चलती गोलियां भेद न सकीं रहमतुल्लाह का सीना

चलती गोलियां भेद न सकीं रहमतुल्लाह का सीना

By Navendu Shehar Pandey | August 12, 2025 11:56 PM

तिरंगा फहराते वक्त हुए लाठी चार्ज में जख्मी हुए थे 18 अगस्त 1942 को पारू थाने में फहराया था तिरंगा उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर अंग्रेजी शासन काल में जब अधिकतर जमींदार अंग्रेजी हुकूमत की खुशामद करते थे, ऐसे दौर में भी कई राज-रजवाड़े व जमींदार देश के लिए मर मिटने को तैयार थे. उसी में एक नाम शेख रहमतुल्लाह का भी है. जन्म 1895 में पारू थाना के काजी मोहम्मदपुर गांव में हुआ था. पिता शेख लियाकत हुसैन थे. अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में इनका सक्रिय योगदान रहा. आफाक आजम की पुस्तक ””””””””मुजफ्फरपुर से”””””””” में शेख की जीवनी लिखी गयी है. शेख रहमतुल्लाह की प्रारंभिक शिक्षा पारू खेदलपुरा स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने धरफरी हाइस्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की. सात फरवरी, 1938 को पारू थाना के सब इंस्पेक्टर एलए वालर ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 9 फरवरी को जमानत पर रिहा किया गया, लेकिन देशप्रेम के कारण वह 18 अगस्त, 1942 को स्वतंत्रता सेनानी श्रीधर शर्मा के नेतृत्व में पारू थाने पर तिरंगा फहराने पहुंच गये. शेख रहमतुल्लाह व स्वतंत्रता सेनानी शमशुल होदा घोड़े पर सवार थे. अंग्रेजों ने सैकड़ों लोगों को थाने की तरफ बढ़ते देख गोलियां चला दी. जिससे अनुराग सिंह, योद्धा सिंह व छकौड़ी लाल साह वहीं शहीद हो गये. शेख रहमतुल्लाह लाठी चार्ज में बुरी तरह घायल हो गये. तीन महीने तक उनका इलाज किया गया. आजादी के बाद शेख रहमतुल्लाह सामाजिक कार्य करने लगे. इनकी मृत्यु 1973 में पारू स्थित उनके पैतृक गांव काजी मोहम्मदपुर में हुई थी.

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