Bihar Politics: भाजपा-महागठबंधन का पॉलिटिकल बैटल ग्राउंड बना सीमांचल, जानें क्यों हो रही जोर-आजमाइश..

सीमांचल में बीजेपी अपने परंपरागत वोटरों को एकजूट करने में लगी हैं. वहीं, महागठबंधन अपनी जमीन बचाने के जुगाड़ में जुटा है. फिलहाल, सीमांचल के चार लोकसभा सीटों में से तीन पर महागठबंधन का कब्जा है, जबकि एक पर बीजेपी का एक सीट पर कब्जा है.

By RajeshKumar Ojha | February 10, 2023 8:23 PM

राजेश कुमार ओझा

बिहार का सीमांचल BJP और महागठबंधन का बना पॉलिटिकल बैटल ग्राउंड बनता जा रहा है. बीजेपी और महागठबंधन दोनों इस क्षेत्र में अपनी जोर आजमाइश बढ़ाने में लगे हैं. यही वजह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सितंबर 2022 में अपनी बिहार की पहली चुनावी सभा सीमांचल से की और अब महागठबंधन 25 फरवरी को किशनगंज में अपनी रैली करने जा रहा है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि नीतीश और तेजस्वी इस सभा से ही लोकसभा चुनाव का शंखनाद कर सकते हैं.

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सीमांचल में ही जोर आजमाइश क्यों

सीमांचल में बीजेपी और महागठबंधन की सक्रियता को समझने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को जानना जरूरी है. सीमांचल में लोकसभा की चार सीटें अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार हैं. इन चार में तीन पर तब एनडीए का कब्जा था और एक सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीते थे. लेकिन, नीतीश कुमार का बीजेपी से अलग होने के बाद यहां का समीकरण पूरी तरह से बदल गया. अब सीमांचल की चार सीटों में तीन पर महागठबंधन और एक पर बीजेपी का कब्जा है. दरअसल, तब जदयू- बीजेपी एक साथ चुनाव लड़ी थी. चुनाव में जदयू के दो प्रत्याशी विजयी हुए थे.

अब जबकि जदयू बीजेपी से अलग हो गई है, तो बीजेपी यहां पर कमजोर पड़ गई. हालांकि, कमजोर होते जनाधार के बीच बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में तीनों सीटों पर अपना कब्जा चाहती है. बीजेपी का तर्क है कि जेडीयू को जिन दो सीटों पर जीत मिली थी, वह बीजेपी के कारण मिली थी. सीमांचल के लोगों ने जदयू को बीजेपी के कारण अपना वोट दिया था. इसलिए ये सीट बीजेपी का है. इधर, जदयू के महागठबंधन में आने के बाद महागठबंधन के सामने अपनी तीनों सीटों को बचाने की चुनौती है. यही कारण है कि 25 फरवरी को महागठबंधन यहां पर अपनी रैली करने जा रही है और 2022 में अमित शाह ने भी अपनी पहली सभा यहां से करने का फैसला लिया था.

बीजेपी की चिंता

सीमांचल में बीजेपी की चिता बदलती डेमोग्राफी है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की मानें तो 1970 के बाद इस क्षेत्र में करीब 20 गुना मुसलमानों की आबादी बढ़ गई है और हिन्दूओं की संख्या घट गई है. इसके साथ ही अलगाववादी तत्व भी इस क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं.इसका एक कारण बांग्लादेश की सीमा का भी होना है. 1951 से 2011 के दौरान पूरे देश में मुस्लिम आबादी के बढ़ने की रफ्तार 4 प्रतिशत रही है, बिहार के सीमांचल क्षेत्र में यह वृद्धि दर 16 फीसदी आंकी गयी है.बिहार का किशनगंज तो एक ऐसा जिला है जहां मुस्लिम आबादी हिन्दुओं से अधिक है.

महागठबंधन के लिए अवसर

सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिमों की बढ़ती अबादी बीजेपी के लिए चिंता का विषय है वहां महागठबंधन के लिए यह एक अवसर है. आरजेडी इस क्षेत्र में अपना ‘माई’ कार्ड के बलपर अल्पसंख्य वोटरों को गोलबंद करने में लगी है. कहा जा रहा है तेजस्वी 25 फरवरी की रैली सीमांचल से बीजेपी पर हमला करेंगे. इसकी पूरी तैयारी भी चल रही है.

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