मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामला : सजा के तौर पर दिन भर कोर्ट के कोने में बैठे रहे नागेश्वर राव

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीबीआइ के पूर्व अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव और इस जांच एजेंसी के कानूनी सलाहकार एस भासूराम को अवमानना का दोषी ठहराया. सजा के तौर पर दोनों को दिनभर कोर्ट कक्ष के एक कोने में बैठे रहने को कहा. दोनों दोपहर 11. 40 बजे से शाम सवा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 13, 2019 7:28 AM
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीबीआइ के पूर्व अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव और इस जांच एजेंसी के कानूनी सलाहकार एस भासूराम को अवमानना का दोषी ठहराया. सजा के तौर पर दोनों को दिनभर कोर्ट कक्ष के एक कोने में बैठे रहने को कहा. दोनों दोपहर 11. 40 बजे से शाम सवा चार बजे तक कक्ष में बैठे रहे. लंच भी नहीं किया. दिनभर की कार्यवाही पूरी होने के बाद अदालत ने उन्हें जाने की इजाजत दी. दोनों को बतौर जुर्माना हफ्ते भर के भीतर एक लाख रुपये भी जमा करने हांेगे.
बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस की निगरानी कर रहे सीबीआइ अफसर के ट्रांसफर से नाराज कोर्ट ने यह आदेश दिया. इससे पहले सीजेआइ रंजन गोगोई, जस्टिस एलएन राव व जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने दोनों अफसर से कहा कि आप कोर्ट के एक कोने में जाएं और कोर्ट के उठने तक वहां बैठ जाएं. इससे पहले कोर्ट ने दोनों अफसरों की बिना शर्त क्षमा याचना अस्वीकार कर दी.
दरअसल, कोर्ट ने बिहार शेल्टर होम मामले की जांच के लिए सीबीआइ अफसर(तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर) एके शर्मा को नियुक्त किया था. अंतरिम निदेशक के पद पर रहते हुए राव ने शर्मा का तबादला कर दिया था. इस पर कोर्ट ने राव के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था. राव की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सोमवार को हलफनामा दायर करके अदालत से माफी मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने राव को मंगलवार को खुद पेश होने के लिए कहा था.
कोर्ट ने राव से कहा- आप ही बताएं, क्या सजा दें
सुनवाई के दौरान नागेश्वर राव से चीफ जस्टिस ने कहा कि हम आपका माफीनामा स्वीकार नहीं कर रहे हैं. गलत कानूनी सलाह की दलील में दम नहीं है. हम आपको 30 दिन के लिए जेल भेज भी सकते हैं. अब आप माफी मांगने की बजाय यह बताएं कि आपको क्या सजा दें.
आदेश जानते हुए भी क्यों किया ट्रांसफर : सीजेआइ
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि फाइलों से साफ पता चलता है कि अंतरिम निदेशक राव कोर्ट का आदेश जानते थे. ज्वाइंट डायरेक्टर के ट्रांसफर की मंजूरी देने से पहले राव ने हमें भरोसे में क्यों नहीं लिया? यदि एक दिन बाद ट्रांसफर होता, तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ता. बाद में मंजूरी का क्या मतलब है?
क्षमा कर दें, गलती करना इंसान की आदत : एजी
इस पर अटॉर्नी जनरल ने राव के 30 साल के बेदाग करियर का हवाला दिया. यहां तक कहा कि गलती करना इंसान के लिए स्वाभाविक है. क्षमा करना महानता. कोर्ट दोनों अधिकारियों को माफ कर दे. इस पर कोर्ट ने कहा, अदालत का सम्मान बनाये रखना हमारी जिम्मेदारी है.

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