मुजफ्फरपुर की सुबह जिसने भारत को रुला दिया, ‘वंदे मातरम’ लिखी अर्थी और खुदीराम बोस की फांसी

Khudiram Bose Story: 11 अगस्त 1908 की सुबह कोई आम सुबह नहीं थी. उस दिन एक महान क्रांतिकारी को फांसी दी जानी थी. उनके बलिदान से भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी प्रभावित हुए. उनकी शहादत ने न केवल बंगाल, बल्कि पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी. आज हम बात करेंगे स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदी राम बोस की.

By Nishant Kumar | August 11, 2025 10:24 AM

Khudiram Bose Freedom Fighter Story: 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में जज किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका. हमले के बाद दोनों अलग-अलग दिशाओं में भाग निकले. खुदीराम समस्तीपुर की ओर बढ़ते हुए रेलवे लाइन के सहारे चलते रहे और प्रफुल्ल ने दूसरा रास्ता पकड़ा. खुदीराम पूरी रात नंगे पैर चलते रहे और सुबह तक लगभग 24 मील का सफर तय कर वैनी स्टेशन पहुंच गए. वहां सिपाही शिव प्रसाद सिंह और फतेह सिंह ने उन्हें पकड़ लिया और बाद में मुजफ्फरपुर ले जाया गया जहां उन्हें 11 अगस्त को फांसी दे दी गई.

खुदीराम बोस की कहानी

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खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी. स्कूल के दिनों में ही वह स्वदेशी आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर आकर्षित हुए. उस समय बंगाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों का गुस्सा चरम पर था. इसी बीच लार्ड कर्जन ने 19 जुलाई, 1905 को बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया. पूर्वी बंगाल और असम (मुस्लिम बहुल) और पश्चिमी बंगाल, बिहार और उड़ीसा (हिंदू बहुल). बंगाल विभाजन ने इस आग में घी का काम किया. खुदीराम ने ‘युगांतर’ जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया. खुदीराम बोस का सबसे चर्चित कार्य मुजफ्फरपुर बम कांड था.

क्या था मुजफ्फरपुर बम कांड ?

उस समय मुजफ्फरपुर के जिला जज डगलस किंग्सफोर्ड ब्रिटिश शासन के अफसर थे, जो क्रांतिकारियों के खिलाफ सख्त सजा देने के लिए कुख्यात थे. खुदीराम और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड को निशाना बनाने की योजना बनाई. योजना के अनुसार उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका, लेकिन दुर्भाग्यवश निशाना नहीं लगा और दो निर्दोष ब्रिटिश महिलाओं की मृत्यु हो गई. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया.

खुदीराम बोस के साथी ने की आत्महत्या

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बम कांड के बाद खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी फरार हो गए लेकिन, ब्रिटिश पुलिस ने उनका पीछा किया. प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम को वैनी रेलवे स्टेशन (अब बिहार में) से गिरफ्तार कर लिया गया. मुकदमे के दौरान खुदीराम ने निर्भीकता से अपनी देशभक्ति का परिचय दिया. उन्होंने अपराध स्वीकार किया और कहा कि वह अपने देश की आजादी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

खुदीराम बोस के फांसी की कहानी

तब के प्रसिद्ध वकील और अंग्रेजी अखबार ‘बंगाली’ के संवाददाता उपेंद्रनाथ सेन लिखते हैं कि मुझे और क्षेत्रनाथ बनर्जी को खुदीराम की फांसी के समय उपस्थित रहने की अनुमति मिली थी. गुप्त रूप से, मैंने अपने घर में एक अर्थी तैयार की थी, जिसके सिरहाने पर नुकीले चाकू से ‘वंदे मातरम्’ उकेर दिया था.

सुबह-सुबह मुजफ्फरपुर की गलियों में लगी भीड़

सुबह लगभग पांच बजे, अंतिम संस्कार से जुड़ी सामग्री लेकर मैं जेल के मेन गेट पर पहुंचा। चारों ओर की गालियां लोगों से भरी थीं—कईयों के हाथों में फूल-मालाएं थीं. जब हम जेल के अंदर पहुंचे तो दाहिनी ओर लगभग पंद्रह फीट ऊंचे फांसी के तख्त पर नजर पड़ी. लोहे के दो मोटे खंभों पर एक मजबूत बीम थी जिसके बीच में एक मोटी रस्सी का फंदा लटक रहा था.

खुदीराम बोस को दी गई फांसी

खुदीराम ने एक बार हमारी ओर देखा, फिर दृढ़ कदमों से तख्त की ओर बढ़े. ऊपर चढ़ने के बाद उनके हाथ पीछे बांध दिए गए और सर पर हरी टोपी डाल दी गई जिससे चेहरा गर्दन तक ढक गया. फंदा उनकी गर्दन में डालकर कस दिया गया. हम बाहर आ गए.

इस तरह हुई मौत की पुष्टि

करीब आधे घंटे बाद, जेल के युवा डॉक्टर हमारे पास आए और अर्थी और नए कपड़े मांगे, जो हम मृत शरीर के लिए लाए थे. कानून के अनुसार फांसी के बाद ठुड्डी पर चीरा लगाकर मृत्यु की पुष्टि की जाती थी. डॉक्टर ने चीरा सिलकर, जीभ और आंखों को सही स्थिति में लाकर नए कपड़े पहनाए और शव हमें सौंप दिया.

चिता पर भव्य दिख रहा था खुदीराम का चेहरा

श्मशान पहुंचने पर, हमनें उन्हें नहलाने की कोशिश की, लेकिन सिर रीढ़ की हड्डी से अलग होकर छाती पर लटक गया था. पीड़ा के साथ मैंने उसे सही जगह पर थामे रखा. स्नान के बाद, शव को चिता पर रखकर फूलों से ढक दिया गया—सिर्फ उनका मुस्कुराता चेहरा, भव्य आभा के साथ, दिखाई दे रहा था. चिता को अग्नि दी गई और बहुत काम समाय में ही शरीर राख में बदल गया. विदेशी शासन ने श्मशान तक जाने का मार्ग भी तय कर रखा था, फिर भी हजारों लोग सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ते हुए रास्ते के दोनों ओर फूल लेकर खड़े थे. कलकत्ता में, स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों ने उस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया.