Bihar Election 2025: बिहार की इस सीट पर 65 सालों तक भूमिहार जाति का ही रहा वर्चस्व, जानें इसका राज

Bihar Election 2025: हिसुआ विधानसभा बनने के साथ ही हिसुआ में जातिगत वर्चस्व रहा, जो अब तक जारी है. चुनाव में जातियों के खेमे और गोलबंदी का काम होता रहा. भूमिहार, यादव, अल्पसंख्यक, अतिपिछड़ा, पिछड़ा और दलित की एकजुटता भी बनती रही, लेकिन जीत हमेशा एक ही जाति के प्रत्याशी की हुई. 65 साल के 15 चुनाव में अन्य जाति का प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका. हालांकि, तीन-चार बार दूसरी जाति के प्रत्याशी ने कांटे की टक्कर दी.

By Radheshyam Kushwaha | November 1, 2025 2:16 PM

Bihar Election 2025: उदय भारती, नवादा. हिसुआ में एक ही जाति के प्रत्याशियों ने कांग्रेस से 45 साल और भाजपा से 20 साल तक राज किया और अभी तक कायम है. 1957 में विधानसभा बनने के साल से अब तक एक ही भूमिहार जाति के ही प्रत्याशी सीट पर काबिज रहे. सबसे अधिक 25 साल तक एक ही व्यक्तित्व आदित्य सिंह का चेहरा सामने रहा. उन्होंने लगातार छह टर्म कांग्रेस के टिकट पर और निर्दलीय खड़ा होकर जीत हासिल की और 25 साल तक राज किया. वह कांग्रेस और निर्दलीय से 1980 से लेकर 2005 तक विधायक बने रहे. पशुपालन राज्य मंत्री भी बने. हिसुआ विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद शुरुआती काल में सबसे अधिक समय तक राज करने वाला परिवार शत्रुघ्न शरण सिंह का रहा. शत्रुघ्न शरण सिंह और उनकी पत्नी राजकुमारी देवी ने 20 साल तक राज किया. विधानसभा बनने पर 1957 और 1962 के चुनाव में उनकी पत्नी राजकुमारी देवी 10 साल तक सीट पर काबिज रहीं और उसके बाद 1967, 1969 और 1972 के चुनाव में शत्रुघ्न शरण सिंह जीत हासिल कर 10 साल तक सीट पर काबिज रहे.

Bihar Election 2025: हिसुआ विधानसभा में 1957 से लेकर 1977 तक कांग्रेस का ही रहा राज

विधानसभा में 1957 से लेकर 1977 तक कांग्रेस का ही राज रहा. केवल 1977 में जब इमरजेंसी के बाद 1977 की जनता पार्टी की लहर उठी, तब हिसुआ में कांग्रेस का किला ढहा और बाबूलाल सिंह जनता पार्टी से विधायक चुने गये. लेकिन, उसके बाद 1980 में आदित्य सिंह ने अपनी जोरदार उपस्थिति दिखाते हुए निर्दलीय जीत हासिल कर ली. फिर 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और तब से लगातार 2005 तक सीट पर काबिज रहे. 2000 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने फिर निर्दलीय चुनाव लड़कर अपने वर्चस्व को दिखा दिया. आदित्य सिंह के 25 साल की मजबूत किले और दीवार को भाजपा से उम्मीदवारी लेकर अनिल सिंह ने 2005 के अक्टूबर-नवंबर में हुए चुनाव में भेदा और तब से अनिल सिंह लगातार तीन बार जीत हासिल कर 15 साल से सीट पर काबिज रहे. 2020 में आदित्य सिंह की बहू नीतू कुमारी ने भाजपा के गढ़ को तोड़ा और कांग्रेस से विधायक बनीं.

दूसरी जाति के प्रत्याशियों से कई बार कड़ी टक्कर

विधानसभा क्षेत्र में दूसरी जातियों की गोलबंदी भी हावी रही. कई बार दूसरी जाति के प्रत्याशी से कड़ी कांटे की टक्कर रही. 1957 में मुख्य प्रतिद्वंद्वी सोशलिस्ट पार्टी से विशेश्वर महतो और 1962 में हिसुआ के ही महादेव बिगहा के रहने वाले सोशलिस्ट पार्टी से टेक नारायण प्रसाद यादव रहे. उनके बाद लोजपा से अनिल मेहता, जदयू से कौशल यादव आदि का नाम आता है, जिन्होंने कड़ी टक्कर दी. 2015 के चुनाव में दूसरे नंबर पर कौशल यादव और 2010 के चुनाव में अनिल मेहता दूसरे नंबर पर थे. लेकिन, ज्यादातर यहां टक्कर भूमिहार बनाम भूमिहार ही रहा. कम्युनिस्ट पार्टी से भदसेनी गांव के रहने वाले लाल नारायण सिंह कई बार चुनाव लड़े और कांटे की टक्कर दी. 1980, 1985, 1990 और 1995 में आदित्य सिंह के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे और बहुत कम वोट से हारे.

