Bokaro News: 25 साल से लापता राजेंद्र दत्ता को देख खुशी से रो पड़ी पत्नी

Bokaro News: पिता की मौत के बाद मानसिक संतुलन बिगड़ने के बाद खो गये थे राजेंद्र दत्ता, घर लौटने पर परिजनों में खुशी, पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदनीपुर निवासी देवाशीष दास ने की मदद.

By ANAND KUMAR UPADHYAY | April 26, 2025 11:13 PM

बोकारो,

नियती भेद नहीं करती, हरि लेखा-जोखा रखते हैं. कुछ ऐसा ही लेखा-जोखा भगवान ने रखा बालीडीह थाना क्षेत्र के करहरिया गांव के दत्ता परिवार के साथ. नियती ने दत्ता परिवार को 25 साल पहले खोये पिता व वारिश राजेंद्र दत्ता से मुलाकात कराया है. दरअसल, 25 साल पहले राजेंद्र दत्ता के पिता की मौत हुई थी. पिता के मौत का सदमा राजेंद्र दत्ता को इस कदर लगा कि दशकर्म में मुंडन कराने निकलने के बाद वह लापता हो गये. घर वालों ने बहुत खोजबीन की, लेकिन उनकी जानकारी नहीं मिल पायी.

इंटरनेट से मिला थाना प्रभारी का संपर्क नंबर

20 अप्रैल को राजेंद्र दत्ता का अचानक से पता लगा. पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदनीपुर जिला के भादुटोला गांव (थाना सालगुरी) निवासी देवाशीष दास से राजेंद्र दत्ता की मुलाकात भटकते स्थिति में हुई. इसके बाद देवाशीष ने राजेंद्र को चार दिनों तक खिलाया-पिलाया. 24 अप्रैल को बात करने के बाद राजेंद्र ने अपना निवास स्थान, असली नाम सब अंग्रेजी में लिखकर बताया. इसके बाद देवाशीष ने इंटरनेट पर सर्च कर बालीडीह थाना प्रभारी का संपर्क नंबर निकाला.

वाट्सएप पर फोटो भेजकर करायी पहचान

देवाशीष ने बालीडीह थाना प्रभारी नवीन कुमार सिंह से संपर्क किया. इसके बाद थाना प्रभारी ने उक्त क्षेत्र के मुखिया रविशंकर प्रसाद से संपर्क किया. थाना प्रभारी श्री सिंह व मुखिया श्री प्रसाद ने देवाशीष से वाट्सअप के माध्यम से राजेंद्र दत्ता की फोटो मंगवाई. इसके बाद घर वालों से संपर्क किया गया. घर वालों ने फौरन राजेंद्र दत्ता को पहचान लिया. इसके बाद पुलिस की टीम उक्त स्थल पर पहुंच कर राजेंद्र को बोकारो लाया.

घर वालों ने समझ लिया था मृत, बेटी की हो गयी शादी

राजेंद्र दत्ता के लापता होने के बाद घर वालों ने उन्हें तलाशने की बहुत कोशिश की. दो दशक के इंतजार के बाद राजेंद्र को मृत समझ लिया था. काेरोना काल में तो हर किसी ने उम्मीद छोड़ दी थी. राजेंद्र की पत्नी व एक बेटी भी है. घर वालों ने बेटी की शादी कर दी थी. अब पत्नी अपने पति को पाकर खुश है. राजेंद्र की मानसिक स्थिति भी अच्छी नहीं है. उनसे पूछताछ करने पर वह कहते हैं कि वह इधर-उधर भटक कर जीवन यापन करते थे. खाने को जो भी मिल जाता था, खा लेते थे. वह कभी हावड़ा तो कभी खड़गपुर को अपना निवास स्थान बताते हैं.

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