ईसाई परिवार में जन्मे धुर कांग्रेस विरोधी नेता फर्नांडिस ने राष्ट्रीय राजनीति पर छोड़ी अमिट छाप

नयी दिल्ली : तेजतर्रार मजदूर नेता और समाजवादी जॉर्ज फर्नांडिस उन चंद राजनेताओं में से एक थे जिन्होंने जाति, धर्म और क्षेत्रीय पहचान से ऊपर उठ राष्ट्रीय राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ी. मंगलुरु में 1930 में एक ईसाई परिवार में जन्मे फर्नांडिस धुर कांग्रेस विरोधी नेता थे. 1990 के दशक के मध्य में भाजपा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 29, 2019 5:11 PM

नयी दिल्ली : तेजतर्रार मजदूर नेता और समाजवादी जॉर्ज फर्नांडिस उन चंद राजनेताओं में से एक थे जिन्होंने जाति, धर्म और क्षेत्रीय पहचान से ऊपर उठ राष्ट्रीय राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ी. मंगलुरु में 1930 में एक ईसाई परिवार में जन्मे फर्नांडिस धुर कांग्रेस विरोधी नेता थे. 1990 के दशक के मध्य में भाजपा के साथ उनके गठजोड़ ने गठबंधन की राजनीति में अलग-थलग पड़ी भगवा पार्टी की अश्पृश्यता समाप्त की. आपातकाल के खिलाफ उनके भूमिगत संघर्ष ने उन्हें एक प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में पहचान दी. बिखरे बाल और हाथ में बेड़ी वाली उनकी एक तस्वीर उस दौर की सबसे यादगार तस्वीरों में एक है.

केन्द्रीय मंत्री एवं कई दलों में वर्षों तक फर्नांडिस के सहयोगी रहे रामविलास पासवान ने कहा, लोकतंत्र के प्रति अदम्य प्रतिबद्धता और अपने उद्देश्य के प्रचार के लिए किसी भी हद तक जाने की उनकी तत्परता आपातकाल के दौरान उनके और कई अन्य लोगों के लिए प्रेरणा थी. ‘संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी’ के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी राजनीति में जोरदार प्रवेश करते हुए फर्नांडिस ने 1967 में दक्षिण मुम्बई निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के अनुभवी नेता एस के पाटिल को मात दी थी. फर्नांडिस ने एक कुशल मजूदर नेता के तौर पर 1974 में रेलवे हड़ताल में हिस्सा लिया, जिससे देशभर में रेल सेवाएं प्रभावित हुईं और उसे कुचलने के लिये सरकार की ओर से व्यापक कार्रवाई की गई. इसके बाद उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर का रुख किया, जहां से उन्होंने 1977 में चुनाव जीता. जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बनाया गया और उनके कार्यकाल में बहुराष्ट्रीय कंपनियों कोका कोला और आईबीएम को अपने भारतीय कारोबार बंद करने पड़े क्योंकि उन्होंने सरकारी नियमनों को काफी कठोर कर दिया था.

बिहार में लालू प्रसाद समेत राष्ट्रीय राजनीति में कई क्षेत्रिय क्षत्रपों के उदय होने पर कभी भाजपा और आरएसएस के लंबे समय तक घोर आलोचक रहे फर्नांडिस के भाजपा के शीर्ष नेताओं एलके आडवाणी और वाजपेयी के साथ संबंध बेहतर हुए. ऐसा माना जाता है कि 1995 में बिहार विधानसभा चुनावों के बाद नीतीश कुमार को भाजपा-नेतृत्व वाले गठबंधन में लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. जब 1999 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ करगिल युद्ध लड़ा था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में फर्नांडिस रक्षा मंत्री थे. फर्नांडिस के कार्यकाल में ही भारत ने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था.

फर्नांडिस अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित थे, जिस कारण वह पिछले कई वर्षों से सार्वजनिक जीवन से दूर थे और परिवार वाले घर पर ही उनकी देखभाल कर रहे थे. कुछ लोगों का कहना है कि अल्जाइमर बीमारी के कारण उनकी पार्टी जदयू का उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए टिकट ना देना और उनका मुजफ्फरपुर में अकेले मैदान में उतरना ही उनके राजनीतिक करियर का अंत था. अफसोस की बात है कि उन्हें उस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.

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