सुपर फूड के रूप में वैश्विक ग्लोबल प्रोडक्ट बना मखाना
सुपर फूड के रूप में वैश्विक ग्लोबल प्रोडक्ट बना मखाना
व्यवसायी व किसानों की आय बढ़ने की जगी उम्मीद सहरसा . मिथिला कोसी व सीमांचल में होने वाली मखाने की खेती से व्यवसायी व किसानों की अब आय बढ़ने की उम्मीद जगी है. पाश्चात्य देशों में सुपर फूड के नाम पर इसकी बिक्री काफी बढ़ गयी है. जिससे बाजारों में इसकी मांग बढ़ गयी है. जिलें के सत्तरकटैया प्रखंड स्थित तुलसियाही गांव के मखाना व्यवसायी नवीन साह ने बताया कि मखाने की खेती में काफी मेहनत पड़ती है. वहीं कच्चे माल के रूप में तालाब या झील से प्राप्त मखाना तैयार करने में बहुत ही मेहनत व जद्दोजहद करनी पड़ती है. उन्होंने बताया कि तालाब से पहले बीज के रूप में गुड़िया निकाला जाता है. फिर उसे गर्म कर 24 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है. जिसके बाद उसे फिर से गर्म कर कठोर चीज से उसे फोड़ा जाता है. जिसमें से सुंदर एवं पौष्टिक आहार के रूप में मखाना की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि मिथिला में शरद पूर्णिमा कोजागरा के उत्सव में इसका जमकर प्रयोग किया जाता है. मखाना को अमृत तुल्य माना गया है. वहीं अब जियो टैग मिलने के कारण पूरे विश्व में इसकी प्रसिद्धि फैली है. जिसके कारण अनेक देश में मखाने की मांग काफी बढ़ गयी है. उन्होंने बताया कि कच्चे माल के रूप में जब गुड़िया निकाली जाती है तो उससे तैयार मखाना विभिन्न प्रकार की क्वालिटी में निकलता है. सबसे अच्छा मखाना 6 सूत को माना गया है. जिसकी कीमत भी सबसे अधिक रहती है. स्थानीय स्तर पर जो मखाना विगत वर्ष पांच सौ से सात सौ रूपये में बिक्री होता था, वही मखाना अब एक हजार से 12 सौ रुपये तक की बिक्री होलसेल में की जा रही है. उन्होंने बताया कि महानगर के बड़े-बड़े व्यापारी मखाना व्यवसायी से संपर्क कर रहे हैं. ऐसे में उम्मीद है कि आने वाले दिनों में किसान एवं व्यवसायियों को काफी लाभ प्राप्त होगा. उन्होने बताया कि मखाना की खेती तालाबों, झीलों या पानी जमा होने वाले खेतों में की जाती है. जिसमें नर्सरी तैयार करने के बाद रोपायी की जाती है. इसकी खेती के लिए नवंबर, दिसंबर में बीज बोना, फरवरी, मार्च में रोपाई एवं अक्टूबर-नवंबर में कटाई होती है. एक एकड़ में लगभग 10 से 12 क्विंटल तक उपज हो सकती है.
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