भागवत कथा सुनने से मिलता है मोक्ष : गुप्तेश्वरजी महाराज

Sasaram news. हिंदू धर्म में कई कथाओं के सुनने से अलग-अलग लाभ मिलते हैं, लेकिन भागवत कथा का इतना महत्व है कि कहते हैं कि इसे सुनने वाला सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है.

By ANURAG SHARAN | April 5, 2025 8:09 PM

नगर पंचायत में चल रहे शतचंडी महायज्ञ के छठे दिन दिये प्रवचन फोटो-12- भागवत कथा सुनतीं महिलाएं. प्रतिनिधि, चेनारी हिंदू धर्म में कई कथाओं के सुनने से अलग-अलग लाभ मिलते हैं, लेकिन भागवत कथा का इतना महत्व है कि कहते हैं कि इसे सुनने वाला सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है. ये बातें जगद्गुरु स्वामी गुप्तेश्वरजी महाराज ने नगर पंचायत में चल रहे शतचंडी महायज्ञ के छठे दिन शुक्रवार की रात कहीं. महराज जी ने कहा कि शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में भी भागवत कथा सुनने की महिमा का बखान मिलता है. भागवत कथा सुनने से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है. यह भगवान के प्रति भक्ति को गहरा करता है और व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है. लेकिन भागवत कथा सुनना कब पूर्णरूप से फलदायी होता है और कब इसका फल नहीं मिलता है, इसे एक कथा के माध्यम से समझते हैं. एक बार किसी धनवान व्यक्ति ने सुना कि राजा परीक्षित ने शुकदेव मुनि से भागवत कथा सुनकर मोक्ष प्राप्त कर लिया था. यह सुनने के बाद उसके ह्रदय में भी श्रीमद्भागवत के प्रति बड़ी श्रद्धा उत्पन्न हो गयी और वह भी इस कथा को सुनकर मोक्ष की प्राप्ति करने के बारे में विचार करने लगा. वह कथा सुनने के उद्देश्य से नगर के एक नामी ब्राह्मण के पास गया और उससे भागवत कथा सुनाने की विनती करने लगा. पंडितजी नगर के सुविख्यात ब्राह्मण थे और आये दिन वह भागवत कथा का आयोजन करते थे. धनी व्यक्ति के आग्रह पर पंडितजी बोले- श्रीमान, यह कलियुग है, आज के समय में सभी धर्म कृत्यों का फल चार गुना कम मिलता है. इसलिए यदि आप भागवत कथा का संपूर्ण फल पाना चाहते हैं, तो आपको चार बार भागवत कथा सुननी पड़ेगी. पंडित ने ऐसा दान-दक्षिणा के लालच में कहा था. लेकिन, वह धनी व्यक्ति पंडितजी की मंशा समझ नहीं पाया और बोला- अवश्य पंडितजी. जैसा आप उचित समझें. भागवत कथा का आयोजन हुआ. राजा परीक्षित ने एक सप्ताह भागवत कथा सुनी थी, जबकि धनी व्यक्ति ने चार सप्ताह भागवत कथा सुनी, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. पंडितजी लाभ होने का आश्वासन देकर कथा समाप्त करके दान-दक्षिणा की पोटली बांधकर अपने घर चले गये. वह धनी व्यक्ति दिन-रात चिंता में यही सोचता रहता था कि उसने चार बार भागवत कथा सुनी, पंडितजी को भरपूर दान-दक्षिणा भी दी, लेकिन फिर भी उसे मुक्ति क्यों नहीं मिली. स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने बाल सखा सुदामा पर अपूर्व कृपा की. सुदामा जी सांसारिक वस्तु के अभाव में गरीब थे. उनके पास रहने का घर नहीं था. पहनने के लिए अच्छा वस्त्र व खाने के अन्न का अभाव था. लेकिन वह दरिद्र नहीं थे. दरिद्र का अर्थ असंतोषी होता है. वह आत्म बल, तेजबल, संतोष बल और परमात्मा के प्रति सन्मार्ग बल के प्रतिष्ठित धनी थे. सुदामा का अर्थ ही होता है सु माने सुंदर दामा माने दस इन्द्रियों सहित मन को जिसने परमात्मा में बांध दिया हो. शास्त्रों में भगवान ने कहा है कि जो भक्त मुझको जिन हाथों से फूल माला चढ़ाकर सेवा कर देता है, उस भक्त के हाथ ही मेरे हाथ है, जो मन से स्मरण करता है, उसका मन मैं ही हूं. भगवान ने सखा सुदामा का राज दरबार में जो स्वागत किया, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. प्रेमाश्रु से उनके पैर धोये. अपने सिंहासन पर बैठाया. इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बिना कुछ याचना के जो भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान व सत्कर्म करता है, उसे वह सब प्रकार से संतुष्ट कर अपने धाम में पहुंचा देते हैं.

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