बिहार में मोबाइल कंपनी की तरह बिजली कंपनी बदल सकेंगे उपभोक्ता, जानें ग्राहकों पर कैसा होगा असर

मोबाइल नेटवर्क कंपनियों की तरह अपने क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करने वाली एक से अधिक कंपनियों के बीच में से चुनाव करने का विकल्प उपलब्ध होगा. संगठन को आशंका है कि निजी कंपनियां लागत और मुनाफा तय करते हुए दर तय करेंगी, जिससे बिजली दर बढ़ने की आशंका है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2022 7:41 AM

विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को लेकर सूबे की बिजली कंपनियों में काम करने वाले कर्मी पसोपेश में हैं. इस बिल को लाने का सरकार का मकसद बिजली आपूर्ति (डिस्ट्रीब्यूशन) और वितरण (ट्रांसमिशन) नेटवर्क के कारोबार को अलग- अलग कर बिजली कंपनियों की मोनोपोली खत्म करना और बाजार में प्रतियोगिता बढ़ाना है. लेकिन, कर्मी आशंकित हैं कि बिजली कंपनियों का निजीकरण होने से उनकी नौकरी पर संकट हो जायेगा.

मीटर वही, पर बिजली देने वाली कंपनियां बढ़ेंगी

अधिकारियों के मुताबिक नया अधिनियम लागू होने पर घरों में लगा मीटर वही रहेगा, पर बिजली देने के लिए मैदान में कई निजी कंपनियां उपलब्ध रहेंगी. मोबाइल नेटवर्क की तरह उपभोक्ता मनचाही कंपनी की बिजली पोर्ट कर सकेंगे. निजी कंपनियां सरकारी ट्रांसमिशन और जेनरेशन कंपनी का इंफ्रास्ट्रक्चर इस्तेमाल करेंगी और बदले में सरकारी कंपनियों का तार इस्तेमाल करने के बदले उन्हें ‘ व्हीलिंग चार्जेज ‘ देंगी.

संसदीय समिति के पास मामला लंबित

संसद में पेश करने के बाद यह बिल बिजली मामलों की संसदीय समिति को स्क्रूटनी के लिए भेजा गया है. इस संसदीय समिति के चेयरमैन बिहार के मुंगेर से सांसद और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह हैं. हालांकि 15 सदस्यीय समिति में भाजपा सांसदों की अधिकता होने से इसके जल्द पास होने की उम्मीद लगायी जा रही है.

क्या बदलेगा ?

उपभोक्ताओं के लिए : मोबाइल नेटवर्क कंपनियों की तरह अपने क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करने वाली एक से अधिक कंपनियों के बीच में से चुनाव करने का विकल्प उपलब्ध होगा. संगठन को आशंका है कि निजी कंपनियां लागत और मुनाफा तय करते हुए दर तय करेंगी, जिससे बिजली दर बढ़ने की आशंका है. हालांकि सरकारी पक्ष इससे इन्कार कर रहा है.

राज्य सरकार के लिए : धीरे-धीरे राज्य सरकार की भूमिका खत्म होगी. निजी कंपनियां ही ट्रांसमिशन से डिस्ट्रीब्यूशन का दायित्व संभालेंगी. राज्य की बिजली आपूर्ति कंपनियों के पास पहले मात्र 33 और 11 केवीए सब स्टेशन का ही जिम्मा रह जायेगा. लेकिन, आगे चल कर यह सब स्टेशन और लाइन भी ट्रांसमिशन कंपनी में समाहित हो जायेगी.

कर्मचारियों के लिए : बिजली वितरण व्यवस्था का निजीकरण होने से वर्तमान कार्यरत बिजली कर्मियों के लिए स्थायी नौकरी का संकट होगा. छंटनी की आशंका बनी रहेगी.

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उपभोक्ताओं पर भी बुरा असर

बिहार-झारखंड राज्य विद्युत परिषद फिल्ड कामगार यूनियन के महासचिव अमरेंद्र प्रसाद मिश्र ने बताया है कि विद्युत अधिनियम में संशोधन का बिजली कर्मियों के साथ ही उपभोक्ताओं पर भी बुरा असर पड़ेगा. बिल वापस लेने की मांग को लेकर संगठन आंदोलन करेगा. इसके विरोध में 13 सितंबर को विराट कन्वेंशन का भी आयोजन किया जा रहा है.

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