लालू यादव की अनसुनी कहानी: सिपाही बनने का था सपना, लेकिन एक फेल्योर और बन गए राजनीति के बादशाह

Lalu Yadav: बिहार की सियासत में अपनी अनोखी शैली और बेबाक अंदाज़ के लिए पहचाने जाने वाले लालू प्रसाद यादव का सफर जितना रंगीन रहा है, उतना ही प्रेरणादायक भी. एक साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर देश की राजनीति का बड़ा चेहरा बनने वाले लालू का पहला सपना पुलिस की वर्दी पहनने का था, लेकिन किस्मत ने उन्हें सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा दिया.

By Abhinandan Pandey | April 7, 2025 10:27 AM

Lalu Yadav: बिहार की राजनीति में जो नाम दशकों तक सत्ता और विपक्ष दोनों की धुरी रहा, वो है लालू प्रसाद यादव. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि राजनीति के इस महारथी की शुरुआत इतनी साधारण थी कि उन्होंने खुद कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे देश की राजनीति में इतनी अहम भूमिका निभाएंगे. दरअसल, लालू यादव का सपना सियासत नहीं, बल्कि सिपाही बनना था.

1948 में गोपालगंज के फुलवरिया गांव में जन्मे लालू यादव एक बेहद साधारण ग्रामीण परिवेश से आते हैं. शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा था और ऐसे माहौल में बड़े होते हुए उनकी तमन्ना बस एक सरकारी नौकरी पाने की थी. छात्र राजनीति में आने के बाद भी उन्हें लगता था कि इसमें उनका कोई भविष्य नहीं है. राजनीतिक करियर शुरू करते ही खत्म करने वाले थे. वह बिहार पुलिस में एक कांस्टेबल बनना चाहते थे.

बिहार पुलिस की भर्ती में फेल हो गए लालू यादव

वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर की किताब बंधु बिहारी में दर्ज एक किस्सा बेहद दिलचस्प है. लालू यादव ने एक बार छात्र राजनीति से दूरी बनाकर बिहार पुलिस की भर्ती में हिस्सा लिया, लेकिन दौड़ में गिर जाने के कारण फेल हो गए. यह घटना उनके जीवन की दिशा ही बदल गई. इस असफलता ने लालू को निराश किया लेकिन वहीं से उनकी किस्मत ने करवट ली. वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह, जिन्होंने लालू को छात्र राजनीति में सक्रिय किया था. उन्होंने फिर से आंदोलनों में जोड़ा. यही से लालू की राजनीतिक यात्रा का असली आगाज़ हुआ. लोगों को अपनी बातों और हरकतों से आकर्षित करने की उनकी कला ने जल्द ही युवाओं के बीच उन्हें लोकप्रिय बना दिया.

जब धरना प्रदर्शन के बाद थके, हारे पहुंचे लालू यादव…

एक बार बी.एन कॉलेज में कोई बहुत बड़ा धरना प्रदर्शन आयोजित होने वाला था. जिसमें लालू यादव की सख्त जरूरत थी. लेकिन, वह वहां मौजूद नहीं थे मौके से गायब थे. नरेंद्र सिंह ने लड़कों को उनके घर भेज के पता लगवाया लेकिन वहां भी वे मौजूद नहीं थे.

जब कार्यक्रम खत्म हुआ तब लालू यादव नरेंद्र सिंह के पास पहुंचे. थका, हारा और चोटिल लालू से नरेंद्र सिंह ने पूछा कहां गायब थे. उन्होंने जवाब दिया कि मैं पुलिस भर्ती की बहाली में गया था. वहां सबकुछ ठीक था लेकिन दौड़ भी लगानी थी. जिसमें मैं असफल रहा. इसके बाद लालू ने नरेंद्र सिंह से वादा किया कि हम अब कार्यक्रम छोड़कर नहीं भागेंगे.

छात्र नेता से मुख्यमंत्री तक का सफर

छात्र राजनीति में दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के बाद लालू यादव ने 1970 के दशक में मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा और देखते ही देखते बिहार की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे बन गए. मुख्यमंत्री पद से लेकर केंद्र की राजनीति तक, लालू ने एक प्रभावशाली पहचान बनाई.

1998: लालू का ‘वाटरलू’ और आत्मविश्वास की मिसाल

लालू यादव से जुड़ी एक और घटना का जिक्र संकर्षण ठाकुर ने बंधु बिहारी में किया है. 12वीं लोकसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी को झटका लगा. सीटें 22 से घटकर 17 हो गईं. पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने इसे लालू की ‘वाटरलू’ की लड़ाई कहा. वाटर लू की लड़ाई जो नेपोलियन की अंतिम लड़ाई मानी जाती है. इस जंग में नेपोलियन को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद उसे हेलेना नामक टापू पर भेजा गया. जहां उसकी मौत हो गई. लेकिन जब लालू यादव से वाटर लू के बारे में पूछा गया तो लालू मुस्कराए और बोले बिहार में कोई वाटरलू नहीं है, बिहार में सिर्फ लालू है.

Also Read: अयोध्या से सीतामढ़ी तक बनेगा राम-जानकी पथ, रामनवमी पर बिहार को मोदी सरकार का बड़ा तोहफा