पांच साल बाद भी अधूरा पड़ा लोहियानगर ओवरब्रिज, जाम से लोग परेशान
रेलवे ढाला संख्या 53 पर ओवरब्रिज का किया गया था शिलान्यास
– 77.07 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा आरओबी – रेलवे ढाला संख्या 53 पर ओवरब्रिज का किया गया था शिलान्यास सुपौल. शहरवासी वर्षों से जाम की समस्या से परेशान हैं. इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए करीब पांच वर्ष पूर्व लोहियानगर चौक पर रेल ऊपरी पुल (आरओबी) के निर्माण की नींव रखी गई थी. 77.07 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय राजमार्ग 327 ई पर स्थित 194 किलोमीटर रेलवे ढाला संख्या 53 पर इस ओवरब्रिज का शिलान्यास हुआ था. उस समय दावा किया गया था कि 24 महीनों के भीतर शहरवासियों को जाम से मुक्ति मिल जाएगी. लेकिन हकीकत यह है कि पांच साल बाद भी आरओबी अधूरा पड़ा है और जाम की समस्या जस की तस बनी हुई है. दरअसल, इस परियोजना को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की ब्रजेश अग्रवाल एंड कंपनी को बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. तय डेडलाइन के मुताबिक 24 महीने में पुल का निर्माण पूरा होना था, लेकिन कंपनी की लापरवाही और काम की धीमी रफ्तार ने पूरे प्रोजेक्ट को अधर में लटका दिया. आज हालत यह है कि न तो ओवरब्रिज बना और न ही जाम की समस्या का समाधान हो पाया. नतीजतन, शहरवासी रोजाना घंटों ट्रैफिक में फंसे रहते हैं. 1417 मीटर तय की गयी थी आरओबी की लंबाई प्रस्तावित आरओबी और एप्रोच की कुल लंबाई 1417 मीटर तय की गई थी। इसमें अंबेडकर चौक से कलेक्ट्रेट तक 790 मीटर लंबा पुल और 627 मीटर लंबा एप्रोच बनना था. पुल को 10 स्पैन पर तैयार किया जाना था, जिसमें 7 स्पैन 24 मीटर और 3 स्पैन 36 मीटर के बनाए जाने थे. टू-लेन वाले इस ओवरब्रिज की चौड़ाई 14 मीटर निर्धारित थी. इन तकनीकी तथ्यों और बड़ी लागत के बावजूद आज यह परियोजना अधूरी पड़ी है. आरओबी बनने की उम्मीद छोड़ने लगे शहरवासी इस देरी से स्थानीय लोगों का धैर्य जवाब देने लगा है। शहरवासी अब आरओबी बनने की उम्मीद तक छोड़ चुके हैं. आए दिन जाम में फंसने की मजबूरी उनकी नाराजगी और पीड़ा को और बढ़ा रही है. स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों, ऑफिस जाने वाले कर्मचारियों और मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने में लगने वाला अतिरिक्त समय लोगों की परेशानी को कई गुना कर देता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब करोड़ों की लागत से बनने वाले पुल का शिलान्यास बड़े धूमधाम से हुआ था, तब उन्हें उम्मीद थी कि जाम से छुटकारा मिलेगा. लेकिन पांच साल बाद भी केवल अधूरा ढांचा खड़ा है और बाकी काम ठप पड़ा है. लोगों का आरोप है कि निर्माण एजेंसी और जिम्मेदार विभाग की उदासीनता ने इस परियोजना को मजाक बना दिया है. शहर के विकास और यातायात सुधार के लिए यह आरओबी अत्यंत महत्वपूर्ण था. अगर समय पर काम पूरा हुआ होता, तो सुपौल को जाम की गंभीर समस्या से काफी हद तक निजात मिल चुकी होती. लेकिन अब यह परियोजना लापरवाही और सुस्ती का उदाहरण बन चुकी है. 10 दिनों के अंदर शुरू होगा कार्य : डीएम जिलाधिकारी सावन कुमार ने कहा कि आरओबी में अब लगभग 30 प्रतिशत कार्य बचा है. जिसे पूरा करने के लिए उसी रेट पर नये कंपनी का चयन किया गया है. जिसके लिए स्वीकृति भी मिल गयी है. जल्द ही कार्य शुरू कर शहरवासियों को जाम की समस्या से मुक्ति दिलायी जायेगी.
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