Patna Dengue Vaccine Trial: पटना में डेंगू वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल अंतिम दौर में, क्या भारत को मिलेगी डेंगी ऑल?
Patna Dengue Vaccine Trial: डेंगू के चारों स्ट्रेन पर वार! दो वर्षों के बाद क्या भारत को मिलेगा इस जानलेवा बीमारी से बचाव का सुरक्षा कवच? डेंगू से हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन अब पहली स्वदेशी वैक्सीन “डेंगी-ऑल” उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आई है. पटना में इसका तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है और शुरुआती संकेत बेहद उत्साहजनक हैं.
Patna Dengue Vaccine Trial: पटना के अगमकुआं स्थित राजेंद्र स्मारक चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान संस्थान (RMRI) में डेंगू वैक्सीन “डेंगी-ऑल” का तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल जारी है. इस ट्रायल में देश के 19 अन्य केंद्र भी शामिल हैं. अगर परिणाम सफल रहे, तो भारत डेंगू की प्रभावी वैक्सीन विकसित करने वाले चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा.
संस्थान के निदेशक डॉ. कृष्णा पांडे ने 62वें स्थापना दिवस और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 141वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में यह जानकारी दी.
पटना में डेंगू वैक्सीन का बड़ा ट्रायल
RMRI में जिस ट्रायल पर काम चल रहा है, वह तीसरे चरण की सबसे महत्वपूर्ण स्टडी है. इसमें प्रतिभागियों पर वैक्सीन के असर, सुरक्षा और दीर्घकालिक प्रतिरक्षा का मूल्यांकन किया जा रहा है. मरीजों को दो वर्षों तक फॉलोअप में रखा जाएगा, ताकि यह पता चल सके कि वैक्सीन कितनी लंबे समय तक सुरक्षा देती है.
एक ही डोज और डेंगू के चारों स्ट्रेन पर असर
“डेंगी-ऑल” को पैनासिया बायोटेक ने विकसित किया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह वैक्सीन डेंगू के सभी चार स्ट्रेन— DEN-1, DEN-2, DEN-3 और DEN-4 पर असरदार है. सबसे खास बात यह है कि इसे सिर्फ एक बार लगवाने पर ही डेंगू से सुरक्षा मिलेगी.
भारत में डेंगू की बढ़ती चुनौती को देखते हुए यह खोज सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकती है.
कार्यक्रम में विशेषज्ञों की मौजूदगी
कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. सी.पी. ठाकुर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. एम्स पटना के कार्यकारी निदेशक प्रो. ब्रिगेडियर डॉ. राजू अग्रवाल विशिष्ट अतिथि रहे. इस अवसर पर कोलकाता के IPGMER की प्रोफेसर डॉ. मिताली चटर्जी को “डॉ. राजेंद्र प्रसाद व्याख्यान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया.
डॉ. कृष्णा पांडे ने बताया कि भारत काला-आजार उन्मूलन के बेहद करीब है और अब केवल WHO की औपचारिक सर्टिफिकेशन की आवश्यकता है. उम्मीद जताई गई कि वर्ष 2027 तक इसका पूर्ण उन्मूलन संभव है.
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