूर रहे.
तीसरे कोण न होने का साफ दिखा असर
धनबाद विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर भाजपा एवं कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ. कोई भी तीसरा प्रत्याशी यहां अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया. निर्दलीय प्रत्याशी रंजीत सिंह उर्फ बबलू सिंह 2852 मत के साथ तीसरे स्थान पर रहे. जबकि लोजपा के विकास रंजन 2426 मतों के साथ चौथे स्थान पर रहे. जेवीएम के सरोज कुमार सिंह को 1458 मत मिले. यहां अगर कोई तीसरी ताकत उभरती तो मुकाबला और दिलचस्प हो सकता था.
धनबाद विधानसभा: सबसे अधिक वोटों से जीते राज सिन्हा
धनबाद विधानसभा क्षेत्र से राज सिन्हा (भाजपा) ने दूसरी बार जीत का परचम लहराया है. जिले में उन्होंने फिर सबसे ज्यादा अंतर से जीतने का रिकॉर्ड बनाया है. पिछली बार भी वह लगभग 53 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से जीते थे. यह जिले में सबसे बड़े अंतर से जीत थी. राज ने तमाम अंतर्विरोध के बावजूद भाजपा प्रत्याशी के तौर पर लगातार दूसरी जीत दर्ज कर विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास कराया है. भाजपा प्रत्याशी के तौर पर लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे राज सिन्हा ने कांग्रेस के मो. मन्नान मल्लिक को 30,629 मतों से हराया. पिछले छह विधानसभा चुनाव में धनबाद सीट पर भाजपा ने पांच बार जीत दर्ज की है. कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली यह सीट अब भाजपा के लिए सेफ सीट बन गयी है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा प्रत्याशी यहां बड़े अंतर से बढ़त लेते रहे हैं. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भी धनबाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को लगभग 78 हजार मतों की बढ़त मिली थी. इस बार भी यहां भाजपा एक बड़ी जीत के प्रयास में थी. लेकिन, इसमें पार्टी को सफलता नहीं मिली. इस बार श्री सिन्हा को 120773 मत मिले. जबकि 2014 के चुनाव में 1,32,091 मत मिले थे. पिछली बार जीत का अंतर 53 हजार से अधिक था.
भाजपा की जीत के तीन कारण
कुशल व्यवहार, क्षेत्र के लोगों के बीच लगातार उपलब्धता. इसका जिक्र भी करते थे वह जनता के बीच.रहते हैं.
शहरी क्षेत्र में भाजपा के प्रति रुझान और बेहतर बूथ प्रबंधन ने जीत आसान की.
कोयलांचल यूनिवर्सिटी बनवाने का दावा करते रहे. विरोधी पर तीखे वार किये.
कांग्रेस की हार के तीन कारण
पार्टी के आंतरिक कलह को दूर नहीं कर पाये. संगठन के विरोधी खेमे ने उन्हें अकेला छोड़ दिया.
बूथ प्रबंधन में कमजोर पड़ गये. भाजपा विरोधी धुव्रीकरण का लाभ नहीं ले पाये.
उम्र को लेकर विरोधियों के सवालों का सही तरीके से जवाब नहीं दे पाये.
