बिहार Flood : 1994 के बाद नहीं हुआ नदियों के सिल्टेशन का अध्ययन
पुष्यमित्र पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर मानते हैं कि नदियों का छिछलापन और इसके बेड में गाद का जमा होना आज की तारीख में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह है. मगर राज्य की नदियों के जल में गाद की मात्रा को लेकर 1994 के बाद कोई अध्ययन नहीं हुआ है. राज्य का जल संसाधन […]
पुष्यमित्र
पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर मानते हैं कि नदियों का छिछलापन और इसके बेड में गाद का जमा होना आज की तारीख में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह है. मगर राज्य की नदियों के जल में गाद की मात्रा को लेकर 1994 के बाद कोई अध्ययन नहीं हुआ है. राज्य का जल संसाधन विभाग भी बाढ़ से सुरक्षा के मामले में सिर्फ तटबंधों के सुदृढ़ीकरण का ही काम करता है. नदियों के गाद कम करने को लेकर विभाग के पास न कोई योजना है, न कार्यप्रणाली. विभाग में कभी इन कामों के लिए एडवांस प्लानिंग डिपार्टमेंट हुआ करता था, उसे भी 25 साल पहले बंद कर दिया गया है. यह उस राज्य की हालत है, जहां हर साल बाढ़ से अनुमानतः 30 अरब का नुकसान होता है और दसियों लाख लोग पीड़ित होते हैं.
अगर आप बिहार की नदियों में गाद की मात्रा पर जानकारी हासिल करना चाहें तो पता चलेगा कि सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन, 1994 के बाद इस विषय पर कोई जमीनी अध्ययन नहीं हुआ है, जबकि इन 22 सालों में यहां की नदियों का सर्वाधिक नुकसान हुआ है. गाद भरने की वजह से हालात बद से बदतर हुई है. मगर राज्य का जल संसाधन विभाग यह बता पाने में पूरी तरह अक्षम है कि मौजूदा वक्त में बिहार की नदियों में गाद की मात्रा कितनी है. यह भी विडंबनापूर्ण तथ्य है कि हर साल बाढ़ की तबाही झेलनेवाले इस राज्य में अब तक बाढ़ के प्रभाव और इसकी वजहों पर एक ही सरकारी अध्ययन हुआ है. पहले बिहार इरिगेशन कमीशन में बाढ़ पर अध्ययन नहीं हुआ था, जबकि कायदे से ऐसे राज्य में हर 10 साल पर इरिगेशन कमीशन का गठन कर अध्ययन होना चाहिए था.
राज्य का जल संसाधन विभाग, जिसका काम राज्य की तमाम नदियों की सेहत का ख्याल रखना था, का सारा जोर तटबंधों की सुरक्षा और नहरों से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने तक रहता है.
जबकि विशेषज्ञों ने काफी पहले मान लिया है कि तटबंधों की मदद से बाढ़ से सुरक्षा नहीं हो सकती. नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं, आप चाहे लोहे के तटबंध बना लें, मगर नदियों को रोक नहीं सकते. संयोगवश आज की तारीख में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस राय से सहमत हैं और मानते हैं कि नदियों का छिछला होना और उसके बेड में गाद का भर जाना ही बाढ़ की सबसे बड़ी वजह है. मगर विभाग इस दिशा में अभी सोचने के लिए भी तैयार नहीं है.
विभाग में ज्यादातर टेंडर वर्क होते हैं, शोधपरक कार्यों और भविष्य की योजनाओं के लिए कोई काम नहीं होता. काफी पहले विभाग में एक एडवांस प्लानिंग डिपार्टमेंट हुआ करता था, मगर 90 के दशक में उसे भी बंद करा दिया गया. अब सारा काम इंप्लीमेंटेशन का है. शोध और नये सोच को लागू करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है. जाहिर-सी बात है, ऐसे में सारा काम पुराने तरीके और पुराने ख्यालों से चल रहा है.
सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन, 1994
इस कमीशन की रिपोर्ट में नदियों के डिस्चार्ज, सिल्टेशन, बाढ़ग्रस्त इलाके, बाढ़ की वजहें और सिंचाई परियोजनाओं की स्थिति पर व्यापक अध्ययन किया गया है. तीन हजार पन्नों की इस रिपोर्ट का प्रकाशन छह वॉल्यूम में किया गया. पहले कमीशन की रिपोर्ट 1971 में की गयी थी. उसमें बाढ़ के मसले पर अध्ययन नहीं किया गया था. विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार जैसे बाढ़ग्रस्त राज्यों में हर 10 साल पर ऐसे अध्ययन होने चाहिए, ताकि बाढ़ से मुकाबले में मदद मिल सके.
सीधी बात : हमने केंद्र से कई दफा किया अनुरोध
हमारे पास अपनी नदियों के सिल्टेशन के आंकड़े 22 साल पुराने हैं, सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन के. उसके बाद राज्य की नदियों के सिल्टेशन की जांच हुई है क्या?
कई आंकड़े हैं. हालांकि उनका विश्लेषण नहीं हो सका है. मगर गंगा के किनारे भागलपुर में 2013 में हमने सिल्ट की मात्रा को रेकॉर्ड किया है और कुछ निजी एजेंसियों ने भी अध्ययन किया है.
क्या विभाग सिल्ट मैनेजमेंट की दिशा में भी कुछ काम करता है?
केंद्र से कई बार अनुरोध कि
बिहार की नदियों में सिल्ट की अधिक मात्रा है और इस समस्या ने
निबटने के लिए कोई नीति बनायी जाये, ताकि हमें उसका लाभ मिल सके.
विभाग में एक एडवांस प्लानिंग डिपार्टमेंट था, जिसे 25 साल पहले बंद कर दिया गया.
हां, वह अलग विभाग था.
इंदु भूषण कुमार,
इंजीनियर इन चीफ, हेडक्वार्टर, जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार
सिल्टेशन पर क्या कहती है सेकेंड बिहार इरिगेशन कमीशन की रिपोर्ट
गंगा को छोड़ कर बिहार से गुजरनेवाली तमाम नदियां मिल कर हर साल 1,24,000 एकड़ प्रति फुट की दर से सिल्ट जमा करती हैं.
गंगा नदी में मौजूद सिल्ट का 40% हिस्सा बिहार की दूसरी नदियों से उसे हासिल होता है. गंगा बरसात के दिनों में 55% पानी और फरवरी से मई के बीच 70% पानी बिहार की नदियों से हासिल करती है.
