बिहार का एक मात्र मंदिर जहां शिवलिंग के रूप में रहती हैं माँ पार्वती, जानिए यहां की खासियत

Bihar Tourism: पटना का यह ऐतिहासिक और पौराणिक शिवमंदिर इसलिए खास है क्योंकि यहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ शिवलिंग रूप में विराजमान हैं. और सबसे अनोखी बात ये है की बड़े शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग भी मौजूद हैं, जो इसे और भी दिव्य और अद्भुत बनाते हैं.

By JayshreeAnand | September 1, 2025 12:50 PM

Bihar Tourism: राजधानी पटना के नज़दीक, बैकटपुर गांव में स्थित है प्राचीन और ऐतिहासिक श्री गौरीशंकर बैकुण्ठधाम शिवमंदिर. यह मंदिर अपने धार्मिक और पौराणिक महत्व के कारण कई युगों से लोगों के श्रद्धा का केंद्र रहा है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती एक ही शिवलिंग में विराजमान हैं. इसे देखकर भक्तों में असीम भक्ति और आस्था उत्पन्न होती है. माना जाता है कि बैकटपुर का यह शिवलिंग दुनिया में अद्वितीय है. इसकी संरचना और इसकी दिव्यता इसे बाकी शिवमंदिरों से अलग बनाती है. हर साल हज़ारों श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और आशीर्वाद पाते हैं. श्री गौरीशंकर बैकुण्ठधाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी अनमोल स्थान रखता है.

शिवलिंग पर बनें हैं 108 छोटे रूद्र

और भी रोचक बात यह है कि इस मुख्य शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग भी बने हैं, जिन्हें रूद्र कहा जाता है. ये छोटे शिवलिंग शिव और पार्वती की शक्ति और एकता का प्रतीक माने जाते हैं.

पाप से मुक्ति पाने श्रीराम आए थे यहां

बैकटपुर का यह मंदिर प्राचीन समय में बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था. आनंद रामायण में इसे बैकुंठा के रूप में भी बताया गया है. कहा जाता है कि लंका विजय के बाद रावण को मारने के कारण जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा, उससे मुक्ति पाने के लिए भगवान श्रीराम यहां आए थें और भगवान शंकर की पूजा की थी. कहा जाता है कि यहां आने से पहले भगवान श्रीरामचंद्र जी गंगा नदी के उस पार एक गांव में रात मे आराम करने के लिए रुके थे. इसी कारण उस गांव का नाम राघवपुर पड़ा, जिसे आज वैशाली जिले के राघोपुर के नाम से जाना जाता है.

महाभारत काल से जुड़ा है ये मंदिर

बैकटपुर मंदिर का इतिहास महाभारत के जरासंध से भी जुड़ा है. माना जाता है कि जरासंध भगवान शंकर का बड़ा भक्त था और रोज अपने राजमहल से यहां पूजा करने आता था. कहावत  के अनुसार, बैकुण्ठ नाथ के आशीर्वाद से जरासंध को हराना असंभव था. वह हमेशा अपनी बांह पर शिवलिंग का ताबीज पहनता था. भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक शिवलिंग उसके पास रहेगा, तब तक कोई उसे हरा नहीं सकता. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने चालाकी से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित कर दिया. इसके बाद ही जरासंध को हराया गया. जिस जगह यह शिवलिंग फेंका गया, वह कौड़िया खाड़ के पास था.

अकबर के सेनापति ने कराया था निर्माण

कहा जाता है कि अकबर के सेनापति राजा मान सिंह अपने परिवार के साथ रनियासराय जा रहे थे. उस समय उनकी नौका कौड़िया खाड़ में फंस गई. काफी कोशिशों के बावजूद नाव बाहर नहीं आ सकी, और राजा मान सिंह को सेना सहित पूरी रात वहीं रुकना पड़ा. रात में उन्हें सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिए और मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया. राजा मान सिंह ने उसी रात मंदिर के निर्माण का काम शुरू कराया और इसके बाद उनकी बंगाल यात्रा सफल रही.

गहरी आस्था रखते हैं श्रद्धालू

भक्तों की इस मंदिर पर गहरी श्रद्धा है. माना जाता है कि जो सच्चे मन से भोले शंकर की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. सावन माह में लाखों श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आते हैं.पटना के त्रिवेणी कटैया घाट और फतुहा के कलेक्टेरिएट घाट से भी हजारों लोग जल लेकर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढ़ाते हैं. काशी के विश्वनाथ और देवधर के बैद्यनाथ धाम के बाद इसे बिहार का बाबाधाम कहा जाता है. चीनी यात्री फाह्यान ने नालंदा की यात्रा के दौरान इस मंदिर का उल्लेख किया है.

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