Khudiram Bose: इसी कठघरे में शहीद खुदीराम बोस को सुनाई गयी थी फांसी की सजा, आज धूल फांक रही धरोहर

Khudiram Bose: जिस कठघरे में सन 1908 में शहीद खुदीराम की पेशी हुई थी और उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी थी, वह आज भी उपलब्ध है. जिला खनन कार्यालय के गोदाम में वह टूटा हुआ कठघरा पड़ा हुआ है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट…

By Aniket Kumar | August 17, 2025 2:44 PM

विनय/Khudiram Bose: 1857 से 1947 तक देश की आजादी के लिये अनगिनत क्रांतिवीरों ने शहादत दी है. इनमें से कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जो फांसी की सजा से खुद को बचा भी सकते थे, लेकिन देश में क्रांति की ज्वाला तेज करने के लिये उन्होंने अपनी शहादत देना मातृभूमि के लिये अपना धर्म समझा. ऐसे ही क्रांतिकारियों में अमर शहीद खुदीराम बोस थे. जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिये प्रफुल्ल चाकी के साथ वह पं.बंगाल के मेदिनीपुर से मुजफ्फरपुर पहुंचे थे. जज को मारने के लिये उन्होंने यूरोपियन क्लब के पास बम फेंका था. उनके बम के प्रहार से किंग्सफोर्ड तो नहीं मरा, लेकिन ब्रिटिश बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और बेटी की मौत हो गयी थी. अंग्रेजी सरकार ने खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया था. उस समय वर्तमान में जिला खनन कार्यालय ही जिला कोर्ट था. इसी कोर्ट में खुदीराम की पेशी हुई थी. जिस कठघरे में खुदीराम खड़े हुये थे, वह आज भी खनन कार्यालय के गोदाम में पड़ा हुआ है. देखरेख के अभाव में इसका कई हिस्सा टूट चुका है. इस कठघरे का जिक्र मेदिनीपुर के लेखक अरिंदम भौमिक ने इसी वर्ष प्रकाशित पुस्तक ”कौन खुदीराम” में जिक्र किया है. इस कठघरे के कई हिस्से टूट चुके है.

1 मई से 13 जून 1908 तक चली थी सुनवाई

खुदीराम बोस के मुकदमे की शुरुआत एक मई 1908 को गिरफ्तारी के बाद मुजफ्फरपुर में जिला मजिस्ट्रेट एचसी उडमैन की अदालत में हुयी. फिर 23 मई 1908 को प्रथम मजिस्ट्रेट इ डब्ल्यू ब्रेटेहाउड के सामने खुदीराम बोस का दूसरा बयान दर्ज हुआ था. आठ जून 1908 से अंतिम अदालती कार्रवाई शुरू हुई. इस मुकदमे की सुनवाई के लिए अंग्रेज सरकार ने बांकीपुर पटना से जज मि कार्नडफ को बुलाया था. इन्होंने रोजाना मुकदमे की सुनवाई करते हुये 13 जून 1908 को खुदीराम बोस को इसी अदालत में फांसी की सजा सुनायी थी.

आजादी की विरासत कठघरा उपेक्षा का शिकार

Khudiram bose: इसी कठघरे में शहीद खुदीराम बोस को सुनाई गयी थी फांसी की सजा, आज धूल फांक रही धरोहर 2

आजादी की विरासत कठघरा इन दिनों उपेक्षा का शिकार है. खनन कार्यालय में टूटी हुई कुर्सियों और अलमीरा के साथ इस कठघरा को बेकार सामान की तरह रखा गया है. देश की आजादी के वर्षों बीत गये, लेकिन इस कठघरे को संरक्षित करने का काम नहीं हुआ़. जिस गोदाम में यह कठघरा रखा हुआ है, उसका दरवाजा भी नहीं खुलता है. खिड़की से बारिश का पानी आने के कारण लकड़ी के टूटे हुये टुकड़े खराब हो रहे है. इस कठघरे को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर इसे म्यूजियम में रखने की जरूरत है, जिससे आने वाली पीढ़ियां क्रांतिवीरों की शहादत से परिचित हो सके

“बचाया जाये कठघरा, खनन कार्यालय बने राष्ट्रीय धरोहर”

इतिहासकार आफाक आजम बताते हैं कि खुदीराम बोस जिस कठघरे में खड़े हुये थे, उसे बचाये जाने की जरूरत है. उस समय के अदालत भवन और वर्तमान में खनन कार्यालय को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाये. यहां कठघरे के साथ खुदीराम के मुकदमे का ब्योरा रखा जाये. इस भवन में जिले के सभी 103 शहीदों का चित्र और जीवन परिचय भी उपलब्ध हो.

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