प्रौद्योगिकी नौकरियों की प्रकृति एवं योग्यता के मापदंडों को तेजी से बदल रहीः डॉ नरेंद्र श्रीवास्तव
मापदंडों को तेजी से बदल रहीः डॉ नरेंद्र श्रीवास्तव

कृत्रिम बुद्धिमत्ता विषय पर हुए दो दिवसीय सेमिनार को बताया अद्वितीय व प्रशंसनीय सहरसा. सर्वनारायण सिंह राम कुमार सिंह महाविद्यालय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता विषय पर हुए दो दिवसीय सेमिनार को बीएन एमयू के प्राणी शास्त्र विभाग के प्रो डॉ नरेंद्र श्रीवास्तव ने इसे अद्वितीय व प्रशंसनीय बताया. उन्होंने कहा कि महाविद्यालय में सेमिनार को लेकर कौन शिक्षक हैं, कौन शिक्षकेत्तर कर्मचारी हैं, पता ही नहीं चला. सबने एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य को संपन्न किया. इस स्तर का कार्यक्रम सभी महाविद्यालय में बराबर होते रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्रौद्योगिकी की वास्तव में परिवर्तनकारी प्रकृति, फिर भी दुनिया भर में इसके अपनाने की प्रारंभिक अवस्था, भारत को एआई नेतृत्व के अपने ब्रांड को परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है. भारत के लिए प्रस्तावित ब्रांड का तात्पर्य समावेशी प्रौद्योगिकी नेतृत्व से है. जहां देश की विशिष्ट आवश्यकताओं व आकांक्षाओं के अनुसरण में एआई की पूरी क्षमता का एहसास होता है. रणनीति को आर्थिक विकास, सामाजिक विकास एवं समावेशी विकास के लिए एआई का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने कहा कि एआई में कई प्रकार के क्षेत्रों में बड़ा वृद्धिशील मूल्य प्रदान करने की क्षमता है. आज इसे अपनाने को मुख्य रूप से वाणिज्यिक दृष्टिकोण से प्रेरित किया गया है. एआई जैसी प्रौद्योगिकी व्यवधान एक पीढ़ी में एक बार होने वाली घटना है. इसलिए बड़े पैमाने पर अपनाने की रणनीतियों, विशेष रूप से राष्ट्रीय रणनीतियों को वित्तीय प्रभाव की संकीर्ण परिभाषाओं एवं व्यापक भलाई के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है. पांच क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है. जिन्हें सामाजिक आवश्यकताओं को हल करने में एआई से सबसे अधिक लाभ मिलने की संभावना है. उन्होंने कहा कि इससे स्वास्थ्य सेवा की पहुंच एवं सामर्थ्य में वृद्धि, किसानों की आय में वृद्धि, कृषि उत्पादकता में वृद्धि एवं बर्बादी में कमी, शिक्षा की पहुंच व गुणवत्ता में सुधार, स्मार्ट शहर, बढ़ती शहरी आबादी के लिए दक्षता व कनेक्टिविटी, परिवहन के स्मार्ट एवं सुरक्षित तरीके, बेहतर यातायात एवं भीड़भाड़ की समस्याओं से हद तक राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि एआई को बड़े पैमाने पर तैनात करने के लाभों को सही मायने में प्राप्त करने के लिए बाधाएं भी हैं. उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी नौकरियों की प्रकृति को तेजी से बदल रही है एवं तकनीकी योग्यता के मानदंडों को बदल रही है. इसलिए कार्यबल का कौशल एवं पुनः कौशलीकरण एआई को अपनाने के हमारे दृष्टिकोण का एक अभिन्न अंग है. मौजूदा कार्यबल को पुनः कौशल प्रदान करने एवं नौकरी बाजार की बदलती जरूरतों के अनुसार भविष्य की प्रतिभाओं को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है. यह निजी क्षेत्र एवं शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से काम करने वाले विकेंद्रीकृत शिक्षण तंत्रों को अपनाने के माध्यम से किया जा सकता है. जिससे मूल्य के साथ प्रमाणन निर्धारित किया जा सके. इसके अलावा, डेटा एनोटेशन जैसे नए क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की पहचान की जानी चाहिए एवं उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए. अंत में उन्होंने प्रधानाचार्य प्रो डॉ अशोक कुमार सिंह एवं सेमिनार समिति के सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया.
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