भारत का संविधान लोकतंत्र की आत्मा : न्यायाधीश
संविधान दिवस के अवसर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत बुधवार को सिविल कोर्ट परिसर में जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
संविधान दिवस पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने किया जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन
सहरसा. संविधान दिवस के अवसर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत बुधवार को सिविल कोर्ट परिसर में जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव संजय कुमार सरोज ने की. संगोष्ठी का विषय शिक्षा का अधिकार, हमारे संविधान की समझ, मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य निर्धारित किया गया, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों, विद्यार्थियों एवं अधिवक्ताओं को संवैधानिक ज्ञान तथा कर्तव्य-बोध से जोड़ना था. कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार, प्रधान न्यायाधीश पारिवारिक न्यायालय दिनेश कुमार, जिला अपर सत्र न्यायाधीश प्रेमचंद्र वर्मा, चंदन कुमार, संतोष कुमार, विवेक विशाल, राकेश कुमार, मो तारीख मुस्तफा, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अश्विनी कुमार, अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम कुद्दुस अंसारी, न्यायिक दंडाधिकारी अफजल खान, भवानी प्रसाद, अंजिता सिंह, चंदन ठाकुर, हसन तबरेज, निखिल चंद्र एवं अभिनव कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया.लोकतंत्र की शक्ति संविधान में निहितः डीजे
इस मौके पर न्यायिक पदाधिकारियों एवं अधिवक्ताओं ने संविधान के प्रति आस्था एवं निष्ठा व्यक्त करते अनुशासन, जागरूकता एवं कर्तव्यनिष्ठा का संदेश दिया. कार्यक्रम को संबोधित करते प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने कहा कि शिक्षा का अधिकार केवल पुस्तकों में लिखा शब्द नहीं है, बल्कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का मूल अधिकार है. जब समाज शिक्षित होगा, तभी राष्ट्र सशक्त बनेगा. शिक्षा ही वह माध्यम है जो व्यक्ति को अधिकारों एवं कर्तव्यों के मध्य संतुलन स्थापित करना सिखाती है. सरकार भी प्राथमिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आंगनबाड़ी, मिड-डे मिल, पोशाक योजना सहित उच्च शिक्षा के लिए साइकिल योजना, पोशाक राशि सहित अन्य योजनाएं चला रही है. उन्होंने संविधान की महत्ता पर विचार व्यक्त करते कहा कि भारत का संविधान लोकतंत्र की आत्मा है. इसे समझना, सम्मान करना एवं इसके आधार पर जीवन जीना प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक दायित्व है. हम अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करें तो समाज में अधिकांश समस्याएं स्वतः समाप्त हो सकती है. सभी न्यायिक पदाधिकारियों ने संयुक्त रूप से कहा कि मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य लोकतंत्र की दो मजबूत आधारशिलाएं हैं. अधिकार तभी सार्थक होते हैं, जब उनके साथ कर्तव्यों का पालन भी किया जाये.इस मौके पर मुख्य विधिक सहायता रक्षा अधिवक्ता कर्मेश्वरी प्रसाद, विजय कुमार गुप्ता, शालिनी कुमारी, रविन्द्र प्रसाद सिंह, प्रवीण ठाकुर, अजय आज़ाद, सौरभ कुमार सिंह, बाबुल सिंह सहित दर्जनों अधिवक्ताओं ने अपने विचार रखे.
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