Bokaro News : बेरमो में कई जगह बांग्ला परंपरा से होती है मां की आराधना
Bokaro News : बेरमो अनुमंडल में कई जगह बांग्ला परंपरा से मां दुर्गा की पूजा होती है.
बेरमो, बेरमो अनुमंडल अंतर्गत करगली गेट, संडे बाजार बड़ा क्वार्टर व छोटा क्वार्टर, कुरपनिया, गांधीनगर, जारंगडीह, कथारा, बोकारो वर्मल, चंद्रपुरा व नावाडीह में कई जगह दुर्गा पूजा शुरू कराने में बंगाली समुदाय के लोगों का अहम योगदान रहा है. इन जगहों की पूजा में पुजारी व ढोल-ढाक सहित मूर्तिकार भी बंगाल से आते हैं. यह परंपरा आज भी कायम है. षष्ठी पूजा के बाद अधिवास के साथ मां का पट दर्शन के लिए खोल दिया जाता है. कई जगह षष्ठी और कई जगह सप्तमी को मंडप के बगल में बेल पेड़ के नीचे बेलवरण पूजा की जाती है. इस पूजा के माध्यम से मां को आने का न्यौता दिया जाता है. बंग समाज मां से कहता है ”ऐसो मां आनंदमयी एई दीनेर कुटीरे… ” (मां आपको आह्वान करते हैं कि आप गरीब की कुटिया में आइये). इसके बाद बेलगाछ में कपड़ा लपेट कर ढोल-ढाक के साथ नदी, तालाब या पोखर में पूजा की जाती है. इसे कोलाबाऊ पूजा कहते हैं.
महाष्ठमी को निर्जला व्रत रखते हैं लोग
महाअष्टमी की पुष्पांजलि का विशेष महत्व है. इस दिन बंग समाज से जुड़े महिला व पुरुष दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं. अष्टमी खत्म होने व नवमी प्रारंभ होने के साथ मां के चरणों में चालकुम्हड़ा (कोहड़ा) और ईख की बलि दी जाती है. कुछ स्थानों पर बकरे की भी बलि दी जाती है. नवमी के दिन दोपहर में हवन होता है. इसके बाद आरती होती है. इसके बाद पूर्णाहुति होती है. दशमी के दिन मां को विदाई दी जाती है. सुहागिनें सिंदूर खेला करती हैं और उल्लूक ध्वनि निकालते हुए शंख बजाती हैं.श्रद्धा से दुर्गा पूजा करता है बंग समाज
कोयलांचल में बंग समाज के लोग वर्षों से मां दुर्गा की पूजा उमंग और श्रद्धा के साथ करते आ रहे हैं. करगली स्थित नौवाखाली पाड़ा में करीब 67 वर्षों से बंग समाज के लोग पूजा कर रहे हैं. दशमी को बनता है गुड़ का लड्डू : दुर्गा पूजा में हर बंगाली परिवार के घर में आम का पल्लव व शुभ चिह्न के रूप में सिंदूर लगाया जाता है. नवमी व दशमी के दिन नारियल व गुड़ का लड्ड जरूर बनाते हैं. दशमी के दिन मछली खाने की प्रथा है.
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