बढ़ रही है टीबी मरीजों की संख्या, 2367 एमडीआर टीबी मरीज मिले जिसमें 59 फीसदी मरीज ही करा रहे हैं इलाज

सुमित कुमार, पटना : नियमित दवा नहीं लेने वाले टीबी मरीजों के कारण एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) व एक्सडीआर (एक्सटेंटिव ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ी है. इस वर्ष के शुरुआती छह माह में ही 2367 नये एमडीआर टीबी मरीजों की पहचान हो चुकी है. इनमें सबसे अधिक 509 एमडीआर मरीजों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 30, 2019 6:03 AM

सुमित कुमार, पटना : नियमित दवा नहीं लेने वाले टीबी मरीजों के कारण एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) व एक्सडीआर (एक्सटेंटिव ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ी है. इस वर्ष के शुरुआती छह माह में ही 2367 नये एमडीआर टीबी मरीजों की पहचान हो चुकी है. इनमें सबसे अधिक 509 एमडीआर मरीजों की पहचान पटना जिले में हुई, जबकि दरभंगा, गया, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी व समस्तीपुर में भी इनकी संख्या 100 से अधिक बतायी गयी है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक नये पहचान किये गये 2367 एमडीआर टीबी मरीजों में 59 फीसदी यानी 1401 का ही डॉक्टरों की देख-रेख में इलाज चल रहा है.

पटना में पहचाने गये 509 एमडीआर टीबी में मात्र 24 फीसदी यानी 122 ही डॉक्टर की निगरानी में इलाज को लेकर सहमत हुए. गया में 143 में मात्र 71, जमुई में 22 में मात्र 11, जहानाबाद में 14 में 7, नालंदा में 48 में 22, सारण में 81 में 35 व सीतामढ़ी में 129 में मात्र 56 ही इलाज को लेकर अस्पतालों में पहुंचे. दरभंगा में 201 एमडीआर टीबी मरीज पाये गये.
पटना में सबसे अधिक, दरभंगा, गया, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी व समस्तीपुर में नये एमडीआर टीबी मरीजों का आंकड़ा 100 के पार
नियमितदवा नहीं लेने के कारण बढ़ रही एमडीआर व एक्सडीआर टीबी की समस्या कठिन इलाज के चलते नहीं पहुंचते मरीज
डॉक्टरों के मुताबिक कठिन इलाज के चलते एमडीआर के रोगी अस्पतालों में नहीं पहुंच रहे.
दरअसल इलाज में प्रयोग में आने वाली कुछ दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं. इसकी वजह से शरीर में भयंकर दर्द से लेकर कई साइड इफेक्ट होते हैं. इसको देखते हुए ऐसे मरीजों को शुरुआती दौर में डॉक्टरों की निगरानी में एडमिट होकर हफ्ते-दस दिन तक दवा खाने की सलाह दी जाती है. इनको नियमित रूप से 24 से 27 महीने तक दवाएं खानी पड़ती हैं.
टीबी की बिगड़ी हुई इस अवस्था में सामान्य टीबी की दो प्रमुख दवाएं आइसोनियाजिड व रिफांपसिन रोगी पर बेअसर हो जाती है. जांच में एमडीआर का पता लगने पर उसके पहले से चल रहे टीबी के इलाज को बंद कर विशेषज्ञ की देख-रेख में लिवर, किडनी, थायरॉयड और शूगर संबंधी जांच की जाती है.
संपर्क में रहने वालों को भी एमडीआर का खतरा
एमडीआर मरीज का इलाज बहुत जरूरी है. एमडीआर टीबी मरीज के साथ रहने वाले सामान्य टीबी मरीज को एमडीआर टीबी होने का खतरा अधिक होता है. एचआइवी से पीड़ित टीबी मरीज या दोबारा टीबी से ग्रसित होने वाले मरीजों में भी एमडीआर की आशंका बनी रहती है. इसलिए डॉक्टर हर टीबी रोगी को बिना गैप किये नियमित रूप से दवा खाने की सलाह देते हैं.
दवाएं नियमित रूप से नहीं लेने या डॉक्टरों द्वारा दवाओं का सही चयन या सही मात्रा नहीं दिये जाने पर भी एमडीआर टीबी का रोग हो सकता है. एक शोध के अनुसार टीबी के नये रोगियों में 2-3 प्रतिशत जबकि पहले से टीबी से पीड़ित मरीजों में 12-17 प्रतिशत तक यह बीमारी हो सकती है.
माइंडसेट बदलना है चुनौती
सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं कराने वाले 41 फीसदी एमडीआर टीबी मरीज निजी अस्पताल या डॉक्टरों से जुड़े होंगे. बीमारी की इस अवस्था में इलाज कराना बहुत खर्चीला होता है और इलाज चक्र टूटने की वजह से उनकी बीमारी बढ़ती चली जाती है. ऐसे मरीजों का माइंडसेट बदलना हमारे लिये बड़ी चुनौती है.
राष्ट्रीय टीबी हेल्पलाइन नंबर : 1800116666