धरती फटी और समा गए थे भाई-बहन, बिहार के इस भैया-बहिनी मंदिर की है अनोखी कहानी
Raksha Bandhan 2025: सीवान के भीखाबांध गांव में भैया-बहिनी मंदिर भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. रक्षाबंधन पर महिलाएं भाइयों की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं. यह स्थल 17वीं शताब्दी से जुड़ा है.
Raksha Bandhan 2025: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार देशभर में मनाया जाता है लेकिन बिहार के सीवान जिले के लोगों के लिए भाई-बहन के इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है. इसकी वजह है कि यहां एक भैया-बहिनी मंदिर भी स्थित है. सीवान जिले में स्थित यह मंदिर यहां के लोगों के लिए इस पर्व के महत्व को और बढ़ा देता है. यह मंदिर महाराजगंज अनुमंडल के दारौंदा प्रखंड स्थित भीखाबांध गांव में है. रक्षाबंधन के मौके पर इस मंदिर में भारी भीड़ लगती है. इस मंदिर को भाई-बहन के अटूट प्रेम और बलिदान का प्रतीक माना जाता है.
पेड़ों को राखी बांधकर भावना व्यक्त करने की परंपरा
यह मंदिर किसी परंपरागत मंदिर जैसा नहीं है जहां भगवान की मूर्ति या तस्वीर हो. यहां केवल मिट्टी का एक पिंड और विशाल वट वृक्ष हैं जिन्हें भाई-बहन के रूप में पूजा जाता है. मंदिर की मान्यता है कि बहनें रक्षाबंधन से एक दिन पहले यहां आकर अपने भाइयों की लंबी उम्र, तरक्की और सलामती के लिए पूजा करती हैं. इस दिन मंदिर परिसर में महिलाओं और युवतियों की भारी भीड़ उमड़ती है जो पेड़ों को राखी बांधकर अपनी भावनाएं व्यक्त करती हैं.
क्या है मान्यता?
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, 17वीं शताब्दी में मुगल शासनकाल के दौरान एक भाई अपनी बहन को उसके ससुराल से विदा कराकर घर ले जा रहा था. रास्ते में भीखाबांध गांव के पास मुगल सैनिकों ने उनकी डोली को रोक लिया और बहन के साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास किया. भाई ने अकेले उनका विरोध किया लेकिन अधिक संख्या में होने के कारण वह मुगल सिपाहियों से मुकाबला नहीं कर सका. अंततः बहन ने भगवान से अपनी लाज की रक्षा की प्रार्थना की. कहते हैं कि उसी समय धरती फट गई और दोनों भाई-बहन उसमें समा गए. कुछ समय बाद उसी स्थान पर दो वट वृक्ष उग आए जो धीरे-धीरे आपस में मिल गए. इन्हीं वृक्षों को आज लोग भाई-बहन के रूप में पूजते हैं. बाद में लोगों ने इस जगह को मंदिर का रूप दे दिया. यहां मिट्टी का पिंड बनाकर पूजा की जाने लगी.
अनोखी परंपरा और गहरी आस्था
यह मंदिर बिहार का एकमात्र ऐसा स्थल है जहां भाई-बहन की पूजा एक साथ होती है. यहां आने वाली महिलाएं और युवतियां पेड़ पर राखी बांधती हैं और पूजा कर अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं. रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को यह वचन देता है कि वह हर सुख-दुख में उसका साथ देगा और उसकी रक्षा के लिए हर बलिदान देने को तैयार रहेगा.
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हजारों की संख्या में जुटते हैं श्रद्धालु
भीखाबांध स्थित यह मंदिर अब केवल सीवान ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी आस्था का केंद्र बन चुका है. हर वर्ष रक्षाबंधन के मौके पर यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं और इस पवित्र स्थल पर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं. भैया-बहिनी मंदिर भाई-बहन के प्रेम, समर्पण और बलिदान की वह कथा सुनाता है जो समय बीतने के साथ और भी पवित्र और प्रेरणादायक बन गई है. रक्षाबंधन के पावन पर्व पर यह मंदिर एक बार फिर उस रिश्ते को सजीव कर देता है जो विश्वास और सुरक्षा की डोर से बंधा होता है.
(रवीन्द्र कुमार गुप्ता की रिपोर्ट)
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