सारण : तंत्र साधना के लिए होती है तस्करी, अंतरराष्ट्रीय गिरोह है शामिल

आइपीसी-सीआरपीसी में इस तस्करी को रोकने के लिए दंड का प्रावधान नहीं छपरा(सारण) : नरकंकाल की तस्करी तस्करी रोकने का का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. यह सवाल तब उभर कर सामने आयी, जब मंगलवार को छपरा जंक्शन पर नरकंकाल के साथ गिरफ्तार अंतरराष्ट्रीय स्तर के तस्कर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2018 9:27 AM
आइपीसी-सीआरपीसी में इस तस्करी को रोकने के लिए दंड का प्रावधान नहीं
छपरा(सारण) : नरकंकाल की तस्करी तस्करी रोकने का का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. यह सवाल तब उभर कर सामने आयी, जब मंगलवार को छपरा जंक्शन पर नरकंकाल के साथ गिरफ्तार अंतरराष्ट्रीय स्तर के तस्कर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की गयी. मंगलवार को छपरा जंक्शन पर 50 नरकंकाल के साथ एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के तस्कर को गिरफ्तार किया गया.
गिरफ्तार तस्कर बिहार राज्य के चंपारण जिले के पहाड़पुर थाना क्षेत्र के दुरियामा गांव निवासी बाबूलाल साह के पुत्र संजय प्रसाद है. संजय प्रसाद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के भारतीय दंड विधान संहिता की धारा का निर्धारण करते समय पुलिस पदाधिकारियों के पसीने छूट गये.
इस मामले में विधि विशेषज्ञों से भी मशविरा किया गया लेकिन भारतीय दंड विधान संहिता की धारा में कोई ऐसी धारा नहीं है, नरकंकाल की तस्करी करने, नरकंकाल का व्यापार करने, नर कंकाल की ढुलाई करने, नरकंकाल का भंडारण करने या इसके किसी भी रूप में इस्तेमाल करने के आरोपित के खिलाफ लगाया जा सके. अब आइपीसी- सीआरपीसी में दंड के प्रावधानों में एक बार फिर एक नये भादवि की धारा जोड़ने की जरूरत महसूस की गयी.
तंत्र साधना के लिए होती है तस्करी
नरकंकाल की तस्करी तंत्र साधना करने वाले साधकों के हाथों बेचने के लिए किये जाने की बात तस्करो ने कही है. जांच में यह बात भी सामने आयी है कि नरकंकाल को भारत से नेपाल व भूटान भेजा जाता है. लेकिन यह बात भी सामने आयी है कि नरकंकाल की तस्करी मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र पढाई के करते हैं. परंतु सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद से भारत में नरकंकाल का उपयोग अब मेडिकल कॉलेज में नहीं किया जाता है.
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
मेडिकल कॉलेज में पहले नरकंकाल या शव का इस्तेमाल करने पर कोई रोक नहीं था तो, लावारिस शवों को पोस्टमार्टम के बाद 72 घंटे तक रखा जाता और इसके बाद मेडिकल कॉलेज को दे दिया जाता था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब लावारिस शवों को पोस्टमार्टम के बाद 72 घंटे तक रखा जाता है और पहचान नहीं होने पर उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाता है.
भारतीय दंड विधान संहिता की धारा में नरकंकाल की तस्करी या व्यापार, ढुलाई रोकने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है. उन्होंने बताया कि आइपीसी सीआरपीसी के अध्याय 16 मानव शरीर के साथ ज्यादती होने पर दंड का प्रावधान है लेकिन मृत मानव शरीर के साथ अपराध होने पर कानूनी कार्रवाई के लिए आइपीसी सीआरपीसी में कोई प्रावधान नहीं है.
गिरीश नंदन प्रसाद सिंह, अधिवक्ता, छपरा
पहले लावारिस शवों को 72 घंटे तक रखा जाता था और पहचान नहीं होने पर उसे मेडिकल कॉलेज में दान कर दिया जाता था. अब दान नहीं किया जाता है.
डॉ अनिल कुमार, सर्जन, छपरा