देवघर : महागठबंधन के लिए चुनौती है मुस्लिम वोटरों को रिझाना

संजीत मंडल देवघर : संताल परगना की तीनों लोकसभा सीट गोड्डा, राजमहल व दुमका पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. इन वोटरों की संख्या इतनी है कि ये यदि एकजुट हो जायें तो अपना सांसद बनाने का माद्दा रखते हैं. यही कारण है कि भाजपा छोड़ यूपीए या महागठबंधन से मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ते […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 8, 2019 8:03 AM
संजीत मंडल
देवघर : संताल परगना की तीनों लोकसभा सीट गोड्डा, राजमहल व दुमका पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. इन वोटरों की संख्या इतनी है कि ये यदि एकजुट हो जायें तो अपना सांसद बनाने का माद्दा रखते हैं. यही कारण है कि भाजपा छोड़ यूपीए या महागठबंधन से मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं, तो उनका पलड़ा भारी रहता है. सिर्फ गोड्डा लोस सीट से अब तक चार बार मुस्लिम प्रत्याशी सांसद बने हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में करीब 3.50 लाख मुस्लिम वोटर हैं. वहीं राजमहल लोकसभा क्षेत्र में लगभग 36 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों की संख्या बतायी जा रही है. इसी तरह दुमका लोकसभा क्षेत्र में भी जामताड़ा व सारठ इलाके में मुस्लिम वोटरों की अच्छी संख्या है.
हालांकि दुमका और राजमहल लोस सीट एसटी के लिए रिजर्व है, लेकिन इन दोनों सीटों पर भी मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. जो किसी भी प्रत्याशी को जिताने-हराने के लिए निर्णायक की भूमिका में हैं. अब जबकि संतालपरगना की तीनों में एक भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं हैं, ऐसे में महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए इस इलाके के मुस्लिम वोटरों को रिझाना चुनौती होगी.
कई मुस्लिम सांसद और विधायक बने हैं : निर्णायक भूमिका में होने के कारण गोड्डा लोस से कई मुस्लिम सांसद जीते हैं. इनमें समीनुद्दीन दो बार, सलाद्दीन और फुरकान अंसारी एक-एक बार सांसद रहे हैं.
दुमका लोस क्षेत्र के जामताड़ा विधानसभा सीट में मुस्लिम वोटर अधिक हैं, इसीलिए कुछ चुनावों को छोड़ दें, तो लगातार वहां से मुस्लिम विधायक ही जीते हैं. पूर्व सांसद फुरकान अंसारी 1985, 1990, 1995, 2000 चार टर्म विधायक रहे, वहीं 2014 से उनके बेटे इरफान विधायक हैं. वहीं पाकुड़ विधानसभा सीट से हाजी मो एनुल हक, अब्दुल हकीम, आलमगीर आलम, अकिल अख्तर आदि विधायक बने हैं.
लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, झामुमो हो या कांग्रेस मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देते रहे हैं. लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में झारखंड में मुस्लिम प्रत्याशी को न तो कांग्रेस ने, न ही झामुमो और न ही भाजपा ने टिकट दिया है. लोकसभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिलने के कारण संताल परगना के मुस्लिम वोटर दलों से खफा-खफा दिख रहे हैं. कई फोरम पर मुस्लिम संगठनों ने अपना विरोध भी दर्ज कराया है.
कब-कब कौन जीता
गोड्डा लोकसभा
1980 : समीनुद्दीन-कांग्रेस
1984 : समीनुद्दीन-कांग्रेस
1985 : सलाउद्दीन-कांग्रेस
2004 : फुरकान अंसारी-कांग्रेस
पाकुड़ विधानसभा
1977- हाजी मो एनुल हक-कांग्रेस
1980-अब्दुल हकीम-कांग्रेस
1985-हाजी मो एनुल हक-कांग्रेस
2000-आलमगीर आलम-कांग्रेस
2005-आलमगीर आलम-कांग्रेस
2009-अकिल अख्तर-झामुमो
2014-आलमगीर आलम-कांग्रेस
जामताड़ा विधानसभा
1985-फुरकान अंसारी-कांग्रेस
1990-फुरकान अंसारी-कांग्रेस
1995-फुरकान अंसारी-कांग्रेस
2000-फुरकान अंसारी-कांग्रेस
2014-इरफान अंसारी-कांग्रेस
मधुपुर विधानसभा में भी है निर्णायक संख्या
1995-हुसैन अंसारी-झामुमो
2000-हुसैन अंसारी-झामुमो
2009-हुसैन अंसारी-झामुमो
धनबाद में एनडीए और यूपीए विधायकों की साख दांव पर
महागठबंधन में शामिल दलों के सामने करो-मरो की स्थिति
साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होना है. इससे पहले अभी चल रहा लोकसभा चुनाव विधायकों के लिए सेमीफाइनल से कम नहीं है. लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक के बावजूद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपना पूरा दमखम लगा रखा है. भाजपा में टिकट की खातिर अंदरूनी कलह की जो परिस्थितियां बनी है, भीतरघात से शीर्ष नेतृत्व चिंतित था.
समय रहते रघुवर दास ने संभावित संकट का काट निकाल लिया. उन्होंने अपने नेताओं को संदेश दिया, जो कारगर साबित होता दिख रहा है. हाल ही में गिरिडीह जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा हुई थी. कार्यक्रम से कुछ दिनों पूर्व श्री दास ने एक तैयारी बैठक में विधायकों को साफ शब्दों में चेताया. कहा कि उनके क्षेत्र में बीजेपी या गठबंधन के प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिली, तो विधानसभा चुनाव के वक्त उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं यानी उनका टिकट काटा जा सकता है. मुख्यमंत्री की ये बातें अपने विधायकों, नेताओं व कार्यकर्ताओं को कितना बांधे रखेगी, यह वक्त तय करेगा. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस संदेश ने विधायकों की बेचैनी बढ़ा दी है.

Next Article

Exit mobile version