बिहार दिवस : जब श्रीबाबू ने पारित कराया बिहार को बंगाल में समाहित करने का प्रस्ताव, जानें कौन किया विरोध

बिहार दिवस : 1956 में बाबू श्रीकृष्ण सिंह की सरकार ने बिहार और बंगाल को पुन: एक किये जाने की बात कही. इस नये प्रस्ताव में बंगाल की तत्कालीन सरकार की भी भूमिका थी. इस प्रस्ताव की सबसे खास बात यह थी कि विलय के बाद बंगाल की राजधानी कोलकाता के बदले पटना बनाने की बात कही गयी थी.

By Prabhat Khabar Print Desk | March 23, 2022 10:24 AM

मिथिलेश पटना. आज हम बिहार की 110वीं वर्षगांठ पर बिहार दिवस मना रहे हैं. यह तो सब जानते हैं कि 1912 में बिहार-उड़ीसा को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली थी. उस वक्त राज्य परिषद में सरकार ने नये प्रांत के निर्माण का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि अगर शासन-प्रशासन में दिक्कत आती है तो एक साल बाद नये प्रांत को बंगाल में फिर से शामिल कर लिया जायेगा. राज्य परिषद में इस शर्त के साथ नये प्रांत के निर्माण का प्रस्ताव तो पारित हो गया, लेकिन शासन-प्रशासन के क्षेत्र में बिहार अपनी राहें आसान बना गया और एक साल बाद इसपर समीक्षा की कोई जरुरत ही महसूस नहीं हुई. यह जरूर हुआ कि बंगाल से अलग होने के कुछ साल बाद ही अपनी भाषा और संस्कृति के नाम पर उड़ीसा बिहार से अलग हो गया.

तो बंगाल की राजधानी बन जाती पटना

बंगाल से अलग होने के करीब 44 साल बाद बिहार ने उस फैसले की समीक्षा की और बिहार विधान परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया. बाबू श्रीकृष्ण सिंह की सरकार ने बिहार-बंगाल को पुन: एक किये जाने की बात कही. इस नये प्रस्ताव में बंगाल की तत्कालीन सरकार की भी भूमिका थी. इस प्रस्ताव की सबसे खास बात यह थी कि विलय के बाद बंगाल की राजधानी कोलकाता के बदले पटना बनाने की बात कही गयी थी. बिहार विधान परिषद से यह प्रस्ताव पारित भी हो गया. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह इस प्रस्ताव के अगुआ थे, इसलिए बहुत हो-हल्ला भी नहीं हुआ. चूंकि सत्ता पक्ष की ओर से प्रस्ताव आया था तो विपक्ष की ओर से विरोध में बातें आयी, लेकिन यह प्रस्ताव पारित हो गया.

बंगाल में प्रस्ताव का हुआ जबर्दस्त विरोध 

उधर, बंगाल विधानसभा में भी वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय की अगुवाई में यह प्रस्ताव रखा गया. वहां के विधानसभा में विलय को लेकर तो सहमति बनी, लेकिन राजधानी बदलने को लेकर कड़ा विरोध हुआ. सदन में विधानचंद्र राय को बहुमत यह प्रस्ताव पूरी तरह अमल में आ पाता, इसके पहले इसकी भनक जय प्रकाश नारायण को मिली. वह इस एकीकरण के विरोधी थे. जयप्रकाश नारायण तत्काल दिल्ली पहुंचे. उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से मुलाकात की और इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की. माना जाता है कि पंडित नेहरु के हस्तक्षेप के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया.

जेपी की दखल के बाद श्रीबाबू भी प्रयास छोड़ा 

दिलचस्प तथ्य यह कि बंगाल में आम लोगों ने इस विलय के उस प्रस्ताव का जबर्दस्त विरोध किया, जिसमें कोलकाता की जगह राजधानी पटना लाने की बात कही गयी थी. इसी बीच, बंगाल विधानसभा का उप चुनाव हुआ. उपचुनाव में बिहार-बंगाल एकीकरण का प्रस्ताव एक मुद्दा बन गया. उस उपचुनाव में बंगाल की तत्कालीन सत्ताधारी दल पराजित हो गया. इसके बाद बंगाल सरकार ने इस प्रस्ताव को वापस ले लिया. इधर, श्री बाबू भी इस प्रस्ताव को लेकर बहुत प्रयास नहीं किये.

Next Article

Exit mobile version