हर साल जन्माष्टमी का इंतजार करते हैं बिहार के इस गांव के मुस्लिम, कृष्ण की बांसुरी से चलता है परिवार
Krishna Janmashtami 2025: मुजफ्फरपुर जिले का सुमेरा पंचायत बांसुरी बनाने वाले लोगों के गांव के रूप में ही जाना जाता है. सुमेरा पंचायत के बड़ा सुमेरा स्थित मुर्गियाचक गांव में करीब 80 मुस्लिम परिवार बांसुरी बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं. उनका यह पेशा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है.
Krishna Janmashtami 2025: आज पूरे देश में देवकीनंदन श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. वर्तमान में समय से साथ-साथ पूजा-पाठ और त्योहारों को मानने-मनाने का तरीका भी बदला है. पहले की तमाम आधुनिक चीजों ने पुरानी चीजों की जगह ले ली है. अब न तो वो पुराने लोग हैं और न ही उनके दौर के तौर तरीके ही देखने को मिलते हैं. बावजूद इसके कई पुरानी चीजें अभी भी प्रतीकात्मक रूप में इस्तेमाल की जाती हैं.
इनके लिए खुशियां लाती है जन्माष्टमी
उदाहरण के तौर पर अगर जन्माष्टमी में बिकने वाली बांसुरी को ही लें तो ये बांसुरी कुछ खास इलाकों में ही लोग बनाते हैं. जाहीर सी बात है कि यह त्योहार उनके लिए भी खुशियां लाते हैं. बता दें कि मुजफ्फरपुर जिले का सुमेरा पंचायत बांसुरी बनाने वाले लोगों के गांव के रूप में ही जाना जाता है. सुमेरा पंचायत के बड़ा सुमेरा स्थित मुर्गियाचक गांव में करीब 80 मुस्लिम परिवार बांसुरी बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं. उनका यह पेशा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है.
पहले बांसुरी की डिमांड थी अधिक
स्थानीय बांसुरी कारीगरों के अनुसार पहले के दौर में बांसुरी की अच्छी डिमांड थी. उस वक्त मेला और बाजार में बच्चे से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक बांसुरी खरीदते थे. अब बड़े-बड़े खिलौने के सामने बांसुरी की डिमांड पहले की तुलान में बहुत कम हो गई है. फिर भी इस गांव के लगभग 80 मुस्लिम परिवारों ने बांसुरी बनाने का काम जारी रखा है. इन लोगों का यह खानदानी पेशा है, इसलिए बांसुरी बनाने का काम आज भी जारी है.
अब कमी है बांसुरी की डिमांड
जानकारी के अनुसार जन्माष्टमी के दौराना बांसुरी की डिमांड अधिक रहती है लेकिन, अब पहले की अपेक्षा काफी कम है. पहले जन्माष्टमी में अच्छी कमाई हो जाती थी. कारीगरों के अनुसार साल भर में सबसे ज्यादा उत्साह इन लोगों में जन्माष्टमी को लेकर ही रहता है. हालांकि, इस बार जन्माष्टमी पर मुजफ्फरपुर समेत आसपास के कुछ जिलों से इसकी डिमांड भी आई है. कारीगरों ने दिन-रात एक करके बांसुरी बनाया भी है. पहले बांसुरी बेचकर ही इन कारीगरों का घर-परिवार चलता था लेकिन, अब मार्केट में इसकी डिमांड काफी कम हो गई है. अब लोग बांस और नरकट के बने बांसुरी को छोड़ प्लास्टिक के खिलौना को पसंद कर रहे हैं लेकिन.
नरकट से तैयार होती है बांसुरी
बांस की तरह ही जंगल में नरकट मिलता है. बांसुरी को नरकट से तैयार किया जाता है. इस कड़ी में पहले नरकट की बारीक छीलाई कर इसे काटा जाता है. इसके बाद कारगरी करके इसे बांसुरी का शक्ल दिया जाता है. कारीगर रोजाना 200 पीस बांसुरी बना लेते हैं. खेलने वाले बांसुरी की कीमत 10 रुपए से शुरू होती है, बाकी अच्छी क्वालिटी की बांसुरी 200 से 300 रुपए तक में बिक जाती है. मेला के वक्त बांसुरी की डिमांड अधिक होती है. यहां के कारीगर बांसुरी बनाने के बाद फिर घूम घूम कर उसे बेचने का काम भी करते हैं. कहा जा रहा है कि इस धंधे में मुनाफा नहीं होने की वजह से नई पीढ़ी इसके साथ नहीं जुड़ रही है.
बिहार की ताजा खबरों के लिए यहां क्लिक करें
कृष्ण की बांसुरी का विशेष महत्व
बता दें कि जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के हाथ में बांसुरी का एक विशेष महत्व है. यह न केवल एक वाद्य यंत्र है, बल्कि प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है. बांसुरी को भगवान श्री कृष्ण के साथ अभिन्न रूप से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसकी मधुर धुनें सभी को मोहित कर लेती हैं. ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन बांसुरी को भगवान कृष्ण को अर्पित करना शुभ माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि बांसुरी चढ़ाने से कृष्ण प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं.
इसे भी पढ़ें: बिहार का जन्नत देखना हो तो यहां जरूर आएं, वापस जाने के नहीं करेगा मन
