Bihar Elections 2025: महागठबंधन से 12 सुरक्षित सीटें छीनने में कैसे कामयाब रहा राजग
Bihar Elections 2025: बिहार के राजनीतिक भूगोल में इस बार जातीय रणनीति ने ऐसा खेल दिखाया कि महागठबंधन अपनी सबसे भरोसेमंद जमीन पर भी फिसल गया. वहीं राजग ने सुरक्षित सीटों पर अभूतपूर्व जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया कि उसका जातीय गणित सिर्फ कागज पर नहीं, जमीन पर भी कारगर रहा.
Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने सुरक्षित सीटों पर जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 87.5 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की है. इस रणनीतिक सफलता ने न केवल महागठबंधन के समीकरणों को ध्वस्त किया, बल्कि 2020 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष को मिली 12 सुरक्षित सीटों पर भी कब्जा कर लिया. अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित कुल 40 सीटों वाले इस क्षेत्र में राजग की आक्रामक और जाति-आधारित रणनीति निर्णायक साबित हुई.
जातीय इंजीनियरिंग- भाजपा ने अगड़े वर्ग पर साधा निशाना, जदयू ने ओबीसी–EBC को केंद्र में रखा
इस चुनावी दांव में भाजपा की रणनीति स्पष्ट दिखाई दी, अगड़ा वर्ग उसके टिकट वितरण का केंद्र रहा. पार्टी ने पिछले चुनाव की तरह ही अगड़ा जातियों को प्राथमिकता दी और साथ ही ओबीसी तथा अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को भी टिकट देकर जातीय संतुलन साधने की कोशिश की. टिकट पाने वालों में पांच कुशवाहा, दो कुर्मी और पांच वैश्य उम्मीदवार शामिल रहे.
वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद (एकी) ने इस बार लगभग पूरी रणनीति ओबीसी और ईबीसी पर टिका दी. पार्टी के 59 से अधिक टिकट इन वर्गों के उम्मीदवारों को दिए गए, जबकि यादव और मुसलिम समुदाय पर भरोसा काफी कम कर दिया गया.
इसी के समानांतर लोजपा (हमसे) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने अत्यंत पिछड़ी जातियों और सामाजिक रूप से कमजोर समूहों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया. इस सामूहिक रणनीति का असर गठबंधन की पूरी चुनावी मुहिम में साफ नजर आया.
प्रचार में केंद्र बना अत्यंत पिछड़ा वर्ग
राजग ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों तक भी अत्यंत पिछड़ा वर्ग को अपनी मुहिम का केंद्रीय स्तंभ बनाए रखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभाओं में राजद के कुछ लोकप्रिय चुनावी गीतों का उदाहरण देते हुए यह संदेश देने की कोशिश की कि पिछली सरकारों में ईबीसी समुदायों के साथ भेदभाव होता था.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अन्य राजग नेताओं ने भी अपने भाषणों में ईबीसी वर्ग को खास तौर पर संबोधित किया. उनके भाषणों में यह संदेश बार-बार उभरता रहा कि नीतीश सरकार ने इस वर्ग को न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूती दी है.
महागठबंधन का दांव उल्टा पड़ा, वीआईपी का प्रदर्शन रहा शून्य
महागठबंधन ने मतदान से ठीक पहले अत्यंत पिछड़ा वर्ग को अपनी ओर खींचने के लिए मुकेश सहनी को जीत के बाद उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी. इस दांव का मकसद ईबीसी वोट बैंक को साधना था, लेकिन यह प्रयोग उलटा पड़ गया.
मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी इस बार एक भी सीट नहीं जीत पाई. दूसरी तरफ राजग के नेताओं का कहना है कि ईबीसी वोटरों तक पहुंच बनाने के लिए पिछले एक वर्ष से चलाए गए संपर्क अभियानों का बड़ा असर देखने को मिला. सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से सीधा संपर्क, स्थानीय नेतृत्व को आगे बढ़ाना और बूथ स्तर पर caste-based mobilisation ने गठबंधन को सुरक्षित सीटों पर बढ़त दिलाई.
सुरक्षित सीटों पर क्यों फिसला महागठबंधन?
2020 में जिन 12 सीटों पर महागठबंधन ने बढ़त बनाई थी, इस बार वो सीटें राजग के खाते में चली गईं. इसका बड़ा कारण जातीय गोलबंदी और स्थानीय उम्मीदवारों की मजबूत पकड़ बताई जा रही है. दलित और महादलित वोटरों तक पहुंच बनाने के लिए राजग ने संगठनात्मक स्तर पर कई कार्यक्रम चलाए. सरकारी योजनाओं आवास, स्वास्थ्य बीमा, छात्रवृत्ति, वृद्धावस्था पेंशन, मनरेगा के लाभार्थियों से पार्टी कार्यकर्ताओं ने सीधा संवाद कायम किया.
विशेषकर युवा और स्थानीय चेहरों को टिकट देकर राजग ने यह संदेश देने की कोशिश की कि सुरक्षित सीटों पर केवल प्रतीकात्मक राजनीति नहीं, बल्कि जमीनी नेतृत्व को महत्व दिया जाएगा.
इसके उलट महागठबंधन आंतरिक असंतोष, उम्मीदवार चयन और जातीय समीकरणों के असंतुलन से जूझता दिखा. ईबीसी और दलित समूहों के बीच उसका संदेश उतनी मजबूती से नहीं पहुंच सका.
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण फिर निर्णायक
इस चुनाव के परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में जातीय संतुलन अभी भी चुनावी राजनीति का सबसे केंद्रित और निर्णायक घटक है. राजग ने इसे न केवल समझा, बल्कि इसे बूथ स्तर तक प्रभावशाली रूप से लागू भी किया.
सुरक्षित सीटों पर 87.5 प्रतिशत जीत का मतलब है कि दलित, महादलित, ईबीसी और ओबीसी के बड़े हिस्से ने राजग की रणनीति पर भरोसा जताया. वहीं महागठबंधन के लिए यह संकेत गंभीर है कि सुरक्षित सीटों सहित वह पारंपरिक वोट आधार लगातार खिसकता जा रहा है.
