Shakeel Ahmad Resign: राहुल गांधी की कांग्रेस में नहीं चलती”, टिकट बंटवारे से आहत शकील अहमद का इस्तीफा

Shakeel Ahmad Resign: बिहार कांग्रेस में एक बार फिर पुराने और नए नेताओं के बीच खींचतान खुलकर सामने आ गई है. वरिष्ठ नेता डॉ. शकील अहमद के इस्तीफे ने न सिर्फ टिकट बंटवारे पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि राहुल गांधी के दौर की कांग्रेस की दिशा और दशा पर भी गंभीर बहस छेड़ दी है.

By Pratyush Prashant | November 12, 2025 11:45 AM

Shakeel Ahmad Resign: बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. शकील अहमद ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर संगठन के अंदरूनी असंतोष को सामने ला दिया है. तीन दशकों से ज्यादा वक्त तक कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे शकील अहमद ने अपने पत्र में भले ही निजी कारणों का हवाला दिया, लेकिन बाद में बातचीत में उन्होंने साफ कहा “मैं टिकट बंटवारे से दुखी था, अब कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं का सम्मान नहीं बचा.” उनके इस बयान ने चुनाव के बाद की राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया है.

टिकट बंटवारे से उपजा असंतोष

शकील अहमद ने खुलकर कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में जिस तरह की गुटबाजी और उपेक्षा हुई, उसने उन्हें गहराई से निराश किया. उनका कहना था, “मैंने तीन साल पहले ही चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन पार्टी ने जिन लोगों को टिकट दिया, उसमें सीनियर नेताओं की राय को नजरअंदाज किया गया. लोग पार्टी में सम्मान और पहचान के लिए रहते हैं, लेकिन जब वही नहीं बचता तो बने रहने का कोई कारण नहीं रह जाता.”

कांग्रेस के अंदर टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष नया नहीं है, लेकिन इस बार जिस तरह एक वरिष्ठ चेहरा खुलकर नाराज हुआ, उसने आलाकमान की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

राहुल गांधी के बनाए लोग ही बचे हैं

शकील अहमद का यह बयान सबसे ज्यादा सुर्खियों में है. उन्होंने कहा कि आज की कांग्रेस में वही लोग टिके हैं जिन्हें राहुल गांधी ने आगे बढ़ाया. “अब इस पार्टी में वरिष्ठों की बात नहीं सुनी जाती. राहुल गांधी के बनाए लोग ही आज पार्टी चला रहे हैं, जिनमें अनुभव की कमी और अहंकार की अधिकता है,” उन्होंने कहा.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “मैं पार्टी छोड़ रहा हूं, लेकिन कांग्रेस की विचारधारा पर मुझे आज भी भरोसा है.”

15 दिन पहले तय कर लिया था फैसला

डॉ. अहमद ने बताया कि उनका इस्तीफा अचानक नहीं था, बल्कि सोची-समझी रणनीति थी. “मैंने 15 दिन पहले ही तय कर लिया था कि मैं पार्टी छोड़ दूंगा. लेकिन चुनाव के दौरान इस्तीफा देना पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता था. मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण कांग्रेस को 5 वोट भी कम मिलें. इसलिए मतदान खत्म होते ही, शाम 6:05 पर मैंने अध्यक्ष को पत्र भेज दिया.”
उनका यह कदम बताता है कि भले ही वे संगठन से असंतुष्ट हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए उनके मन में एक भावनात्मक जुड़ाव अब भी बाकी है.

एग्जिट पोल पर भी साधी संयमित टिप्पणी

बिहार विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल पर भी उन्होंने बेबाक राय दी. उनका कहना था कि “एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल हमेशा सही नहीं होते. 2015 में भी सारे पोल फेल हुए थे, इसलिए उनके नतीजों को अंतिम फैसला नहीं माना जा सकता.”
उनका यह बयान कांग्रेस के अंदर गहराती निराशा के बीच एक संयमित आवाज के रूप में देखा जा रहा है.

नई कांग्रेस बनाम पुराना दर्द

शकील अहमद का इस्तीफा सिर्फ एक नेता का विद्रोह नहीं, बल्कि उस दौर की झलक है जहां कांग्रेस अपने भीतर की आवाजों को सुनने में नाकाम साबित हो रही है. टिकट बंटवारे से लेकर नेतृत्व के तौर-तरीकों तक, कई सीनियर नेता अब खुलकर कह रहे हैं कि “राहुल गांधी की कांग्रेस में न संवाद है, न सम्मान.”

चुनावी हार के बाद यह इस्तीफा पार्टी के लिए एक और झटका है, जो यह दिखाता है कि अंदरूनी लोकतंत्र और संगठनात्मक विश्वास की कमी आज कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.

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