बड़ी पार्टियां हिसुआ में भूमिहार को ही देना चाहती हैं टिकट

पार्टियां हिसुआ के जातीय वर्चस्व और उसकी पृष्ठभूमि पर ही टिकट का निर्णय लेती हैं. बडी व नामवर पार्टियां हिसुआ में भूमिहार को ही टिकट देना चाहती हैं. पार्टी के टिकट देने के शुरू के इतिहास से यह साफ पता चलता है. कांग्रेस के जीते उम्मीदवार हों या हारे, टिकट एक ही जाति के लोगों को मिला. भाजपा से 1977 में बाबूलाल सिंह को टिकट मिला. कम्युनिस्ट पार्टी ने भी कई बार लाल नारायण सिंह को टिकट दिया. फिलवक्त, भाजपा से अनिल सिंह और कांग्रेस से नीतू देवी को टिकट मिला है, जो इसी जाति से आते हैं. बड़ी पार्टियों से टिकट लेने की होड़ भी ज्यादातर इसी समाज के लोगों की होती है. इस बार कांग्रेस में इसके लिए घमासान मचा था. हिसुआ से पांच-सात दावेदार थे. लेकिन टिकट नीतू देवी को ही हासिल हुआ.

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ईमानदारी के प्रतीक रहे शत्रुघ्न शरण सिंह और उनकी पत्नी

हिसुआ में शत्रुध्न शरण सिंह ईमानदारी के प्रतीक रहे. आज भी लोग उनकी ईमानदारी की चर्चा करते थकते नहीं हैं. पत्नी राजकुमारी देवी की सादगी और ईमानदारी को भी लोग काफी याद करते हैं. प्रो भारत भूषण, प्रोफेसर डॉ मनुजी राय, प्रोफेसर शंभु शरण सिंह, जेपी सेनानी जयनारायण प्रसाद आदि उनकी ईमानदारी और ऊंचे व्यक्तित्व को याद कर उन्हें नमन करते हैं. हिसुआ को उनकी सबसे बड़ी देन त्रिवेणी सत्यभामा कॉलेज और उनके प्रोफेसर और कर्मी हैं. वे कॉलेज की बुनियाद और विकास के स्तंभ हैं. इसके अलावा वे हिसुआ के बुनियादी विकास के लिए भी कई चिह्नित काम किये, जिसकी नींव पर आज हिसुआ इतना विकसित हुआ. जननेता, स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघ्न शरण सिंह का जन्म गया जिले के कोंच के सिंदुआरी गांव में हुआ था. उनका कार्यक्षेत्र गया रहा. वह बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के काफी करीबी थे.

गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे शत्रुध्न शरण सिंह

शत्रुध्न शरण सिंह गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे और 1933 से 37 तक जेल में रहे. 1938 में गया जिला परिषद के उपाध्यक्ष बने. 1942 में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और 1960 में बिहार कांग्रेस के महामंत्री हुए और 1962 तक रहे. 1957 में हिसुआ से उनकी पत्नी राजकुमारी देवी चुनाव लड़ी और विजयी हुईं. दो टर्म के बाद 1967 में शत्रुघ्न सिंह खुद हिसुआ से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. शत्रुघ्न सिंह 1969 में जीत हासिल करने के बाद सरदार हरिहर सिंह मंत्रिमंडल में शामिल हुए और फिर दारोगा प्रसाद राय के मंत्रिमंडल में भी सम्मिलित रहे. छह टर्म जीत हासिल कर 25 सालों तक हिसुआ विधानसभा क्षेत्र पर राज करने वाले आदित्य सिंह स्थानीय नरहट के रहने वाले आदित्य सिंह हिसुआ नरेश और हिसुआ शेर के नाम से जाने जाते हैं.

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